कटनी के जीआरपी थाने में दलित महिला और उसके 15 साल के पोते की बेरहमी से पिटाई का वीडियो 27 अगस्त को वायरल हुआ। इस वीडियो के सामने आने के बाद सवाल उठा है कि आखिर टीआई के कमरे में सीसीटीवी लगा था तो भी पुलिसकर्मियों में इस बात का डर क्यों नहीं था कि उनकी करतूत कैमरे में कैद हो रही है? वीडियो करीब एक साल बाद वायरल हुआ, उससे पहले पुलिस के आला अधिकारियों की नजर में क्यों नहीं आया? इसका जवाब है कि पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी इस बात की मॉनिटरिंग ही नहीं करते कि थाना प्रभारी किसके साथ कैसा बर्ताव कर रहे हैं? दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद साल 2020 में थाना प्रभारियों के कमरे में सीसीटीवी लगाए गए थे। ऐसा करने के पीछे कोर्ट की मंशा थी कि इससे थानों के कामकाज में पारदर्शिता आएगी और पुलिस वालों पर लगने वाले बेजा आरोपों से बचने का ठोस प्रमाण भी रहेगा। कोर्ट ने पुलिस के आला अधिकारियों को भी निर्देश दिए थे कि वे समय-समय पर थानों का औचक निरीक्षण करने के साथ सीसीटीवी फुटेज को भी चेक करते रहें। मगर कटनी की घटना के बाद ये साफ हो गया है कि पुलिस अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया। सीसीटीवी फुटेज को लेकर राज्य सूचना आयुक्त ने भी मध्यप्रदेश के डीजीपी को निर्देश दिए थे। पढ़िए, किस तरह से पुलिस थाने में लगे कैमरे को लेकर लापरवाही बरत रही है… अब जानिए, राज्य सूचना आयुक्त ने क्या निर्देश दिए थे मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने 10 महीने पहले सीसीटीवी को लेकर एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया था। उन्होंने प्रदेश के डीजीपी को निर्देशित किया था कि सभी थानों में लगे सीसीटीवी फुटेज के लिए आरटीआई आवेदन दायर होते ही उस फुटेज को सुरक्षित रखने की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। दरअसल, शिवपुरी के रहने वाले शिशुपाल जाटव ने अक्टूबर 2021 में आरटीआई के तहत थाने में लगे सीसीटीवी फुटेज की जानकारी मांगी थी। लोक सूचना अधिकारी एएसपी ने लिखित में सूचित किया कि सीसीटीवी फुटेज नहीं दिया जा सकता, क्योंकि 15 दिन की अवधि में ये ऑटोमैटिकली डिलीट हो जाते हैं। शिशुपाल ने आयोग में इसकी शिकायत की और आरोप लगाए कि पुलिस ने जानबूझकर इस फुटेज को डिलीट किया है। दरअसल थाने में उसके साथ मारपीट की गई थी। सीसीटीवी फुटेज सामने आने पर पुलिस कर्मियों की मारपीट का सबूत सामने आ जाता। आयोग की जांच में ये सामने आया कि शिवपुरी के तत्कालीन एएसपी कमल मौर्य ने 5 दिन की देरी से निर्णय लिया। उन्होंने जिस दिन फुटेज के लिए थाने को आदेश भेजा, उससे एक दिन पहले ही रिकॉर्ड ऑटोमैटिक डिलीट हो गया। सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने सुनवाई करते हुए कहा कि इस मामले में पुलिस ने जानबूझकर देरी की, जिससे रिकॉर्डिंग नष्ट हो जाए। इसका सीधा फायदा पुलिस कर्मियों को हुआ। वो मामले, जिनमें थाने में पिटाई हुई लेकिन सीसीटीवी फुटेज नहीं दिया सीधी: आदिवासी युवक को थाने में बेरहमी से पीटा 26 अगस्त को सीधी जिले के अमिलिया थाने की पुलिस आदिवासी युवक कन्हैया लाल वर्मा को उठाकर ले गई। कन्हैया के मुताबिक पुलिस वालों ने उसे बेरहमी से पीटा। जब उसने गुनाह पूछा तो बोले कि रानी वर्मा नाम की महिला से