क्रमोन्नति नियम में संशोधन को लेकर कर्मचारियों की तीखी प्रतिक्रिया आने लगी है। वे साफतौर पर कहते हैं कि पहले पदोन्नति तो शुरू करो, फिर उच्चतर वेतनमान का लाभ देने या न देने की बात करना। बता दें कि 30 अप्रैल 2016 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद से प्रदेश में पदोन्नति पर रोक है। इस अवधि में करीब 1.50 लाख कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं। इनमें से एक लाख ऐसे थे, जिन्हें एक पदोन्नति मिलनी थी। मध्य प्रदेश तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रदेश सचिव उमाशंकर तिवारी का कहना है कि वर्तमान परिस्थिति में सरकार का यह निर्णय हास्यास्पद लगता है। जब पदोन्नति में सवा आठ साल से रोक है, तो पदोन्नति नहीं लेने पर आर्थिक लाभ लेने से वंचित करने की बात कहां से आई। वे कहते हैं कि पदोन्नति आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों के बीच की लड़ाई है। यह कर्मचारी भी साफ-साफ कह चुके हैं कि पदोन्नति शुरू कर दी जाए, भले ही वह सुप्रीम कोर्ट में चल रहे पदोन्नति में आरक्षण प्रकरण के फैसले के अधीन हो। दोनों पक्षों के कर्मचारियों की मांग को भी सरकार नहीं मान रही है। कुछ कर्मचारी नेता कहते हैं कि यह कर्मचारी संगठनों को कमजोर करने की सरकार की साजिश है। जब दोनों पक्ष राजी हैं तो सरकार को पदोन्नति शुरू करने में क्यों आपत्ति होनी चाहिए। देश के अन्य सभी राज्यों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अधीन पदोन्नति दी ही जा रही है, तो मध्य प्रदेश में नहीं देना न्याय संगत नहीं है। सरकार को अब भी इस पर विचार कर पदोन्नति शुरू कर देनी चाहिए।