त्यौहार उत्साह, उमंग और खुशियों का स्वरूप है। ऐसा ही पर्व है सिंधी समाज का थदड़ी। थदड़ी शब्द का सिंधी भाषा में अर्थ होता है ठंडी, शीतल। राखी के आठवें दिन इस पर्व को समूचा सिंधी समुदाय हर्षोल्लास से मनाता है। इस वर्ष 25 अगस्त, रविवार को यह पर्व सिंधी समाज बड़े धूमधाम से मना रहा है। समाजसेवी मनीष रिझवानी ने बताया कि आज से हजारों वर्ष पूर्व मोहनजोदड़ो की खुदाई में मां शीतला देवी की प्रतिमा निकली थी। ऐसी मान्यता है कि उन्हीं की आराधना में यह पर्व मनाया जाता है। थदड़ी पर्व को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां भी व्याप्त है। देवी को प्रसन्न करने के लिए उनकी स्तुति की जाती थी और थदड़ी पर्व मनाकर ठंडा खाना खाया जाता था। शनिवार को घरों में बने सिंधी व्यंजन मनीष रिझवानी ने बताया कि इस त्यौहार को मनाने के लिए एक दिन पहले शनिवार को हर सिंधी परिवार के घरों में तरह-तरह के सिंधी व्यंजन बनाए गए। जैसे कूपड़,गच,कोकी,सूखी तली हुई सब्जियां-भिंडी, करेला, आलू, रायता, दही-बड़े, मक्खन आदि। आटे में मोयन डालकर शक्कर की चाशनी से आटा गूंथकर कूपड़ बनाए जाते हैं। मैदे में मोयन और पिसी इलायची व पिसी शक्कर डालकर गच का आटा गूंथा जाता है। अब मनचाहे आकार में तल कर गच तैयार किए जाते हैं। रात को सोने से पूर्व चूल्हे पर जल छिड़क कर हाथ जोड़कर पूजा की जाती है। परिवारजन करते है पूजन इस तरह चूल्हा ठंडा किया जाता है। दूसरे दिन पूरे दिन घरों में चूल्हा नहीं जलता है एवं एक दिन पहले बनाया ठंडा खाना ही खाया जाता है। इसके पहले परिवार के सभी सदस्य किसी नदी,नहर, कुएं या बावड़ी पर एकत्रित होते हैं। वहां मां शीतला देवी की विधिवत पूजा की जाती है। इसके बाद वरिष्ठों से आशीर्वाद लेकर प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इस पूजा में घर के छोटे बच्चों को विशेष रूप से शामिल किया जाता है और मां का स्तुति गान कर उनके लिए दुआ मांगी जाती है कि वे शीतल रहें व माता के प्रकोप से बचे रहें। इस दिन घर के बड़े बुजुर्ग सदस्यों द्वारा घर के सभी सदस्यों को भेंट स्वरूप कुछ न कुछ दिया जाता है जिसे खर्ची कहते हैं। थदड़ी पर्व के दिन बहन और बेटियों को खासतौर पर मायके बुलाकर इस त्यौहार में शामिल किया जाता है। साथ ही उसके ससुराल में भी भाई या छोटे सदस्य द्वारा सभी व्यंजन और फल भेंट स्वरूप भेजे जाते हैं। इस तरह सिंधी समाज द्वारा बनाए जाने वाले थदड़ी पर्व कुछ रोचक और विशिष्ट पहलुओं को प्रस्तुत किया है।