हर शहर में गीता भवन बनाएगी सरकार:इसमें ऑडिटोरियम, लाइब्रेरी, कैफेटेरिया भी; जिलों में शादी के लिए नहीं मिलेंगे, चलाएगा कौन…

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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हर शहर में गीता भवन और गांवों में बरसाना की तर्ज पर गांव बनाने का ऐलान किया है। गीता भवन का निर्माण नगरीय निकाय करेंगे। ये पीपीपी मोड पर बनाए जाएंगे या सरकार इसके लिए पैसा देगी, ये अभी तय नहीं है। गीता भवन का पूरा ड्राफ्ट तैयार हो चुका है। इसके मुताबिक ये तय किया गया है कि जिला मुख्यालय पर बनने वाले गीता भवन में सामाजिक कार्य जैसे शादी-ब्याह प्रतिबंधित रहेंगे। इनमें वर्कशॉप, सेमिनार, सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन हो सकता है। जिला मुख्यालय के अलावा बाकी जगहों पर बनने वाले गीता भवनों में शादी ब्याह के साथ बाकी कार्यक्रम भी आयोजित किए जा सकेंगे। क्या है एमपी सरकार का गीता भवन का पूरा कॉन्सेप्ट। पहली बार पढ़िए और देखिए दैनिक भास्कर ऐप पर पहले जानिए मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने गीता भवन को लेकर क्या कहा 25 अगस्त को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इंदौर के गीता भवन ट्रस्ट के कार्यक्रम में शिरकत की। कार्यक्रम की थीम थी- मां अहिल्या की कामना, हर घर कन्हैया, हर मां यशोदा। इस कार्यक्रम में सीएम डॉ. यादव ने कहा कि ‘हमारी सरकार ने तय किया है कि हर घर कृष्ण बने, हर मां यशोदा बने। सरकार, शहरी क्षेत्र में हर स्थान पर नगरीय निकाय के माध्यम से गीता भवन की स्थापना करेगी। गीता भवन में धार्मिक के साथ सभी प्रकार की गतिविधियां संचालित होगी। ये गीता भवन सभी प्रकार के विचार विमर्श के केंद्र बनेंगे। गांव में हमारे यहां दूध दही की नदियां बहती थी ऐसा माना जाता है। कम से कम एक ब्लॉक के अंदर एक गांव बरसाना की तरह डेवलप किया जाएगा। इस गांव में सभी आदर्श स्थापित किए जाएंगे। इससे हमारी प्राचीन संस्कृति पुष्पित पल्लवित होगी। सुशासन के प्रतीक, स्कूल, खेल के मैदान, दूध के लिए गौशाला, गांव -गांव में आमदनी का रास्ता और संस्कार की पाठशाला सभी व्यवस्था गांव में स्थापित की जाएगी। गीता भवन बनाने के लिए सरकार ने चार कैटेगरी तय की 22 अगस्त को मप्र की मुख्य सचिव वीरा राणा की अधिकारियों के साथ बैठक हुई थी। इस बैठक में गीता भवन के पूरे ड्राफ्ट को अंतिम रूप दिया गया। मप्र में 413 नगरीय निकाय है जिसमें 16 नगर निगम, 99 नगर पालिका और 298 नगर परिषद् हैं। 16 नगर निगम में से 5 बड़े शहरों के नगर निगम में 2 एकड़ जमीन पर गीता भवन बनाए जाएंगे। बाकी बचे हुए 11 नगर निगम में ये डेढ़ एकड़ में होंगे। इसी तरह नगर पालिकाओं में 1 एकड़ जमीन पर इनका निर्माण किया जाएगा तो नगर परिषद में आधा एकड़ जमीन पर इन्हें डेवलप किया जाएगा। सभी जगह निर्माण की लागत अलग-अलग रहेगी। सभी 413 नगरीय निकायों में गीता भवन बनाने के लिए कुल 4 हजार 810 करोड़ रु. अनुमानित खर्च होगा। अब जानिए क्या रहेगा गीता भवन में, कैसे होगा मेंटेनेंस ड्राफ्ट के मुताबिक यहां एक सभागार, लाइब्रेरी, पार्किंग,कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स और एक कैफेटेरिया भी रहेगा। लाइब्रेरी में भी तीन हॉल होंगे। पहला और दूसरा हॉल सीनियर सिटिजन और स्टूडेंट के लिए होगा। तीसरे हॉल में आम लोग बैठ सकेंगे। साथ ही एक ई-लाइब्रेरी भी होगी। यहां दुनिया भर के विद्वान व लेखकों, साहित्यकार और विशेषज्ञों की पुस्तकें बिक्री के लिए उपलब्ध होंगी। खास तौर पर भारतीय संस्कृति पर केंद्रित पुस्तकें यहां रखी जाएंगी। लाइब्रेरी के लिए सदस्यता शुल्क रहेगा जो नगरीय निकाय तय करेंगे। साथ ही पार्किंग शुल्क भी रहेगा। कैफैटेरिया के संचालन के लिए प्राइवेट एजेंसी से एग्रीमेंट किया जाएगा। ऑडिटोरियम और दुकानों के निर्धारित शुल्क से गीता भवन का संचालन व संधारण किया जाएगा। चारों कैटेगरी के लिए गीता भवन का अलग-अलग डिजाइन होगा नगर निगम, नगर पालिका और नगर परिषद