महाराष्ट्र में बंधक दंपती, बच्चों को कलेक्टर ने छुड़ाया:खदान मालिक ने त्योहार पर आने से रोका तो 12 मजदूर भागे, खंडवा में मिलेगा रोजगार

Uncategorized

महाराष्ट्र में काम करने वाले मजदूरों ने राखी के त्योहार पर खंडवा आने की इच्छा जताई तो खदान मालिक ने उन्हें बंधक बना लिया। तीन परिवार के करीब 17 लोग फंसे हुए थे। इनमें से दो परिवार के 12 लोग खंडवा आ गए। बचे एक परिवार की मदद के लिए सभी ने जनसुनवाई में कलेक्टर से गुहार लगाई। उन्होंने बंधक बने दंपती, बच्चों को छुड़ाया और घर भिजवाया। 15 अगस्त के दिन दंपती और उनके बच्चे गांव पहुंचे। तब जाकर आदिवासी परिवार ने बड़े उत्साह से राखी का त्योहार मनाया। पांच दिन बाद वे लोग खंडवा जिला मुख्यालय पर आए और कलेक्टर अनूपसिंह को मदद के लिए धन्यवाद कहा। इस दौरान कलेक्टर ने पौन घंटे तक चर्चा की। मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने का आश्वासन दिया। महिलाओं ने कलेक्टर को राखी बांधी। मजदूर बोले- खदान वाले ने मारपीट की, कमरे में बंद रखा हरसूद तहसील के डोटखेड़ा गांव के रहने वाले बालू गायकवाड़ का कहना है कि हम 3 परिवार के करीब 17 लोग थे। इनमें बच्चें भी शामिल है। हम लोग मजदूरी के लिए महाराष्ट्र गए थे। वहां खदान पर काम करते थे। राखी पर घर आने के लिए खदान मालिक सुरेश से कहा तो उसने खंडवा आने के लिए मना कर दिया। हम लोगों को 10 दिन तक कमरें में बंद कर दिया और मारपीट की। जैसे-तैसे करके 12 लोग वहां से भागे और खंडवा आए। 13 अगस्त को जनसुनवाई में कलेक्टर अनूपसिंह से शिकायत की। बताया कि एक परिवार अभी भी महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में बंधक है। शिकायत के दो दिन बाद 15 अगस्त को ही वो परिवार भी गांव पहुंच गया। प्रशासन ने मदद की, तब जाकर वे लोग भी त्योहार मनाने आ पाए। गांव में कोई काम नहीं, राशन, आधार कार्ड नहीं बने बालू ने बताया कि हमारे गांव डोटखेड़ा में कोई काम नहीं हैं। लोगों को रोजगार नहीं मिलता है। यहां तक की किसी के पास आधार तो किसी के पास राशनकार्ड नहीं है। सरकार की किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल पाता है। इसलिए हम लोगों ने गांव छोड़ दिया था और महाराष्ट्र चले गए। अब कलेक्टर साहब ने कहा है कि गांव छोड़कर मत जाना। तुम लोगों को राशनकार्ड, आधार कार्ड और सभी दस्तावेज बनाकर देंगे। मनरेगा में 100 दिन का काम भी दिया जाएगा। महाराष्ट्र में एक दंपती और उसके बच्चे फंसे हुए थे श्रम अधिकारी नवीन कुमार के मुताबिक, 13 अगस्त को करीब एक दर्जन लोग जनसुनवाई में पहुंचे थे। उन्होंने कलेक्टर से महाराष्ट्र में बंधक बनाने की शिकायत की। कलेक्टर के निर्देश पर हमने लाेगों से पूछताछ की। पता चला कि महाराष्ट्र में औरगांबाद रोड पर अहमदनगर जिले के भेडा गांव में कुछ आदिवासी परिवार मजदूरी करने चले गए थे। वे लोग क्रेशर खदान पर काम रहते थे। एक परिवार के रामाधर, उसकी पत्नी उषा और बच्चें वहीं फंसे हुए हैं। तत्काल अहमदनगर प्रशासन से बात की। अगले दिन रेस्क्यू कराया और 5 लोगों को ट्रेन से खंडवा भिजवाया। गांव में खदान बंद हो गई तो सभी लोग महाराष्ट्र चले गए मजदूरों के मुताबिक, डोटखेड़ा गांव के पास गिट्‌टी खदान पर सभी लोग काम करते थे। लेकिन कुछ साल से वो खदान बंद हो गई। खदान में पानी भरने से हादसे का डर रहता था, खासकर बच्चों के लिए। इसलिए हम लोग बच्चों काे भी हमारे साथ महाराष्ट्र ले