नगरपालिका-परिषद् में अविश्वास प्रस्ताव 2 की बजाय 3 साल में:सरकार को बगावत और खरीद-फरोख्त का डर, मंत्री-विधायकों में वर्चस्व की लड़ाई भी वजह

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मध्यप्रदेश सरकार ने नगरीय निकायों में अविश्वास प्रस्ताव दो साल की बजाय तीन साल में लाने का फैसला लिया है। दैनिक भास्कर ने जब इसकी पड़ताल की तो पता चला कि इसकी वजह विपक्ष या कांग्रेस के नेता नहीं बल्कि बीजेपी के ही नेता हैं, जो अपने पसंद के अध्यक्षों को कुर्सी पर बैठाना चाहते हैं। इसके जरिए वे शहर सरकार पर कब्जा जमाना चाहते हैं। ये नेता अध्यक्षों के दो साल के कार्यकाल पूरा होने का इंतजार कर रहे थे, ताकि अविश्वास प्रस्ताव लाकर उन्हें कुर्सी से हटाया जा सके। सरकार को इनके मंसूबों की भनक लग गई और कैबिनेट बैठक में आनन-फानन में प्रस्ताव लाकर इन मंसूबों पर पानी फेरा गया है। अंदरूनी सूत्रों से सरकार को ये भी पता चला कि अविश्वास प्रस्ताव के लिए पार्षदों का समर्थन हासिल करने खरीद-फरोख्त की भी तैयारी की जा रही थी। ऐसा होता तो प्रदेश भर में पार्टी में खलबली मचना तय था। हालांकि, कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव के आने से पहले कई नगरीय निकायों में अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया जा चुका है। अब सरकार इन प्रस्तावों को मैनेज करने में जुटी है। मंडे स्टोरी में सात कहानियों से समझिए, किस तरह से बीजेपी के ही नेता अपने नेताओं को कुर्सियों पर बैठाने की जुगत भिड़ा रहे थे। खास बात ये है कि इन सात में से पांच निकायों में महिला अध्यक्ष कुर्सी पर बैठी हैं और उनके पतियों के हाथ में निकाय की बागडोर है। ये भी बताएंगे कि जहां अविश्वास प्रस्ताव आ चुके हैं, वहां आगे क्या होगा। पढ़िए रिपोर्ट… अब जानिए वो 7 कहानियां, जिनकी वजह से सरकार को प्रस्ताव लाना पड़ा 1. केवलारी नगर परिषद: यहां ‘अध्यक्ष पति’ अविश्वास की असली वजह केवलारी नगर परिषद् की अध्यक्ष सुनीता बघेल केवल एक वोट से अध्यक्ष का चुनाव जीती थीं। अब बीजेपी के 9 पार्षदों ने ही अपने अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है। उनका आरोप है कि अध्यक्ष के पति देवी सिंह बघेल नगर परिषद में विधायक प्रतिनिधि बन गए हैं। यहां अध्यक्ष नहीं, बल्कि उनके पति देवी सिंह सभी फैसले लेते हैं। परिषद के हर काम में उनका दखल रहता है। उनकी अनुमति के बिना पार्षदों के कोई काम नहीं होते हैं। पार्षदों ने जो अविश्वास प्रस्ताव दिया है, उसमें अध्यक्ष के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए हैं। उनका कहना है कि वार्डों में काम नहीं हो रहे हैं, वे मजबूरी में अविश्वास प्रस्ताव लाए हैं। कलेक्टर ने 6 सितंबर को पार्षदों से चर्चा के लिए केवलारी एसडीएम को नोडल अधिकारी नियुक्त किया है। 