में बनने वाले गीता भवन अलग-अलग डिजाइन के होंगे। चारों कैटेगरी की डिजाइन के लिए एक्सपर्ट आर्किटेक्ट का चयन किया जाएगा। ये प्रक्रिया राज्य स्तर पर होगी। आर्किटेक्ट जो डिजाइन बनाकर देगा उसे सभी पांच बड़े शहर, 11 नगर निगम , नगरपालिका और नगर परिषदों को भेजा जाएगा। इस डिजाइन के आधार पर ही नए भवनों का निर्माण किया जा सकेगा। नगर परिषद गीता भवन के तय स्ट्रक्चर में कोई बदलाव नहीं कर सकेंगे। यदि यह बहुत ही जरूरी हुआ तो नगरीय विकास एवं आवास मुख्यालय से अनुमति लेंगे। पैसा सरकार देगी या पीपीपी मोड से बनेंगे ये तय होना बाकी गीता भवनों का निर्माण राज्य सरकार करेगी या पीपीपी यानी प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप के तहत किया जाएगा, ये तय होना बाकी है। इसका संचालन भी यदि नगरीय निकाय करेंगे तो यहां कर्मचारियों की व्यवस्था नगर निगम, नगर पालिका और परिषद को करना पड़ेगी। दूसरे ऑप्शन के तौर पर टेंडर बुलाकर किसी एजेंसी को ये जिम्मेदारी दी जा सकती है। इन दोनों बिन्दुओं को लेकर कैबिनेट में चर्चा होना बाकी है। अब जानिए क्या है बरसाना की तर्ज पर आदर्श गांव की योजना मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इंदौर में आयोजित इसी कार्यक्रम में एक और घोषणा की। उन्होंने कहा कि बरसाना की तर्ज पर आदर्श गांव भी बनाए जाएंगे। यहां गौ-पालन, दूध उत्पादन और जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। बरसाना मथुरा जिले की गोवर्धन तहसील व नंदगांव ब्लॉक में स्थित एक कस्बा और नगर पंचायत है। इसका प्राचीन नाम वृषभानुपुर है। जो राधा रानी की जन्मस्थली के तौर पर भी प्रसिद्ध है। मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक बरसाना गांव को जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की होगी। इस योजना के तहत हर ब्लॉक के एक गांव के चयन का जिम्मा भी इसी विभाग का होगा। हालांकि विभाग ने अभी इस योजना का ड्राफ्ट तैयार नहीं किया है। एमपी सरकार के ‘गोकुल ग्राम’ से कैसे अलग है बरसाना गांव योजना पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के समय मप्र में गोकुल ग्राम योजना लागू की गई थी। देसी नस्ल की गायों के संरक्षण और संवर्धन के लिए ये योजना शुरू की गई थी। सरकार की मंशा थी कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। योजना के लिए छोटे और सीमांत किसान पात्र थे। इसका फायदा गौ-संरक्षण समितियां और गौ-शालाएं संचालन करने वाली समितियों को भी दिया गया था। बाद में 2014 में केंद्र की राष्ट्रीय गोकुल मिशन स्कीम में इसे मर्ज कर दिया गया। केंद्र सरकार ने 2019 में इस योजना के तहत मध्य प्रदेश का पहला गोकुल ग्राम सागर जिले के रतौना में बनाने का फैसला किया। इसकी बड़ी वजह यहां उपलब्ध 700 एकड़ जमीन थी। इसमें से 200 एकड़ जमीन डेयरी विस्थापन स्थल के लिए दी जा चुकी है। अभी भी 500 एकड़ जमीन मध्यप्रदेश राज्य पशुधन एवं कुक्कट विकास निगम के नाम पर है। 2018 में पशुपालन विभाग ने रतौना में शासकीय पशु प्रजनन प्रक्षेत्र, गोकुल ग्राम व डेयरी विकास के लिए 500 एकड़ भूमि हस्तांतरित करने के आदेश जारी किए थे। जब यह जमीन सौंपी गई थी, तब दावा किया गया था कि शहर की सभी डेयरियां यहां से शिफ्ट हो जाएंगी, आवारा पशुओं का विचरण भी खत्म होगा। मगर, ऐसा कुछ नहीं हुआ। केंद्र का बजट न मिलने से योजना की रफ्तार धीमी वर्तमान स्थिति यह है कि रतौना में गायों की देसी नस्ल थारपारकर का संरक्षण व संवर्धन किया जा रहा है। यहां फिलहाल करीब 500 गायें हैं । इनके लिए करीब 200 एकड़ जमीन चारागाह के लिए रिजर्व है। हालांकि, केंद्र का बजट न मिलने के कारण गोकुल ग्राम योजना धीमी पड़ गई है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि 100 एकड़ जमीन गौ-अभयारण्य के लिए दे दी जाए तो करीब 10 हजार गौ वंश का संरक्षण हो सकता है। बता दें कि इस योजना के तहत एक गाय के लिए यहां पर रहने, खाने और इलाज की सुविधाएं जुटाने में लगभग एक लाख 70 हजार रुपए का बजट तय किया गया।