जेसी मिल:बच्चों का भविष्य चौपट, परिजन को खोया, 34 साल में भी नहीं मिला मेहनताना

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34 साल पहले यानी कि 1992 में बंद हुई जेसी मिल के मजदूर परिवार आज भी अपने मेहनताने के लिए सरकार और मिल प्रबंधन का मुंह देख रहे हैं। मिल बंद होने से 8 हजार 800 परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट इस कदर खड़ा हुआ कि बच्चों की पढ़ाई छूट गई। कई परिवारों में लोगों ने सुसाइड कर लिया और कई में बीमारी का इलाज न हो पाने से मौतें हुई। ये परिवार आज भी उस भयावह दौर के सदमे से बाहर नहीं आ पाए हैं। दैनिक भास्कर ने इन परिवारों के बीच पहुंचकर लोगों का दर्द जाना, पढ़िए उनकी जुबानी…. भास्कर से लोगों ने किया दर्द बयां, बोले-तंगहाली से दुखी पत्नी ने किया सुसाइड, परिवार बिखरा मिल बंद होने के बाद मेरे सामने बड़ा संकट 4 बच्चे, पत्नी और खुद का पेट भरने का था। कोई काम नहीं मिला तो बेलदारी की फिर टेंपो चलाकर रोजी-रोटी चलाई। लेकिन पैसों के अभाव में बच्चों की पढ़ाई नहीं हाे सकी। 2 बेटियों को मिडिल तक पढ़ाकर जैसे-तैसे शादी की। 2 लड़के हैं, जिनमें से एक आर्मी में है और एक बेटा ड्राइवर है। आर्थिक तंगी के कारण पत्नी कमला ने सुसाइड कर लिया। पूरा परिवार बिखर गया। -रघुपत सिंह चौहान पटवा सरकार की जिद के कारण मिल पर ताला लगा।मेरे परिवार में पत्नी के अलावा 4 बच्चे भी थे। उस वक्त दिन में दुकानों पर काम किया और रात को पल्लेदारी का काम। उसके बाद भी बच्चों को इच्छा के अनुसार पढ़ाई नहीं करा पाया। 2 बेटियों को मिडिल तक पढ़ा सका और शादी कर दी। वहीं बेटों की भी पढ़ाई बहुत नहीं करा सका। मिल बंद होने के बाद हम लोगों का पैसा भी मिल जाता तो शायद कुछ हद तक परिवार की जरुरतें पूरी कर पाते। -राजेंद्र सिंह परिहार सरकार और मिल प्रबंधन के बीच तनातनी का खामियाजा हमारे जैसे मजदूर परिवार अब भी भुगत रहे हैं। उस वक्त मिल बंद होने से बेरोजगार हुए लोगों को मजदूरी भी नहीं मिल रही थी। फिर मिल प्रबंधन ने हम लोगों का मेहनताना नहीं चुकाया, यदि उस वक्त पैसा मिल जाता तो कोई व्यापार कर लेते या फिर जमीन खरीद लेते। परिवार को पाई-पाई के लिए मोहताज है। सरकार हुकुमचंद्र मिल की तरह हमें भी जल्द पैसे दे तो कुछ अब भी कर सकते हैं।-राम खिलाड़ी सिकरवार 132 करोड़ रुपए की देनदारी, 370 करोड़ रुपए तक की बिकेगी जमीन
जनवरी में ग्वालियर में बैठक लेते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने आदेश दिए थे कि जेसी मिल मजदूरों का भुगतान जमीन बेचकर किया जाए। जिसके बाद जिला प्रशासन ने प्रस्ताव तैयार किया था। इस प्रस्ताव के अनुसार 8 हजार 800 मजदूरों को करीब 85 करोड़ रुपए का भुगतान किया जाना है और 46 करोड़ रुपए बैंकों की देनदारी है। इस पूरी 132 करोड़ रुपए की देनदारी को चुकाने के लिए जेसी मिल की 52.580 हेक्टेयर जमीन को बेचा जाएगा। ये जमीन करीब 370 करोड़ रुपए की हो रही है। यानी कि देनदारी चुकाने के बाद भी सरकार को करीब 238 करोड़ रुपए बचेंगे।