विकास और निर्माण कार्यों के नाम पर ग्राम पंचायतों में करोड़ों रुपए की राशि हर 5 साल में खर्च की जाती है। लेकिन आज भी ऐसी ग्राम पंचायतें हैं, जहां शांतिधाम तक का निर्माण नहीं हो सका है। इन हालातों में ग्रामीणों को 4-4 किलोमीटर का सफर कीचड़ से सने रास्ते में अर्थी लेकर करना पड़ रहा है। इस दौरान ग्रामीण कई बार कीचड़ में फिसलकर गिर भी जाते हैं। अंतिम यात्रा इतनी मुश्किल भरी होती है कि देखने वाले लोग भी हैरान हो जाते हैं। ताजा मामला विजयपुर विकासखंड क्षेत्र की सुठारा ग्राम पंचायत का है। जहां बीते शुक्रवार को 65 वर्षीय बुजुर्ग महिला कमला पत्नी मोहनलाल शर्मा का निधन बीमारी के चलते हो गया था। सुठारा गांव में शांतिधाम नहीं होने की वजह से हर बार की तरह इस बार भी शव को अंतिम संस्कार के लिए गांव से 4 किलोमीटर दूर चंबल नदी के किनारे लेकर जाना पड़ा। नदी तक पहुंचने वाले कच्चे रास्ते पर कीचड़ ही कीचड़ थी। इस वजह से ग्रामीण अर्थी को कीचड़ सने हुए रास्ते से ले जाते समय कई बार गिरते गिरते बचे। ग्रामीणों का आरोप है कि गांव में शांतिधाम नहीं होने की वजह से जब भी किसी की मौत होती है तो कीचड़ से सने इसी रास्ते से होकर चंबल नदी तक जाना पड़ता है। कई दफा इस समस्या को लेकर पंचायत के सरपंच-सचिव को अवगत कराया जा चुका है। लेकिन जिम्मेदार इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। इससे बार-बार अंतिम यात्रा में इस तरह के हालातों का सामना ग्रामीणों को करना पड़ता है। जिसका वीडियो ग्रामीणों के द्वारा शनिवार को सोशल मीडिया पर वायरल किया है, जो सिस्टम पर सवाल खड़े कर रहा है। बारिश में बनती है ऐसी स्थिति इस बारे में सुठारा गांव निवासी युवा आशीष शर्मा का कहना है कि मेरी दादी का देहांत हो गया था। गांव में शांतिधाम नहीं होने की वजह से हमें कीचड़ से सने हुए रास्ते पर 4 किलोमीटर तक अर्थी को कंधों पर रखकर लेकर जाना पड़ा। गांव में हर बारिश में ऐसी स्थिति निर्मित होती है। पंचायत निर्माण कार्यों में लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन शांतिधाम का निर्माण नहीं कराती। पक्के निर्माण पर लगी है रोक इस बारे में ग्राम पंचायत के सचिव महेश शर्मा का कहना है कि हमने पिछले साल शांतिधाम निर्माण का प्रस्ताव भिजवाया था। लेकिन जनपद ने पक्के निर्माण कार्यों पर रोक लगा रखी है। इस वजह से वह प्रस्ताव वही पड़ा है।