गायत्री परिवार से जुड़े बोदरली ग्राम के शिक्षक संजय राठौड़ हर साल सावन माह में सोमवार को बिल्वपत्र के पौधे तैयार कर वितरित करते है। इस साल भी रक्षाबंधन के अवसर पर उन्होंने 300 बिल्वपत्र के पौधे, 50 सीताफल, कटहल, जामुन, आम, अशोक, अमरूद आदि फलदार पौधे लोगों को निःशुल्क वितरीत कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। उन्होंने कहा बिल्वपत्र का पौधा भगवान शिव का प्रिय माना जाता है। शिवलिंग पर अर्पित करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इन दिनों भक्तगण बिल्वपत्र के पत्ते शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। बिल्वपत्र का पौधा एक साल तक गमले में रोपित कर उसे प्रतिदिन जल अर्पित किया जाता है। शास्र में इसे भी अभिषेक माना गया है। सालभर बाद पौधे को जमीन में रोपित किया जाता है। बिल्वपत्र के पत्ते त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं जिससे इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है। आयुर्वेद में बिल्वपत्र का उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार के लिए किया जाता है। इसके पत्ते, फल और जड़ें पाचन संबंधी समस्याओं, मधुमेह और हृदय रोगों में लाभकारी मानी जाती है। गायत्री परिवार के वसंत मोंडे ने बताया गायत्री परिवार द्वारा हर साल दस हजार इको फ्रेंडली मिट्टी की गणेश मूर्ति उपलब्ध कराकर मूर्ति के साथ बिल्वपत्र का पौधा वितरित किया जाता है। शिक्षक संजय राठौड़ ने बताया शिवपुराण में वर्णित है कि घर पर बेल का वृक्ष लगाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। मान्यता यह भी है कि जिस स्थान पर यह पौधा या वृक्ष होता है वह काशी तीर्थ के समान पवित्र और पूजनीय स्थल हो जाता है। इसका प्रभाव यह होता है कि घर का हर सदस्य यशस्वी तथा तेजस्वी बनता है। साथ ही ऐसे परिवार में सभी सदस्यों के बीच प्रेम भाव रहता है। घर में किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा नहीं आती। वातावरण को शुद्ध बनाए रखने में बिल्वपत्र का वृक्ष महत्वपूर्ण है। यह वृक्ष अपने आसपास के वातावरण को शुद्ध तथा पवित्र बनाए रखता है।