बदतमीजी की है। कन्हैया ने कहा कि वह रानी वर्मा को बुलाकर पूछ सकते हैं। इतना सुनते ही एसआई ऋषि द्विवेदी ने उसकी पाइप से पिटाई की। सुबह साढ़े आठ बजे से शाम 5 बजे तक कन्हैया को थाने पर रखा गया। जबकि रानी वर्मा ने खुद थाने में पहुंच कर कहा था कि बदतमीजी करने वाला ये लड़का नहीं है। मामले ने तूल पकड़ा तो एसपी रविंद्र वर्मा ने जांच के आदेश देते हुए एसआई को लाइन अटैच कर दिया। अखिल भारतीय कोल समाज के प्रदेश सचिव विवेक कोल ने आरोपी पुलिस वालों पर एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज करने की मांग की है। विवेक कोल के मुताबिक थाने के फुटेज मांगे गए तो अधिकारी देने में आनाकानी कर रहे हैं। खंडवा: लॉकअप में आदिवासी युवक फंदे से झूल गया 24 अगस्त को खंडवा जिले के पंधाना थाने में चोरी के मामले में हिरासत में लिया गया 32 वर्षीय आदिवासी युवक धर्मेंद्र पिता गुमान सिंह फंदे से झूल गया। उसकी लाश थाने के लॉकअप में खिड़की के ग्रिल से लटकती मिली। उसने कम्बल फाड़ कर रस्सी बनाई थी। लॉकअप भी सीसीटीवी की निगरानी में रहता है। धर्मेंद्र ने कब सुसाइड किया, इसकी भनक तक पुलिस वालों को नहीं लगी। दरअसल दीवाल गांव के रहने वाले धर्मेंद्र को पुलिस ने चोरी के शक में हिरासत में लिया था। परिजन का दावा है कि पुलिस वालों ने थाने में उस पर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया। मारपीट से बचने के लिए उसने आत्महत्या कर ली। लॉकअप में धर्मेंद्र की मौत मामले पर हंगामा मच गया। मामले ने तूल पकड़ा तो एसपी मनोज राय ने थाना प्रभारी, एक एसआई और दो आरक्षकों को निलंबित कर दिया। मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया है। गुना: शादी के दिन ही पुलिस ने थाने में इतना पीटा कि हो गई मौत 14 अगस्त को गुना के बिलाखेड़ी निवासी देवा पारदी को पुलिस ने इतना पीटा की उसकी थाने में ही मौत हो गई। 14 को देवा पारदी की शादी थी। उसकी बारात निकलने से पहले पुलिस एक चोरी के मामले में देवा और उसके चाचा गंगाराम को हिरासत में लेकर झागर चौकी और फिर धरनावदा थाने ले गई थी। परिजनों का दावा है कि देवा की थाने में पिटाई से हुई मौत हुई है। जबकि पुलिस का दावा है कि देवा की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। देवा की मौत के बाद परिजनों ने गुना में प्रदर्शन किया। देवा की दुल्हन ने खुद पर पेट्रोल छिड़क कर सुसाइड करने की कोशिश की। झाबुआ: चौकी में पिटाई से आदिवासी की मौत पर घिरी पुलिस झाबुआ जिले के हरिनगर चौकी पुलिस की पिटाई से 27 जुलाई की देर रात 55 वर्षीय आदिवासी रसन सिंह किहोरी की मौत हो गई। घरवालों का दावा है कि पुलिस ने रसन को घर से आधी रात सोते समय दरवाजा तोड़कर ले गई थी। चौकी में रसन को इतना मारा-पीटा गया कि उसकी तबीयत खराब हो गई। इसके बाद छनिया गांव के सरपंच तोल सिंह मुणिया को बुलाकर पुलिस ने उसे घर भिजवा दिया। पुलिस ने रसन को सौंपते हुए एक वीडियो बनाया था। जिसे बाद में वह अपने बचाव में लोगों को दिखाती रही। हालांकि पुलिस ने चौकी में लगे सीसीटीवी फुटेज को कभी सार्वजनिक नहीं किया। घर पहुंचने से पहले ही रसन ने दम तोड़ दिया। अगले दिन चौकी में परिवार और गांव के लोगों ने जमकर हंगामा मचाया। एसपी ने पूरे चौकी में पदस्थ पुलिस कर्मियों को हटाते हुए चौकी प्रभारी को लाइन हाजिर कर दिया।