गणेश तलाई में 500 साल पुराना गणेश मंदिर:सराफा में 85 डिग्री झुकी है स्वयंभू मूर्ति, पड़ावा पर सिद्धेश्वर गणेश की उत्तर मुखी प्रतिमा

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आज गणेश चतुर्थी पर घर-घर में गणपति जी विराजेंगे। लेकिन शहर में ऐसी विशिष्ट गणेश प्रतिमाएं भी हैं, जिनकी खास पहचान हैं। ऐसे ही एक हैं गणेश तलाई स्थित सिद्धि विनायक गणेश मंदिर। भगवान श्री गणेश से ही वार्ड की पहचान है। 30 हजार आबादी के हिसाब से यह शहर का सबसे बड़ा वार्ड है। मान्यता है मंदिर का इतिहास करीब 500 साल पुराना है। शहर की ऐतिहासिक तीन तलाईयों (तालाब) में शामिल गणेश तलाई सबसे बड़ी और प्रमुख थी। इस तलाई में एक बेड़ी पर पूर्व मुखी गणेश मूर्ति पहले विराजमान थी। पंडित चंद्रशेखर दीक्षित ने बताया मंदिर में स्थायी प्रतिमा के अलावा गणेशोत्सव में हर साल एक प्रतिमा भी विराजित की जाती है। पहले इस क्षेत्र में तलाई थी। समय के साथ तलाई सूखती गई और यहां बस्ती का विस्तार होता चला गया। तिवारी परिवार करता आ रहा है सेवा
मंदिर की स्थापना करने वाले तिवारी परिवार के प्रमोद तिवारी ने बताया कि हमारे दादा पंडित रामदयाल तिवारी के बाद पिता गंगा प्रसाद तिवारी और अब हम इस मंदिर का रखरखाव और धार्मिक आयोजन करते आ रहे हैं। गणेशजी की कृपा से ही परिवार पर बड़े से बड़े संकट और खतरे टल गए। इस ऐतिहासिक स्वयंभू मूर्ति और मंदिर की वजह से ही क्षेत्र का नाम गणेश तलाई पड़ा। 85 डिग्री झुकी है स्वयंभू गणेश जी की मूर्ति शहर के सराफा बाजार में स्वयंभू श्री सिद्धि विनायक गणेश जी की प्रतिमा विराजित है। यह मंदिर करीब 900 साल पुराना है। प्रतिमा पाषाण काल की बताई जाती है। यह शहर का एकमात्र ऐसा मंदिर जहां विवाह से पहले शहर के अधिकांश दूल्हा-दुल्हन गणेश जी के दर्शन करने आते हैं। 85 डिग्री पर झुकी हुई और स्वयंभू है प्रतिमा
मंदिर में प्रति बुधवार भगवान का विशेष श्रृंगार कर महा आरती की जाती है। पंडित नरेंद्र शर्मा ने बताया पाषाण की यह प्रतिमा 85 डिग्री पर झुकी हुई और स्वयंभू है। मंदिर में पूजा-अर्चना करते हमारी चार पीढ़ी हो गई है। मान्यता है कि गणेश प्रतिमा पर चोला व प्रतिदिन जल चढ़ाने से मनोकामना पूरी होती है। श्री सिद्धेश्वर मंदिर में पूर्ण होती है मनोकामना पड़ावा क्षेत्र में श्री सिद्धेश्वर गणेश मंदिर 25 साल पुराना है। यहां भगवान की उत्तर मुखी गणेश प्रतिमा है। पंडित शैलेंद्र ओझा ने बताया 75 साल से लगातार गणेश उत्सव मनाया जा रहा है। यहां हर तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इसलिए इस मंदिर का नाम श्री सिद्धेश्वर गणेश मंदिर हो गया। वर्ष 1999 में क्षेत्रवासियों की मदद से यहां भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। तब से हर साल उत्साह से गणेश उत्सव मनाया जा रहा है।