बहन-भाई के अनमोल रिश्ते की आपने हजार कहानियां सुनी होंगी। किसी में बहन के समर्पण का किस्सा होगा तो किसी में भाई के त्याग की कहानी। इन सब कहानियों से परे हम आपको आज रक्षाबंधन के मौके पर मध्यप्रदेश के ऐसे भाई की कहानी से रूबरू कराते हैं, जिसने मरकर भी बहन से किया वादा निभाया। जी हां…मरकर भी। ये बुंदेलखंड की हर बहन का भाई है। बहनें घर में होने वाली किसी भी शादी का कार्ड रामराजा सरकार के दरबार में रखने के बाद सीधे इस भाई को देने जाती हैं। अब तो आलम ये है कि मध्यप्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान और पंजाब तक में बहनें इस भाई को सगे भाई से भी बढ़कर मानती हैं। इस भाई का नाम है- दीवान हरदौल। आखिर कौन हैं ये दीवान हरदौल और मरकर भी कैसे निभाया वादा, पढ़िए पूरी कहानी… सबसे पहले कहानी के मुख्य किरदारों से आपको परिचित कराते हैं। 17वीं सदी में बुंदेलखंड के महाराज थे राजा वीर सिंह देव। महाराज के दो बेटे थे- जुझार सिंह और हरदौल सिंह। उम्र के आखिरी पड़ाव पर महाराज ने अपने बड़े बेटे जुझार को गद्दी सौंप दी। छोटे बेटे हरदौल सिंह को दीवान बनाया। ये वो दौर था जब मुगलों की भूख सीमा विस्तार को लेकर बढ़ती जा रही थी। बुंदेलखंड में जुझार सिंह उनके सामने घुटने टेकने को तैयार नहीं थे। नतीजा, एक के बाद एक कई छोटी-बड़ी लड़ाइयां लड़ने में जुझार सिंह का ज्यादा समय गुजरने लगा। राजा ने दी भाभी का हाथों जहर पीने की सजा बुंदेलखंड की लोक कथाओं में ही नहीं ऐतिहासिक दस्तावेजों में भी इस बात का जिक्र है। जुझार सिंह के कुछ दरबारियों ने कान भरे कि आप युद्ध में व्यस्त रहते हैं इधर, आपके छोटे भाई दीवान हरदौल और आपकी पत्नी रानी चंपावती के बीच प्रेम प्रसंग चल रहा है। ये सुनने के बाद जुझार सिंह ने ये फैसला किया कि दीवान हरदौल को इसका दंड मिलेगा। उन्होंने आदेश दिया कि रानी चंपावती अपने हाथों से जहर का प्याला हरदौल को देंगी। हरदौल भाभी को मां समान मानते थे। भाभी के हाथ कांप गए। उन्होंने हरदौल को जहर देने से इनकार कर दिया। भाभी का मान रखने के लिए हरदौल ने खुद ही जहर का प्याला पी लिया। इससे उनकी मौत हो गई। बहन ने बुलाया तो रस्में निभाने मरकर भी आए हरदौल बुंदेलखंड में किवदंती है कि जुझार सिंह और हरदौल की एक बहन भी थी। बहन का नाम था- कुंजावती। हरदौल को अपनी बहन कुंजावती से खूब स्नेह था। कुंजावती की बेटी के ब्याह का वक्त आया तो उसने अपने भाई जुझार से आने को कहा। जुझार ने ये कहकर कुंजावती को लौटा दिया कि अपने भाई हरदौल को बुला लो। तब तक हरदौल मर चुके थे। दतिया में उनकी समाधि बन चुकी थी। वहांं जाकर कुंजावती फूट-फूट कर रोई। भाई से कहा कि वो अपनी भांजी की शादी में ममेरी की रस्म अदा करने के लिए भात लेकर आ जाए। बुंदेलखंड में रिवाज है कि बहनें अपने बच्चों की शादी में भाई के घर से भात मांगकर लाती हैं। आखिरकार कुंजावती जब खंजर लेकर समाधि पर ही खुदकुशी की कोशिश करने लगी तो हरदौल प्रकट हुए। उन्होंने बहन से वादा किया कि वो भात लेकर भांजी की शादी में जरूर आएंगे। कुंजावती समाधि से लौट गई। जब शादी की रस्में की जा रही थीं, तो ये देखकर सब हैरान रह गए कि गाड़ियां भात लेकर आ गई हैं, लेकिन उनमें कोई सवार नहीं है। यानी अदृश्य रहकर हरदौल ने बहन से किया वादा निभाया। कुंजाबाई ने हर बहन के लिए मांग लिया वरदान शादी वाले दिन कुंजावती के दरवाजे पर बैलगाड़ियों से अनाज, उपहार और बाकी सामान पहुंच गया, लेकिन हरदौल नहीं दिखाई दिए। बुंदेली व्यंजनों की पंगत शुरू हो गई, बुंदेलखंड में परंपरा के अनुसार मामा लोटे में घी लेकर परोसते हैं, पर यहां लोटा तो दिखाई दे रहा था, परोसने वाला नहीं। दूल्हे ने लोटे को पकड़ लिया और कहा कि जब तक मामा दर्शन नहीं देंगे, वह भोजन नहीं करेंगे। हरदौल की बहन कुंजावती ने प्रार्थना करते हुए कहा कि, भैया वैवाहिक कार्य को निर्विघ्न संपन्न कराइए। तब हरदौल ने दर्शन देकर अपनी बहन से कहा कि आज जो भी वरदान मांगेगी, वह पूरा होगा। कुंजावती ने वरदान मांगा कि जिस तरह आज आपने अपनी बहन के घर पर वैवाहिक कार्य को निर्विघ्न संपन्न कराया, जब भी बुंदेलखंड की कोई भी बहन आपको शादी का कार्ड देने आए आप उस बहन का काम भी इसी तरह संभालना। तब से हर बहन शादी का कार्ड राम राजा के दरबार में देने के बाद सबसे पहले अपने भाई हरदौल के मंदिर आकर उन्हें न्योता देती है। गांव-गांव में बनने लगा ‘हरदौल चबूतरा’ ये कहानी एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे मुंह होते हुए हर गांव तक पहुंच गई। गांव-गांव में हरदौल चबूतरा बनने लगा। ओरछा में हरदौल मंदिर भी बना है। इतिहास के नजरिए से हरदौल की कहानी ब्रिटिश हुकूमत के दौर में लिखी गई इंपीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया के वॉल्यूम-9 में पेज नंबर 354 पर दीवान हरदौल का जिक्र है। बताया गया है कि उनके अनुयायी मध्य प्रदेश के सीमावर्ती राज्यों के अलावा पंजाब तक फैले हुए हैं। उनका जन्म 1664 में हुआ था और उनकी मृत्यु 1688 में महज 24 साल की उम्र में हो गई थी।