10 साल में तीन बार फेल हुआ इंदौर-मनमाड़ रेललाइन प्रोजेक्ट:106 साल पुरानी योजना को अब कैसे मिली मंजूरी, क्या होंगे फायदे; बता रहे एक्सपर्ट..

Uncategorized

इंदौर से मनमाड़ के बीच प्रस्तावित नई रेल लाइन की मंजूरी लंबे संघर्ष का नतीजा है। इसकी जरूरत 106 साल से महसूस हो रही थी। पिछले 10 साल में ही तीन बार नए सिरे से प्रोजेक्ट भेजा गया था लेकिन हर बार कैंसिल कर दिया गया। वजह थी- रेट ऑफ रिटर्न का ग्राफ हर बार निगेटिव दिखाया गया। लेकिन 2019 के बाद हुए रि-सर्वे के ऑर्डर में यह रिपोर्ट अलग आई। इसके बाद मंजूरी दे दी गई है। इस बार जो दो बड़ी बातें है, वह यह है कि प्रोजेक्ट गति शक्ति योजना के तहत बनेगा। इसकी मॉनीटरिंग सीधे PMO से होती है। दैनिक भास्कर ने इंदौर-मनमाड़ न्यू ब्रॉडगैज लाइन प्रोजेक्ट पर लंबे समय काम करने वाले एक्सपर्ट नागेश नामजोशी से बातचीत की। उनसे समझा कि यह प्रोजेक्ट मालवा-निमाड़ सहित मध्य प्रदेश और उत्तर-दक्षिण के लिए कितना महत्वपूर्ण है? यह आखिर इतनी देरी से क्यों मंजूर हुआ? पहली बार इसकी मांग कब और क्यों उठी? इससे मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन कैसे गति पकड़ेगा? रेलवे से जुड़े एक्सपर्ट नामजोशी बताते हैं कि ‘इस लाइन की डिमांड करीब 106 साल पहले ही उठ गई थी। 1918 की बात है। तत्कालीन होल्कर राजा ने पैट्रिक गिडिस नाम के एक्सपर्ट को इंदौर शहर का प्लान तैयार करने के लिए कहा था। तब दक्षिण और उत्तर के राज्यों के बीच इंदौर सबसे बड़ा सेतु था। पैट्रिक ने शहरी विकास के साथ सुझाव दिया कि इंदौर से मनमाड़ (मुंबई को जोड़ने वाली लाइन) के बीच सीधी रेलवे लाइन होनी चाहिए। सर्वे के निर्देश दिए गए लेकिन तब आई-गई हो गई थी। हालांकि, सर्वे की चर्चा के बाद मध्य प्रदेश के साथ महाराष्ट्र में भी इस लाइन की मांग ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया था। आजादी के बाद महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश के कुछ लोगों ने मिलकर मनमाड़-इंदौर रेल लाओ संघर्ष समिति के नाम पर आंदोलन तेज कर दिया। समिति ने पदयात्राएं शुरू कर दीं और सदस्य एक बार मनमाड़ से इंदौर तक पैदल चलकर आ गए। तब इंदौर के गांधी हॉल में अभिनव कला समाज सभागृह में बैठक हुई। हालांकि, सर्वे के आश्वासन मिलते रहे और बातें टलती रहीं।’ 1999 के बाद फिर सर्वे हुआ लेकिन रिपोर्ट निगेटिव आई जोशी बताते हैं कि ‘1999 के बाद एक बार फिर प्रोजेक्ट पर सहमति बन गई। 2002 में तत्कालीन रेल मंत्री नितिन कुमार ने सर्वे के लिए रुपए मंजूर कर दिए। 