गए। महाराष्ट्र जाने वालों में रामाधर, श्यामलाल, रामलाल का परिवार है। इनकी पत्नियां लताबाई, संगीता, उषा और करीब 11 बच्चें शामिल थे। एक ट्रॉली गिट्टी तोड़ने के सिर्फ 400 रूपए देता था मजदूर श्यामलाल का कहना है कि हम लोगों से बैल से भी ज्यादा मेहनत का काम कराया जाता था। खदान मालिक के लोग जेसीबी मशीन से बड़े-बड़े पत्थर निकालते और ट्रॉली में भरकर हमारे पास लाकर ढेर लगा देते थे। हम लोगों से पत्थर तुड़वाते थे। बड़े पत्थर को हथौड़ी से इस साइज में तोड़ना पड़ता था कि गिट्टी बन जाए। एक ब्रॉस यानी ट्रॉली भरकर गिट्टी बनाते थे तब जाकर 400 रूपए प्रति ट्रॉली के हिसाब से मिलते थे। हमारा एक परिवार मिलकर 3 ट्रॉली गिट्टी बनाता था। इस तरह रोज के एक हजार-1200 रूपए मिलते थे। 50 हजार उधार लिए तो 70 हजार रूपए चुकाने पड़े रामाधर ने बताया कि वे लोग गांव के मकान पर टीन डालने, शादी-गमी, इलाज कराने या बकरी खरीदने के लिए खदान मालिक से एडवांस रूपए लेते थे। उसने खुद ने 50 हजार रूपए उधार लिए थे। थोड़े-थोड़े करके मालिक को पैसे वापस दे दिए। इसके बाद वह 20 हजार रूपए अलग से मांगने लगा। कहने लगा कि 50 हजार रूपए के बदले 70 हजार रूपए देना पड़ेगा। हमने बाद में उसे 20 हजार रूपए भी दे दिए। फिर भी परेशान करने लगा। मुझे, मेरी पत्नी और बच्चों को उसके घर ले गया। जहां कमरें में बंद कर दिया। कलेक्टर ने भाई का फर्ज निभाया, इसलिए राखी बांधी कलेक्टर से मिलने पहुंचे लोगों में महिलाएं भी थी। जिन्होंने कलेक्टर अनूपसिंह के हाथ में रक्षासूत्र बांधा। राखी बांधने वाली लताबाई, संगीता और उषाबाई ने कहा कि हम लोग घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर फंसे हुए थे। वहां 10 दिन से बंद कमरें में परेशान थे। सरकार ने हमारी मदद की। गांव आए तो पता चला कि हमें छुड़ाने के लिए कलेक्टर साहब ने महाराष्ट्र सरकार से बात की थी। वैसे ही हम लोग कलेक्टर से मिलने आए और आभार जताया। उन्होंने भाई का फर्ज निभाया इसलिए हमने उन्हें राखी बांधी। उन्होंने कहा है कि सरकार की योजनाओं का लाभ दिलाएंगे। कलेक्टर बोले- अब पलायन नहीं करेंगे, गांव में रोजगार मिलेगा कलेक्टर अनूपसिंह ने कहा कि हरसूद के पास डोटखेड़ा गांव है। जहां गिट्टी खदान के पास 8-10 आदिवासी परिवार रहते है। किसी परिचित के जरिये कुछ परिवार महाराष्ट्र चले गए थे। जहां वे लोग गिट्टी तोड़ने का काम करते थे। वहां इन लोगों को बंधक बनाए जाने की शिकायत मिली थी। इस मामले में लेबर इंस्पेक्टर नवीन ने महाराष्ट्र के असिस्टेंट कमिश्नर लेबर से बात की। महाराष्ट्र के असिस्टेंट कमिश्नर ने हमारी मदद की और एक टीम को खदान पर भेजा। जहां दपंती और उनके बच्चों को खदान मालिक से बंधक मुक्त कराया। उनकी टीम मजदूरों के साथ भुसावल तक ट्रेन में बैठकर आई। जैसा कि खुद मजदूरों ने बताया है। मजदूर बता रहे है कि उन्हें काम तो काम राशन भी नहीं मिलता है। कई सारी परेशानियां है। हमने तत्काल सीईओ जनपद पंचायत हरसूद और फूड इंस्पेक्टर को गांव विजिट के निर्देश दिए है। वे लोग आज ही गांव जाएंगे और इन परिवार से मिलेंगे। आधार, समग्र और राशन पर्ची से जोड़कर उन्हें शासन की योजनाओं का लाभ दिलाया जाएगा। ये लोग अब पलायन नहीं करें इसके लिए उन्हें गांव में ही मनरेगा के तहत 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराएंगे। जो युवा कोई काम सीखने के इच्छुक है तो उन्हें इस संबंध में ट्रेनिंग दी जाएगी।