भगवान श्रीकृष्ण एक भी हैं और अनेक भी हैं। वे ही गो लोक में रहकर गोपियों के साथ रास करते हैं, वैकुंठ में रहकर जगत की रक्षा करते हैं, नर-नारायण के रूप में अपने तपोबल से संसार को धारण करते हैं और महाविष्णु के रूप में भी वे ही हैं। एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में मंगलवार शाम यह बात कही। भगवान में सबका समावेश महाराजश्री ने कहा कि वे एक हैं फिर भी भक्तों की भावना के अनुसार अनेक हो जाते हैं। वे अपनी दृष्टि में एक हैं, भक्तों की दृष्टि में अनेक हैं। इसलिए उनमें सबका समावेश है। बहुत से लोगों में भ्रम उत्पन्न होता है कि महाभारत के कृष्ण अलग हैं और भागवत के अलग। इस तरह के भेद करने वाले भगवान के वास्तविक स्वरूप से अनभिज्ञ हैं। पर जो सच्चे प्रेमी हैं, उन्हें तो सभी रूपो में अपने प्रियतम श्रीकृष्ण का ही दर्शन होता है। उनकी दृष्टि में दूसरे की सत्ता ही नहीं है। अलग-अलग नहीं है भागवत और महाभारत के कृष्ण डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने कहा कि कुछ भ्रमित लोग केवल कर्म लीला को प्रधानता देते हैं और कुछ उनकी उपासना लीला और प्रेम लीला को नहीं समझ पाते। जिसके कारण अस्वीकार कर देते हैं। उनकी बुद्धि में कर्म की वासना इतनी बलवती हो जाती है कि उसके सामने वे प्रेम की लीलाओं को भूल जाते हैं। ऐसे लोगों ने परमात्मा कृष्ण की दिव्य प्रेममयी वृंदावन की चिन्मयी लीलाओं और रहस्यों को नहीं समझकर ऐसी कल्पना कर ली कि जिन ग्रंथों में भगवान की प्रेमलीलाओं का वर्णन है, वे दूसरे हैं। जबकि महाभारत के सभा पर्व में जहां द्रोपदी के वस्त्राकर्षण का उल्लेख किया गया है, वहां बड़े स्पष्ट शब्दों में द्रोपदी की प्रार्थना मिलती है- गोविंद द्वारका वासिन कृष्ण गोपि जन प्रिय… अर्थात हे गोविंद, हे द्वारका में रहने वाले श्रीकृष्ण, हे गोपियों के प्रियतम, आओ हमारी रक्षा करो। भगवान की अनन्य लीलाओं से परिचित थी द्रोपदी महाराजश्री ने कहा कि यह बात स्मरण योग्य है कि द्वोपदी भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थी और उनकी अनन्य लीलाओं से परिचित थी। गोपियों के साथ भगवान का जो संबंध है, उसके द्वारा भगवान को पुकारना इस बात को सूचित करता है कि भगवान किस नाम से शीघ्र प्रसन्न होते हैं। इस प्रकार महाभारत के अन्यान्य स्थलों में भी भगवान की लीलाओँ का वर्णन है। अत: भागवत और महाभारत के श्रीकृष्ण एक ही हैं, इनको अन्य दृष्टि से देखने वाले अज्ञानी और धूर्त हैं।