मालवा-निमाड़ और नर्मदापुरम जैसे संभागों में सोयाबीन के गिरते दामों पर किसान आक्रोशित हैं। कई जिलों में विरोध और सरकार को ज्ञापन देने का सिलसिला जारी है। किसानों का आरोप है कि अभी ऊपज 3800 से 4200 प्रति क्विंटल पर बिक रही है जो साल 2012 के आसपास के दाम हैं। साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद नहीं होने से लागत भी नहीं निकल पाती। किसानों के मुताबिक अभी पिछले साल की ऊपज बाजारों में आ रही है और 15 सितंबर के बाद से ही नई ऊपज आएगी। अभी बाजारों में मूल्य औसत रूप से 3800 रुपए प्रति क्विंटल है। बारिश से भीगी ऊपज आने पर दाम और भी कम हो सकते हैं। बीते सालों में नर्मदापुरम और आसपास के जिलों के किसान धान पर तो मालवा के किसान कपास जैसी फसलों पर शिफ्ट हो चुके हैं। प्रति एकड़ लागत 20 से 22 हजार कांग्रेस के किसान प्रकोष्ठ के कार्यकारी अध्यक्ष केदार सिरोही ने कहा कि प्रति एकड़ 20 से 22 हजार रुपए आती है, जबकि अभी के मूल्य पर 18 हजार से 19 हजार ही आय हो रही है। भारतीय किसान संघ के प्रान्त प्रवक्ता राहुल धूत ने भी कहा है कि अभी 12 साल पुराने रेट मिल रहे हैं। आयत शुल्क घटाने से सोयाबीन के दाम गिरे हैं। वहीं सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डीएन पाठक ने कहा कि गिरते मूल्य की वजह से किसान इसकी खेती छोड़ रहे हैं। 12 साल में एमएसपी 2240 रु. से 4892 रु., पर खरीदी नहीं साल 2012-13 में सोयाबीन के लिए एमएसपी 2240 रुपए प्रति क्विंटल थी, जो अब बढ़कर 4892 रुपए प्रति क्विंटल हो चुकी है। हालांकि सरकार तिलहन फसलों की खरीदी नहीं करती है। सरकार ने सोयाबीन का 4892 रुपए प्रति क्विंटल की दर से एमएसपी रखा है पर प्रदेश में इस की सरकारी खरीद नहीं होती है। इसकी मुख्य वजह है कि सरकार के पास सार्वजनिक वितरण प्रणाली और तेल उत्पादन जैसी सरकारी सुविधाएं नहीं हैं। नुकसान से बचाएंगे
^मप्र में किसान हितैषी सरकार है। सोयाबीन के किसानों की मदद के पूरे प्रयास करेंगे। उनको नुकसान से बचाया जाएगा। एदल सिंह कंसाना, कृषि मंत्री, मप्र