भोपाल के नरेला शंकरी स्थित यशोदा गार्डन में इन दिनों श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन चल रहा है। जिसमें राजस्थान के बीकानेर से आए आचार्य नंदकिशोर आसोपा कथा वाचन कर रहे हैं। कथा के चौथे दिन बुधवार को महाराज ने व्यासपीठ से जड़ भरत व अजामिल का प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि ऋषभदेव के सबसे श्रेष्ठ पुत्र भरत जी थे। वे बड़े ही भगवत भक्त थे। इन्हीं भरत के नाम से अपने देश का नाम भरतखण्ड पड़ा। हमारा उन्होंने आगे कहा हमारा बहुत बड़ा सौभाग्य की हमारा जन्म भारत में हुआ। उल्लेखनीय है कि कथा का आयोजन माहेश्वरी समाज पूर्वांचल द्वारा किया गया है। महाराज ने बताया कि ऋषभदेव जी के पश्चात महाराज भरत ने देश का शासन संभाला। महाराज भरत बहुत ज्ञानी थे। वे अपने-अपने कर्मों में लगी हुई प्रजा का अपने बाप दादा के समान स्वधर्म में स्थित रहते हुए अत्यंत वात्सल्य भाव से पालन करने लगे। वे अनेकों यज्ञ करते और उस यज्ञकर्म से होने वाले पुण्य रूप फल को यज्ञपुरुष भगवान वासुदेव के अर्पण कर देते थे। इस प्रकार कर्म की शुद्धि से उनका अन्तः करण शुद्ध हो गया व उन्हें दिनों दिन वेगपूर्वक बढ़ने वाली श्रीहरि की उत्कृष्ट भक्ति प्राप्त हुई। ऐसे एक करोड़ वर्ष निकल जाने पर उन्होंने राज्य भोग का प्रारब्ध क्षीण हुआ जानकर अपनी भोगी हुई वंश परम्परागत संपत्ति को यथायोग्य पुत्रों में बाँट दिया व अपने सर्वसम्पत्ति सम्पन्न राजमहल का विवेकपूर्वक त्याग कर दिया। कथा के मुख्य यजमान विकास प्राची मूंदड़ा, सह यजमान श्रीनिवास श्यामा तोषनीवाल एवं प्रदीप निशा गोयदानी हैं। कार्यक्रम को सफल बनाने में अध्यक्ष सुमित माहेश्वरी, सचिव राजेश माहेश्वरी, आयोजन कर्ता माहेश्वरी समाज पूर्वाचल, माहेश्वरी महिला मंडल ओर युवा संगठन का महत्वूपूर्ण सहयोग रहा ।