प्यार की अनोखी परंपरा:आदिवासी बहनें हाथ पर गुदवाती हैं भाइयों के नाम

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आदिवासी समाज में भाई-बहन के प्रेम की अनोखी परंपरा है। इसमें बहनें भाइयों का नाम अपने हाथ पर गुदवाती हैं। इस परम्परा का आज भी बहनें पूरी शिद्दत से पालन कर रही हैं। इसके लिए कोई दबाव नहीं बनाता है। छोटी बच्चियां आसपास की बहनों को देखकर भाइयों के नाम हाथ पर गुदवाने के लिए खुद आगे आती हैं। गुदवाने में दर्द तो होता है, लेकिन बहनों का कहना है कि भाई के लिए प्रेम ही ऐसा होता है कि दर्द सह लेते हैं। जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) के प्रदेश संरक्षक डॉ. अभय ओहरी कहते हैं कि हमारे समाज में गणचिह्न या टोटम की परंपरा सालों से है। इसमें शरीर पर गणचिह्न गुदवाकर खून के रिश्तों के प्रति प्रेम जताया जाता है। इसमें जहां बहनें भाइयों का नाम गुदवाती हैं तो पशु, पक्षी और पेड़ों के चिह्न गुदवाकर उनके प्रति भी अपनापन जताया जाता है। आदिवासी विकास परिषद के प्रदेश महामंत्री प्रेमसिंह गामड़ का मानना है कि संचार क्रांति से पहले यह प्रेम प्रदर्शन का एक तरीका था। फिर परंपरा बनी और इसे आज के युवा भी निभा रहे हैं। प्रदेश में 21.8 फीसदी आदिवासी पुरुष भी गुदवाते हैं प्रदेश में दो 21.8 फीसदी आबादी आदिवासी समाज की है। 47 विधानसभा में इनका बाहुल्य है। समाज के भाई भी अपनी बहनों, मां और पिता का नाम गुदवाकर प्रेम प्रदर्शित करते हैं। 14 साल की उम्र में गुदवाया था दोनों भाइयों के नाम का पहला अक्षर : पिपलीपाड़ा की अनिता (28) पति मुकेश सिंगाड़ कहती हैं कि 14 साल की उम्र में मैंने दोनों भाइयों के नाम के पहले अक्षर हाथ पर गुदवाए थे। गांव देथला से रावटी मेले में गए थे। पहले AM यानी अनिता मईड़ा (शादी के पहले का सरनेम) फिर बड़े भाई देवेंद्र का D और छोटे भाई ईश्वर का E गुदवाया। चार अक्षर एक साथ गुदवाने से सूजन आ गई थी लेकिन 3 दिन में ठीक हो गई थी। मम्मी ने भी गुदवा रखा है मामा का नाम : रानीसिंग की पेमा (20) पिता राधेश्याम मुनिया बताती हैं कि मेरी मम्मी ने भी मामा का नाम गुदवा रखा है। 4 साल पहले मैं सहेलियों के साथ रावटी के मेले में गई थी। वहां हम सभी सहेलियों ने भाइयों के नाम हाथ पर गुदवाए थे। मैंने हाथ के अंगूठे के पास TP गुदवाया है। T यानी मेरा बड़ा भाई तेजू और P से मेरा नाम पेमा। हाथ पर बड़े भाई ईश्वर का नाम भी अंग्रेजी में गुदवाया है।