अभक्तांस्ताश्च विज्ञाय न ददौ स कथामृतम् । श्रीमद्भागवती वार्ता सुराणामपि दुर्लभा ।।…अर्थात भागवत कथामृत देवताओं को भी दुर्लभ है। इस कथामृत की बराबरी देवताओं का अमृत भी नहीं कर सकता। एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में मंगलवार शाम यह बात कही। परीक्षित जीवात्मा है, श्रीकृष्ण परमात्मा महाराजश्री ने बताया कि राजा परीक्षित को जब शृंगी ऋषि ने श्राप दे दिया, कि तुम्हें सातवें दिन तक्षक नाग डंसेगा। तब शापित राजा मृत्यु के भय से मुक्ति के लिए गंगा तट पर महान विद्वानों के बीच पहुंचा। सभी ने कहा ब्राह्मण द्वारा दिए गए श्राप को कोई नहीं रोक सकता। इस श्राप से मुक्त करने का कोई उपाय नहीं है। तक्षक के डंसने का भी कोई उपाय नहीं है। उसी समय महाप्रभु शुकदेवजी पधारे और कहा राजन तुम चिंता मत करो। मैं तु्म्हें सात दिन में मुक्ति दिलाउंगा और वे राजा को कथा सुनाने को तैयार हुए। इतने में देवतागण अमृत लेकर आए, उन्होंने शुकदेवजी से कहा कि यह अमृत आप परीक्षितजी को पिला दीजिए। वे अमर हो जाएंगे और कथामृत हमें दे दीजिए। शुकदेवजी ने कहा कि तुम्हारा अमृत कथामृत की बराबरी नहीं कर सकता। तुम्हारा अमृत कांच है और यह मणि है। इसे सुपात्र को ही दिया जाता है। इसलिए मैं इसे राजा परीक्षित को ही दूंगा। इस तरह जो कथामृत देवताओं को भी दुर्लभ है, वह राजा परीक्षित जैसे समर्पित भक्तों को प्राप्त हो जाता है। परीक्षित जीवात्मा है, श्रीकृष्ण परमात्मा हैं। माता के गर्भ में जीव की रक्षा परमात्मा ही करते हैं। इस तरह उत्तरा के गर्भ में अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र के प्रहार से राजा परीक्षित की रक्षा की थी। प्रत्येक जीव की सात दिनों में ही किसी भी दिन मृत्यु होती है क्योंकि दिन सात ही होते हैं, पर जो परीक्षित की तरह परमात्मा को समर्पित होकर भागवत कथामृत प्राप्त कर लेता है, वह जन्म-मरण के बंधन से छुटकारा प्राप्त कर मुक्ति को प्राप्त कर लेता है।