पुराने सोयाबीन को रेट नहीं मिले, नई आवक जल्द:भाव नहीं मिलने से आक्रोश; समर्थन मूल्य से नीचे बिक रहा पीला सोना

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मंडियों में सोयाबीन समर्थन मूल्य से भी नीचे बिक रहा है। ‌फसल का वाजिब दाम नहीं मिलने से किसानों में आक्रोश है। दरअसल खेती किसानी में जिन वस्तुओं का उपयोग किया जाता है उसकी कीमतों में काफी बढ़ोतरी हुई है। इससे किसानों को उनकी फसलों को सही दाम नहीं मिल रहे हैं। 20-25 दिनों में नई सोयाबीन आने वाली है। अभी मंडियों में किसानों को 4 हजार रु. प्रति क्विवंटल दाम मिल रहे हैं जिससे उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही है। किसानों की स्थिति यह है कि उन्हें अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ रहा है। अभी सरकार ने सोयाबीन का एमएसपी 4850 रु. प्रति क्विंटल तय किया है। इसमें किसानों को 1 हजार रु. से 1300 रु. प्रति क्विंटल पर नुकसान हो रहा है। कृषि लागत और मूल्य आयोग (CASP) की रिपोर्ट के अनुसार सोयाबीन की उत्पादन लागत 3261 रु. प्रति क्विवंटल है लेकिन मंडियो में यह 3500 रु. से 4 हजार रु. के बीच बिक रही है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के रिकॉर्ड के अनुसार 2013-14 में सोयाबीन का औसत भाव 2823 रु. प्रति क्विंटल था जो आज की कीमतों के लगभग बराबर है। इंदौर में सोयाबीन का बड़ा रकबा (करीब दो लाख हेक्टेयर) है। इसके अलावा धार, खण्डवा, खरगोन में भी सोयाबीन का खासा उत्पादन है। दाम कम मिलने से किसानों में असंतोष है। जानिए किसानों की पीड़ा किसान शैलेंद्र पटेल, चंदनसिंह बड़वाया, बने सिंह, जितेंद्र पाटीदार व अन्य ने बताया कि सरकार की गलत नीतियों के कारण सोयाबीन के भाव नहीं बढ़े हैं। खाद, मजदूरी सहित कृषि वस्तुओं में काफी बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में लागत की कीमत ही नहीं मिल पा रही है। हमारी मांग है कि सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए अन्यथा मप्र के किसान भी आंदोलन की राह पर चलेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता रामस्वरूप मंत्री और बबलू जाधव ने बताया कि हम अभी अपनी बात सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार तक पहुंचा रहे हैं लेकिन ध्यान नहीं दिया जा रहा है। 2017-18 में भी किसानों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया गया था। फिर सोशल मीडिया के माध्यम से ही आंदोलन को गति मिली थी और बड़ा रूप लिया था। सरकार से गुहार है कि वे किसानों की समस्याओं पर ध्यान दें। अब जल्द ही सोयाबीन की नई फसल भी तैयार होने वाली है। ऐसे में दाम अच्छे मिले तो ही किसान संतुष्ट हो सकेंगे।