स्पीक का आरोप-कोर्ट के आदेश भी नहीं मान रही सरकार:नेताओं ने कहा-सिर्फ आरक्षित वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए काम कर रही सरकार

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सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था (स्पीक) ने राज्य सरकार पर अनारक्षित वर्ग के अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ पक्षपात का आरोप लगाया है। संस्था के अध्यक्ष केएस तोमर का कहना है कि पशुचिकित्सक राकेश शर्मा, डॉ. विनय कुमार बबेले, डॉ. पीके सोलंकी, डॉ. मुकेश शर्मा, सचिन सोनी सहित अनारक्षित वर्ग के करीब 500 अधिकारी-कर्मचारी हाईकोर्ट से पदोन्नति की लड़ाई जीत चुके हैं। इन मामलों में सरकार को कोर्ट के आदेश की अवमानना से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा है, पर आरक्षित वर्ग के अधिकारियों को पदोन्नति देने में सरकार देर नहीं कर रही। तोमर कहते हैं कि प्रभारी संचालक पशुपालन डॉ. आरके मेहिया को संविदा नियुक्ति देने के लिए सरकार उनके रिटायरमेंट के दो दिन पहले पदोन्नति देने को तैयार है। जबकि अनारक्षित वर्ग के अधिकारी और कर्मचारी पिछले पांच साल से पदोन्नति के लिए परेशान हैं। इन कर्मचारियों के मामले में सरकार हाईकोर्ट से सिंगल, डबल और रिवीजन में भी हार चुकी है। सभी मामलों में कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के यथास्थिति के निर्णय को स्पष्ट करते हुए संबंधित अधिकारियों एवं कर्मचारियों की पदोन्नति के आदेश दिए हैं। तोमर बताते हैं कि अकेले पशुपालन विभाग की बात नहीं है। आईटीआई, नगर निगम, पीएचई, ऊर्जा सहित अन्य विभागों और संस्थाओं में भी अनारक्षित वर्ग के कई अधिकारियों और कर्मचारियों को कोर्ट पदोन्नत करने के आदेश दे चुकी है पर सरकार इस मामले में कोर्ट के किसी भी आदेश को मानने को तैयार नहीं है। वे बताते हैं कि 30 अप्रैल 2016 को आए जबलपुर हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार आरक्षित वर्ग के जिन अधिकारियों और कर्मचारियों को डिमोट किया जाना है, सरकार पदक्रम सूची में उन्हें सबसे ऊपर रखे हुए हैं। यह अनारक्षित वर्ग के साथ खुला अन्याय है। मूल वरिष्ठता से पदोन्नति कर रही महाराष्ट्र-बिहार सरकार तोमर ने कहा कि पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र और बिहार में अधिकारियों और कर्मचारियों को पदोन्नति दी जा रही हैं। वहां मूल वरिष्ठता से कर्मचारियों और अधिकारियों को पदोन्नत किया जा रहा है। जिससे किसी को कोई परेशानी भी नहीं है। मध्य प्रदेश सरकार को भी यही फार्मूला अपनाना चाहिए।