शाजापुर में रामानुज संप्रदाय के एकमात्र मंदिर में जन्माष्टमी पर भारत सहित 5 देशों की मुद्राओं से कान्हा का श्रृंगार हुआ। इस बार भारत, अमेरिका, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश की मुद्राओं से श्रृंगार किया गया। शहर के वजीरपुरा क्षेत्र में स्थित करीब 200 साल प्राचीन खजांची मंदिर रामानुज संप्रदाय का यह एकमात्र मंदिर हैं। मंदिर के पुजारी पं. सीताराम तिवारी ने बताया कि ये खजांची मंदिर मूलतः राम मंदिर है। यहां प्रतिवर्ष जन्माष्टमी पर नोटों से श्रृंगार किया जाता है। यहां पर देश के 1 रुपए से लेकर वर्तमान 2 हजार रुपए तक की मुद्रा का उपयोग श्रृंगार के लिए किया जाता है। वहीं पूर्व के वर्षों में प्राप्त अन्य देशों की मुद्रा का भी उपयोग श्रृंगार के लिए किया जाता है। इसमें अमेरिका, भूटान और नेपाल शामिल है। हालांकि इन तीनों देश की मुद्रा के एक-दो नोट ही मंदिर के पास बरसों से संरक्षित किए हुए हैं। जो श्रृंगार के समय उपयोग में लिए जाते हैं। पं. तिवारी के अनुसार जन्माष्टमी पर नोट से मंदिर और प्रभु प्रतिमाओं का श्रृंगार करने में 8-10 घंटे का समय लगता है। वजीरपुरा क्षेत्र स्थित यह प्राचीन मंदिर श्री झालरिया मठ डीडवाना (राज.) शाखा का है। श्रीश्री 1008 श्री बाल मुकुंदाचार्य महाराज द्वारा यह मंदिर स्थापित है। वर्तमान मठाधीश श्रीश्री 1008 घनश्यामाचार्य महाराज के सान्निध्य में परंपरानुसार भगवान का झूलोत्सव व जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है। पं. तिवारी ने बताया कि ये खजांची मंदिर मूलतः राम मंदिर है। यहां भगवान श्रीराम, माता जानकी, लक्ष्मणजी और हनुमानजी की प्रतिमाएं विराजित हैं। जब सावन होता है तो यहां झूले के दर्शन होते हैं और प्रतिमाओं का शिव परिवार के रूप में श्रृंगार होता है। जब जन्माष्टमी आती है तो प्रतिमाओं का श्रीकृष्ण के रूप में श्रृंगार होता है। मंदिरों में अलौकिक जन्माष्टमी पर सिक्कों से श्रृंगार किया जाता है। उन्होंने कहा कि यहां भारत के 1 रुपये लेकर वर्तमान में 2 हजार रुपये तक की मुद्रा का उपयोग किया जाता है। जिसमें अमेरिका, भूटान, नेपाल और बांग्लादेश शामिल हैं। हालांकि चारों देशों की मुद्रा के कुछ नोट ही संरक्षित हैं। जो श्रृंगार के समय उपयोग में आते हैं। पं. तिवारी के अनुसार जन्माष्टमी के नोट से लेकर मंदिर और प्रभु की प्रतिमाओं का श्रृंगार करने के लिए 3-4 दिन से तैयारी की जाती है ओर यह परंपरा पिछले 50 से अधिक सालों से निभाई जा रही है। ट्रेजरी अधिकारी के नाम पर रखा मंदिर का नाम पुजारी पं. तिवारी ने बताया मंदिर 200 साल पुराना है। 200 वर्ष पहले शाजापुर में एक ट्रेजरी अधिकारी पत्नी के साथ रहते थे। निःसंतान होने के कारण पत्नी भगवान की प्रतिमा को पुत्र के समान मानती थी और प्रतिदिन दर्शन के बाद ही अन्न ग्रहण करती थी। ऐसे में भगवान के दर्शन को व्याकुल पत्नी ने मंदिर निर्माण होने तक अन्न ग्रहण नहीं करने की प्रतिज्ञा ले ली और 8 बाय 8 का एक मंदिर बनाया गया। जहां श्रीश्री 1008 बालमुकुंदाचार्य महाराज ने इसमें प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा की थी। इसके बाद ट्रेजरी अधिकारी की पत्नी ने अन्न ग्रहण कर लिया और दैनिक सेवा करने लगी। ट्रेजरी अधिकारी को हिंदी में खजांची कहा जाता है। ऐसे में मंदिर का नाम खजांची मंदिर के रूप में रखा गया।