2. चाचौड़ा नगर परिषद्: अध्यक्ष का ठिकाना इंदौर, पति देखते हैं काम चाचौड़ा नगर परिषद की अध्यक्ष सुनीता नाटानी पर आरोप है कि वे अधिकांश समय इंदौर में रहती हैं। ऐसे में परिषद के काम उनके पति प्रदीप नाटानी देखते हैं। उनसे विकास कार्यों की बात की जाती है तो वे बार-बार अपमानित करती हैं। मुख्यमंत्री जल आवर्धन योजना में 9 करोड़ के घोटाले का भी आरोप है। यही वजह है कि परिषद उपाध्यक्ष रश्मि शर्मा सहित 13 पार्षदों ने हस्ताक्षर कर अध्यक्ष सुनीता को हटाने की मांग कर दी। बीजेपी के 6, कांग्रेस के 2 और 5 निर्दलीय पार्षदों ने तीन जुलाई को अविश्वास प्रस्ताव नगर पारिषद सीएमओ और कलेक्टर को सौंपा है। सूत्रों का कहना है कि अध्यक्ष का एक साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद से ही पार्षद विरोध में उतर आए थे। कुछ पार्षदों ने अध्यक्ष की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए प्रदर्शन भी किया था। सुनीता को क्षेत्रीय विधायक प्रियंका पेंची का करीबी कहा जाता है, इसलिए संगठन स्तर पर भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है। पता चला है कि जिलाध्यक्ष धर्मेंद्र सिकरवार ने हाल ही में नाराज पार्षदों की बैठक लेकर अविश्वास प्रस्ताव वापस लेने की कोशिश की है। 3. बानमोर नगर परिषद: अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के बीच समन्वय नहीं नपा अध्यक्ष के चुनाव में गीता जाटव को 9 वोट, जबकि कांग्रेस के कमल सिंह राजे को 6 वोट मिले थे। जाटव भले ही अध्यक्ष बन गईं, लेकिन भाजपा को डर था कि निर्दलीय पार्षदों ने पाला बदल लिया तो अध्यक्ष पद चला जाएगा। भाजपा के न्यू जॉइनिंग अभियान के दौरान कांग्रेस नेता राकेश मावई के साथ 4 पार्षदों ने भी भाजपा की सदस्य ले ली। ऐसे में भाजपा ने खतरे को टाल दिया। सूत्रों का कहना है कि उपाध्यक्ष राजवीर यादव की अध्यक्ष गीता जाटव से पटरी नहीं बैठ रही है। जाटव को पूर्व विधायक रघुराज कंसाना का समर्थक माना जाता है। डेढ़ महीने पहले उपाध्यक्ष यादव का परिषद कार्यालय में अध्यक्ष से विवाद हो गया था। इसे लेकर अध्यक्ष के साथ परिषद की तरफ से थाने में यादव के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया था। इसके बाद यादव ने बीजेपी के 9 ,कांग्रेस के एक पार्षद को अपने पाले में लाकर 10 पार्षदों के समर्थन होने का पत्र कलेक्टर को सौंप दिया। बताया जाता है कि भाजपा के जिस गुट ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है, वे राकेश मावई के समर्थक हैं। 8 अगस्त को ही अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया है। 4. देवरी नगर पालिका: मंत्री-विधायक की नाक का सवाल बना अध्यक्ष पद देवरी नगर पालिका के 12 पार्षदों ने अध्यक्ष नेहा जैन के खिलाफ 16 अगस्त को अविश्वास प्रस्ताव कलेक्टर को सौंपा है। यहां 15 पार्षदों में से 13 बीजेपी और 2 कांग्रेस के पार्षद हैं। अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए उन्हें 7 पार्षदों का समर्थन चाहिए। चुनाव के बाद से ही पार्षद दो धड़े में बंट गए थे।अध्यक्ष पद के लिए नेहा के खिलाफ भाजपा की ही आरती जैन मैदान में उतर गई थीं। उन्हें 7 पार्षदों का समर्थन मिल गया था, लेकिन कांग्रेस पार्षद नईम खान ने नेहा जैन को समर्थन देकर बाजी पलट दी। उस समय आरोप लगा कि नेहा जैन ने खरीद-फरोख्त के जरिए अध्यक्ष पद हासिल किया। नेहा जैन के पति अलकेश को पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल का करीबी माना जाता है। वहीं, आरती जैन के पति बबलू को देवरी विधायक ब्रज बिहारी पटेरिया का समर्थन हासिल है। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बबलू के समर्थक 6 पार्षदों ने नपा अध्यक्ष के खिलाफ धरना दिया था। उन्होंने अध्यक्ष पर वार्डों में विकास कार्य न करवाने के आरोप लगाए थे। एक हफ्ते तक चले धरने को कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए ब्रज बिहारी पटेरिया ने खत्म करवाया था। विधायक ने अपने समर्थक को बनाया विधायक प्रतिनिधि ब्रज बिहारी देवरी सीट से विधानसभा चुनाव जीते तो नगर पालिका का सियासी समीकरण भी बदल गया। विधायक बनने के बाद पटेरिया ने आरती के पति बबलू जैन को नगर पालिका में विधायक प्रतिनिधि बना दिया। इससे नगर पालिका में पटेरिया का दखल बढ़ गया। इस दौरान नेहा जैन को अध्यक्ष पद से हटाने की मांग तेज हो गई। दो साल का कार्यकाल पूरा होते ही 16 अगस्त को 12 पार्षदों ने कलेक्टर को अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कलेक्टर को पत्र सौंप दिया। दो दिन पहले स्थानीय नेताओं के साथ पार्षदों ने मुख्यमंत्री से भोपाल में मुलाकात भी की थी। पार्षदों ने 20 अगस्त को कलेक्टर से मुलाकात कर जल्द से जल्द परिषद की बैठक बुलाने की मांग की है लेकिन अब यह मामला लंबित है। नर्मदापुरम: एक तरफ मंत्री, दूसरी तरफ दो विधायकों के समर्थक नर्मदापुरम नगर पालिका अध्यक्ष का पद ओबीसी महिला के लिए रिजर्व है। भाजपा की नीतू यादव 29 वोट लेकर अध्यक्ष बनी थीं, लेकिन 2 साल का कार्यकाल (11 अगस्त 2024) पूरा होने से पहले ही उन्हें हटाने की मुहिम शुरू हो गई। नीतू के पति महेंद्र यादव को मंत्री राव उदय प्रताप सिंह का करीबी माना जाता है। अध्यक्ष को राज्यसभा सांसद माया नरोलिया का भी समर्थन है। बावजूद इसके उन्हें पद से हटाने के लिए 21 पार्षदों ने न सिर्फ मोर्चा खोला, बल्कि अविश्वास प्रस्ताव पर दस्तखत भी किए। नगर पालिका का विशेष सम्मेलन बुलाने के लिए 8 अगस्त को कलेक्टर स्वाति मीणा को पत्र भी सौंपा है। एक स्थानीय भाजपा नेता के मुताबिक, नगर परिषद में मंत्री उदय प्रताप सिंह के अलावा सोहागपुर विधायक विजयपाल सिंह और होशंगाबाद के पूर्व विधायक गिरिजाशंकर शर्मा के समर्थक पार्षद भी हैं। अब सिंह और शर्मा के समर्थक पार्षद नीतू यादव के खिलाफ लामबंद हुए हैं। इन पार्षदों की 17 अगस्त को तवा डेम रिसॉर्ट में एक बैठक भी हुई थी। पार्षदों का आरोप है कि उनकी अनदेखी हो रही है और अध्यक्ष विकास कार्यों में रुकावट बन रही है। इन पार्षदों ने 21 अगस्त को कलेक्टर से मुलाकात कर नगर पालिका का विशेष सम्मेलन बुलाने का दोबारा अनुरोध किया है। बताया जा रहा है कि संगठन स्तर पर पार्षदों को मनाने की जिम्मेदारी अब प्रभारी मंत्री राकेश सिंह को सौंपी गई है। टीकमगढ़ नगर पालिका: कांग्रेस का अध्यक्ष तो सम्मेलन की तारीख भी तय नर्मदापुरम और देवरी नगर पालिका के अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आने पर सरकार के नोटिफिकेशन का इंतजार किया जा रहा है जबकि टीकमगढ़ नगर पालिका अध्यक्ष अब्दुल गफ्फार (पप्पू मलिक) को हटाने के लिए विशेष सम्मेलन की तारीख भी तय हो गई। यहां 19 पार्षदों ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। जिनमें से भाजपा के 11, कांग्रेस के 6 और 2 निर्दलीय पार्षद हैं जबकि यहां कांग्रेस का बहुमत हैं। निर्दलीय पार्षदों ने अध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस का समर्थन किया था। पिछले दो साल से अधिकांश पार्षद, चाहे वह पक्ष हो या विपक्ष, अध्यक्ष की कार्यप्रणाली से नाराज चल रहे थे। यह नाराजगी 20 अगस्त को अविश्वास प्रस्ताव के रूप में सामने आई है। जिस दिन कैबिनेट में प्रस्ताव, उसी दिन अविश्वास प्रस्ताव मंजूर जिस दिन कैबिनेट बैठक में नगर पालिका एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव आया, टीकमगढ़ में उसी दिन एक घंटे बाद अध्यक्ष को हटाने की मांग करने वाले पार्षद कलेक्ट्रेट पहुंच गए और कलेक्टर अवधेश शर्मा को पत्र सौंप दिया। कलेक्टर भी तत्काल एक्शन में आ गए और उन्होंने सभी पार्षदों के बयानों की वीडियोग्राफी करवा ली। उनसे शपथ पत्र भी लिए और आगे की कार्रवाई के लिए एडीएम को निर्देशित कर दिया। एडीएम ने 2 सितंबर को विशेष सम्मेलन बुलाकर वोटिंग की तारीख तय कर दी। दमोह नगर पालिका: बीजेपी पार्षद लेकर आए अविश्वास प्रस्ताव दमोह नगर पालिका अध्यक्ष कांग्रेस की मंजू राय के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव पेश हो गया है। भाजपा के 20 पार्षदों ने कलेक्टर को शपथ पत्र देकर अध्यक्ष को हटाने की मांग की है। इनकी अगुवाई अध्यक्ष का चुनाव हार चुके विक्रांत गुप्ता कर रहे हैं। वे कांग्रेस की मंजू राय से 9 वोट से हार गए थे। दरअसल, नगर पालिका के 39 वार्डों में से भाजपा ने 14, कांग्रेस ने 17, सिद्धार्थ मलैया द्वारा बनाई पार्टी टीएसएम ने 5, बसपा ने एक और दो वार्डों में निर्दलीय जीते थे। बाद में टीएसएम के 5 और दोनों निर्दलीय भाजपा में शामिल हो गए। ऐसे में भाजपा पार्षदों की संख्या बढ़कर 21 हो गई। सूत्रों का कहना है कि भाजपा ने कांग्रेस के कुछ पार्षदों को क्रॉस वोटिंग के लिए तैयार कर लिया है। फिलहाल इनके नाम सार्वजनिक नहीं किए हैं। अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के लिए 21 अगस्त को 8 पार्षदों ने हस्ताक्षर कर पत्र कलेक्टर को सौंपा था। इसके बाद 12 पार्षदों ने 22 अगस्त को पत्र दिया। इधर, कलेक्टर सुधीर कोचर ने सभी पार्षदों से शपथ पत्र लेने के बाद नियमानुसार प्रक्रिया शुरू करने की बात कही है। सवाल: जहां अविश्वास प्रस्ताव आ गए, वहां नियम में संशोधन का क्या असर नगरीय निकाय अधिनियम के जानकार और वरिष्ठ वकील संजय अग्रवाल कहते हैं कि सरकार ने 20 अगस्त को कैबिनेट में संशोधन का प्रस्ताव पास कर दिया है, मगर अभी नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ है। ऐसी नगर पालिकाएं या परिषद, जहां अध्यक्ष का कार्यकाल 2 साल का पूरा हो गया है और उनके खिलाफ 20 अगस्त से पहले अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया है तो वहां नया नोटिफिकेशन लागू नहीं होगा। मगर ये देखना होगा कि सरकार संशोधन का जो नोटिफिकेशन जारी करेगी, उसकी भाषा क्या होगी? ऐसा तो नहीं है कि यह संशोधन भूलक्षित प्रभाव यानी अध्यक्ष का 2 साल का कार्यकाल पूरा होने की तारीख से लागू किया जा रहा हो?