2004 में सर्वे भी पूरा हो गया लेकिन मप्र और महाराष्ट्र की सरकारों से केंद्र सरकार और रेलवे का समन्वय नहीं बैठ पाया। मामला फिर अटक गया। इस बीच, ट्रैफिक और ढुलाई सर्वे कराया गया तो पता चला कि रेल चली तो रिटर्न प्रॉपर नहीं मिलेगा। यानी यह व्यावहारिक नहीं होगी इसलिए मामला फिर से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।’ आंदोलन कभी ठंडा नहीं पड़ा, लेकिन औपचारिकता निभाते रहा रेलवे आंदोलनकारियों के अलावा इंदौर, खरगोन, धार के तत्कालीन सांसदों ने रेलवे को जस्टिफिकेशन देने की कोशिश की गई। यह भी बताया कि पीथमपुर इंडस्ट्रियल एरिया से कितना माल जाएगा? कॉटन, मिर्च, मिलेट, प्याज का कारोबार दोनों राज्यों के बीच ही नहीं, उत्तर और दक्षिण के बीच भी बढ़ जाएगा। अभी यह पूरा माल सिर्फ सड़क मार्ग से जा रहा है जो बहुत महंगा पड़ता है। इस पर रेलवे ने फिर सर्वे करा दिया। रेलवे की ओर से सर्वे करने डॉ. धन बंधु आए। उद्योगपतियों और व्यापारियों से वन टू वन बातचीत की। कंटेनर कार्पोरेशन का डेटा दिखाया गया। बताया गया कि अभी पीथमपुर से मुंबई पोर्ट के लिए 40 हजार कंटेनर जाते हैं। इन्हें पहले रतलाम भेजा जाता है, फिर वहां से रेलवे के जरिए जाते हैं। यह अतिरिक्त रास्ता लागत बढ़ा देता है। इसके बाद धामनोद, सेंधवा के पास रेलवे ने रोड ट्रैफिक का डे-टू-डे सर्वे कराया। 2015 के बाद जब दूसरी बार भी रिटर्न रेट निगेटिव दिखाया तो नए सिरे से आंदोलन शुरू हो गया। दो बार रिजेक्ट के बाद महाराष्ट्र में आंदोलन तेज हुआ महाराष्ट्र में इस परियोजना को लेकर फिर आंदोलन हुए जो इंदौर तक पहुंच गया। 2016 में 2016 में सेंट्रल रेलवे ने नए सिरे से सर्वे कराया। महाराष्ट्र से आने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी कोशिश की। 2019 में जहाजरानी मंत्रालय और रेलवे के बीच इस परियोजना के लिए एग्रीमेंट हो गया था लेकिन बाद में निरस्त हो गया। अंतत: तीसरी बार राजनीतिक दबाव के बाद रेल लाइन के लिए रेलवे ने री-सर्वे के ऑर्डर किए गए और एक रिपोर्ट सौंपी गई। तब जाकर 2024 में बिल्कुल नए रूट पर लाइन चलाने की मंजूरी दे दी गई। बता दें कि जिस रूट पर मंजूरी दी गई, वहां से दूर-दूर तक कहीं ट्रेन नहीं चलती है। धार जिले में आजादी के बाद से इंदौर-दाहोद लाइन के लिए सिर्फ पटरियां डल पाई हैं। बड़वानी जिले के लोगों ने तो अपने क्षेत्र में पटरी भी नहीं देखी है। खरगोन जिले में सिर्फ सनावद-बड़वाह पास पुराना ट्रेक जाता है। धार, खरगोन और बड़वानी के ग्रामीण इलाकों से रेलवे निकालने का मकसद क्या? निमाड़ के तीन जिले धार, खरगोन, बड़वानी में 75 साल से रेलवे का कोई सीधा कनेक्शन नहीं है। इनके जिला मुख्यालय और पीथमपुर, निमरानी जैसे इंडस्ट्रियल एरिया तक ट्रेन