IIT इंदौर ने डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) के साथ मिलकर हाई स्पीड इमेजिंग में एक अभूतपूर्व टेक्नीक डेवलप की है। यह नई टेक्नीक एक्सप्लोसिव इवेंट को देखने और समझने के हमारे तरीके को बदलने की क्षमता रखती है, जो इसे एयरोस्पेस, रक्षा और इंडस्ट्री जैसे क्षेत्रों में एक गेम-चेंजर बना रही है। इस रिसर्च का नेतृत्व IIT इंदौर के फैकल्टी मेंबर प्रोफेसर देवेंद्र देशमुख कर रहे हैं। एक्सप्लोसिव इवेंट के दौरान तेज गति से गतिविधि करने वाले कणों की इमेजिंग वैज्ञानिकों के लिए लंबे समय से एक चुनौती रही है। शैडोग्राफी, श्लिरेन और एक्स-रे इमेजिंग जैसी पारंपरिक टेक्नीक इमेज को कैप्चर करने के लिए 1 माइक्रो सेकेंड का न्यूनतम एक्सपोजर समय देती है। यह बहुत ज्यादा एक्सपोजर समय है (फेनोमेना की स्पीड की तुलना में) और इसके परिणामस्वरूप इमेज धुंधली हो जाती है। जिससे विवरण नष्ट हो जाता है साथ ही रिसर्चस को हाई स्पीड की घटनाओं के बारे में अधूरी जानकारी ही मिल पाती है, फिर भी इन हाई स्पीड वाली वस्तुओं और फेनोमेना के व्यवहार को समझाना महत्वपूर्ण है, खासकर उन एरिया में जहां सुरक्षा और एक्यूरेसी सर्वोपरि है, जैसे कि रक्षा और एयरोस्पेस। इस चुनौती का समाधान करने के लिए प्रोफेसर देशमुख और उनकी टीम ने डिजिटल इनलाइन होलोग्राफी के प्रिंसिपर्स का इस्तेमाल करके एक नई इमेजिंग मेथड डेवलप की है। यह दृष्टिकोण धूल या कम्बशन क्लाउड में भी वस्तुओं के बहुत अधिक स्पष्ट और अधिक विस्तृत दृष्ट प्रदान करता है, जो कि पहले कैप्चर करना मुश्किल था। कैप्चर की गई इमेज न केवल रिसचर्स को क्लियर तस्वीर देते है, बल्कि वस्तुओं के वेग, त्वरण व अंतरिक्ष में विस्तार के बारे में बहुत सारी जानकारी को सटीक रूप से निकालना भी संभव बनाती है। इस स्तर का विवरण रिससर्च के लिए आवश्यक है, जिन्हें न केवल यह समझने की जरूरत है कि वस्तुएं कहां है, बल्कि यह भी कि एक्सप्लोजन के बाद की विशृंखल स्थिति में कैसे गतिविधि और व्यवहार करती है। IIT इंदौर के डायरेक्टर प्रोफेसर सुहास जोशी ने कहा कि – इस मेथड को जो चीज वास्तव में खास बनाती है वह टाइम रिजॉल्यूशन को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने की इसकी क्षमता, जबकि पारंपरिक तरीके 1 माइक्रो सेकेंड एक्सपोजर समय तक सीमित थे, वहीं यह नई टेक्नीक 50 नैनोसेकेंड से भी कम एक्सपोजर समय के साथ इमेज को कैप्चर कर सकती है। यह सिस्टम प्रति सेकेंड 7 लाख फ्रेम तक रिकॉर्ड करे में समक्ष है, जिससे रिसचर्स को एक्सप्लोजन के दौरान पार्टिकल्स के व्यवहार का वास्तविक समय पता चलता है। टाइम रिजॉल्यूशन में यह प्रभावशाली वृद्धि धूल, धुएं या अन्य दृश्य अवरोधों से भरे वातावरण में भी हाई स्पीड से गतिविधि करने वाली वस्तुओं को अधिक विस्तृत ट्रैकिंग में सहायता करती है। प्रोफेसर देशमुख ने कहा कि इस इनोवेशन के मूल में एक उच्च आवृत्ति (HF) लाइट सोर्स है। इस विशेष लाइट सोर्स को मुख्य रूप से घने धूल के बादलों को भेदने की इसकी क्षमता के लिए चुना गया है। लाइट व्यवस्था के लिए ऑप्टिक्स सेटअप में हाई-स्पीड लेजर को शामिल करके प्रोफेसर देशमुख की टीम ने पिछली मैथड की सबसे बड़ी रुकावटों में से एक को दूर कर दिया है। अस्पष्ट वातावरण में खराब विजिबिलिटी। अब धूल और आग के बीच भी स्पीड में रहने के दौरान सिस्टम हाई स्पीड वाले पार्टिकल्स की स्पष्ट और साफ इमेज कैप्चर कर सकता है। लेजर लाइट सिस्टम में 10 नैनोसेकेंड से शुरू होने वाली एडजेस्टेबल पल्स विड्थ है। यह सुविधा रिसचर्स को विभिन्न प्रयोगात्मक सेटअपों के लिए सिस्टम को अनुकूलित करने की अनुमति देती है, जिससे यह हाई स्पीड के इवेंट की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए पर्याप्त रूप से काफी उपयोगी हो जाता है। चाहे इस काम के माध्यम डिटोनेशन की गतिशीलता का अध्ययन करना हो या पदार्थों पर हाई स्पीड वाले पार्टिकल्स के प्रभाव का विश्लेषण करना हो, यह टेक्नीक विस्तार और एक्यूरेसी का ऐसा स्तर प्रदान करती है जो पहले अप्राप्य था। इस टेक्नीक का इस्तेमाल मैन्युफैक्चरिंग सेटिंग में मटेरियल कटिंग, स्प्रे फॉर्मेशन और फ्लूइड मैकेनिक्स जैसी ज्यादा हाई स्पीड वाली प्रोसीजर का विश्लेषण करने के लिए किया जा सकता है। इस तरह के स्टडी से प्राप्त विशेष जानकारी अधिक कुशल प्रोसीजर और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों का निर्माण कर सकती है, जो इस टेक्नीक का बहुमुखी प्रतिभा और दूरगामी प्रभाव को और ज्यादा प्रदर्शित करती है।