भागवत कथा का आयोजन:स्वामी आनन्दस्वरूपानंदजी सरस्वती बोले- मनुष्य में लज्जा होना चाहिए यह भी भगवान का ही रूप है

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केशव सत्संग भवन खानपुरा मंदसौर पर दिव्य चातुर्मास पूज्यपाद 1008 स्वामी आनन्दस्वरूपानंदजी सरस्वती ऋषिकेश के सानिध्य में चल रहा है। प्रतिदिन श्रीमद् भागवद् महापुराण के एकादश स्कन्द का का वाचन किया जा रहा है। आज (मंगलवार) को धर्मसभा में स्वामी आनन्द स्वरूपानंदजी सरस्वती ने बताया कि कुकर्म करने के बाद व्यक्ति को शर्म आएं। वह लज्जित हो तो उसमें भी भगवान का अंश होता है। अगर कोई व्यक्ति कुकर्म करें और उसके बाद भी शर्म महसूस न करें ऐसे व्यक्ति भगवान के कृपा पात्र नहीं होते है। इस वजह से मनुष्य में लज्जा होना चाहिए यह भी भगवान का एक स्वरूप है। लेकिन आज कल इसका अभाव हो रहा है। शास्त्रों में लज्जा को महिलाओं का विशेष गुण बताया गया है। हालांकि, आज कल की युवतियों में तो लज्जा दिखाई ही नहीं देती। जबकि युवतियों में तो लज्जा होना चाहिए उन्हें संस्कारवान बनाना चाहिए। धर्मसभा में स्वामीजी ने बताया कि जीवन में हमें त्याग भी करना चाहिए, त्याग भी एक प्रकार से ईश्वर का ही स्वरूप है। त्यागी व्यक्ति पूजनीय होता है। शास्त्रों में त्याग का भी विशेष महत्व बताया गया है, त्याग से अपार पुण्यों की प्राप्ति की जाती है। स्वामी जी ने बताया कि सहनशक्ति में भी ईश्वर विद्यमान होते है। सहनशील व्यक्ति का कभी नुकसान नहीं होता है, लेकिन आजकल इसका भी अभाव होता जा रहा है। लोगों की सहन करने शक्ति कम होती जा रही है जिससे घरों में क्लेश होते है घर टूट जाते है व्यापार व्यवसाय पर असर पडता है। इसलिए शास्त्रों में कहा गया है कि व्यक्ति को सहनशील होना चाहिए। आपने कहा कि हमें अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए ऐसी वाणी मुख से नहीं निकालनी चाहिए जिससे दूसरों को कष्ट हो।