रूट से कटे हुए हैं। यहां का कारोबार महाराष्ट्र में सिर्फ रोड ट्रांसपोर्टेशन से होता आ रहा है। खास बात यह है कि मध्य प्रदेश में प्राइवेट और सरकारी लैंड पर्याप्त है। ऐसे में यहां इकानॉमिक कॉरिडोर प्रस्तावित कर दिया गया है जो रेल रूट के आसपास ही रहेगा। मुंबई, इंदौर जैसे शहरों में नए इंडस्ट्रियल एरिया के लिए जमीन कम है। यदि आदिवासी जिलों में रेल कनेक्टिविटी होती है तो खाली पड़ी जमीनों पर नए इंडस्ट्रियल एरिया खुल सकते हैं। क्योंकि, यहां नर्मदा, चंबल जैसी नदियां हैं और पानी की कमी नहीं आएगी। सरकार ने संकेत दिए हैं कि आने वाले समय में नई इंडस्ट्री इंदौर-उज्जैन-देवास-झाबुआ-नीमच-मंदसौर क्षेत्र में ही आनी है। रेल आई तो सबसे बड़ा फायदा क्या? मध्य प्रदेश : बड़वानी और निमाड़ तीखी लाल मिर्च के लिए मशहूर है। खरगोन का बीटी कॉटन (नई वेरायिटी का पास) विदेशों तक जाता है जिसे लोकल ट्रांसपोर्ट में मदद मिलेगी। धार से कॉटन के साथ सोयाबीन भी महाराष्ट्र के बंदरगाहों तक भेजा जा सकेगा। पीथमपुर के इंडस्ट्रियल एरियाज में सप्लाई की डिमांड बढ़ जाएगी। महाराष्ट्र : नासिक, धुले, नंदूरबार प्याज और मोटे अनाज के लिए मशहूर हैं। इन्हें महाराष्ट्र से उत्तर के राज्यों में मध्य प्रदेश के रास्ते सीधे भेजने की राह आसानी हो जाएगी। रेल पटरी के लिए इतनी जमीन कैसे मिलेगी? नामदेव बताते हैं कि ‘ऐसे प्रोजेक्ट्स में सबसे बड़ी अड़चन जमीन अधिग्रहण में आती है। 309 किलोमीटर लंबे रेल रूट का 170 किलोमीटर हिस्सा मध्य प्रदेश में है। इसके लिए 700 हेक्टेयर प्राइवेट और 200 हेक्टेयर सरकारी जमीन की जरूरत होगी। प्राइवेट जमीन के लिए मुआवजा दिया जाएगा। अच्छी बात है कि मध्य प्रदेश में फॉरेस्ट की जमीन मात्र 0.032 हेक्टेयर का ही आ रही है जिसके लिए वन और पर्यावरण से जुड़ी परमिशन लेने में दिक्कत नहीं आएगी। महाराष्ट्र के करीब 140 किलोमीटर में यह दिक्कत आएगी क्योंकि वहां 712 हेक्टेयर प्राइवेट, 48 हेक्टेयर सरकारी जमीन के अलावा 37 हेक्टेयर फॉरेस्ट लैंड की जरूरत है। यह बहुत ज्यादा है।’ प्रोजेक्ट के बारे में यह भी जानिए ​​​​​​एमपी में 18 और महाराष्ट्र में 16 रेलवे स्टेशन होंगे इंदौर से मनमाड़ तक कुल 34 रेलवे स्टेशन इस लाइन पर आएंगे। इनमें से 30 नए बनेंगे जबकि चार पहले से हैं। मध्यप्रदेश में 17 नए स्टेशन मिलाकर कुल 18 रेलवे स्टेशन होंगे। इंदौर की तरफ से देखें तो महू (पहले से है), कैलोद, कमदपुर, झाड़ी बरोदा, सराय तालाब, नीमगढ़, चिक्त्या बड़, ग्यासपुरखेड़ी, कोठड़ा, जरवाह, अजंदी, बघाड़ी, कुसमारी, जुलवानिया, सली कलां, वनिहार, बवादड़ और मालवा स्टेशन महाराष्ट्र बॉर्डर पर बनेगा।