जेल में बंद हरदा ब्लास्ट के आरोपी का इंटरव्यू:सवाल-अफसरों को कितने पैसे दिए, जवाब- बिना लेन-देन कोई धंधा नहीं होता

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हरदा की जिस पटाखा फैक्ट्री ने 13 लोगों की जान ली, उसके मालिक राजेश अग्रवाल को इन मौतों का जरा भी अफसोस नहीं है। अग्रवाल का कहना है कि डंपर रोज सड़क पर 100-50 लोगों को कुचल देते हैं, क्या वो डंपर बंद हुए? हमीदिया अस्पताल के बच्चा वार्ड में बच्चे जलकर मर गए तो क्या अस्पताल पर ताला लग गया? 6 फरवरी को हरदा की पटाखा फैक्ट्री में हुए ब्लास्ट के चंद घंटे बाद ही पुलिस ने राजेश अग्रवाल और उसके भाई को गिरफ्तार कर लिया था। पिछले 6 महीने से वह भोपाल सेंट्रल जेल में है। मेडिकल चेकअप के लिए उसे अस्पताल लाया जाता है। दैनिक भास्कर ने इस दौरान अस्पताल में ही राजेश अग्रवाल से बात की। उससे हादसे को लेकर कई सवाल किए। पूछा कि फैक्ट्री चलाने के लिए सरकारी अफसरों को कितना पैसा देते थे, तो अग्रवाल ने कहा- अफसरों से लेन-देन किए बिना कोई धंधा नहीं कर सकता। पढ़िए, पटाखा फैक्ट्री के मालिक राजेश अग्रवाल का इंटरव्यू… सवाल: आप उस वक्त कहां थे, जब फैक्ट्री में आग लगी? जवाब: हम फैक्ट्री से 35 किलोमीटर दूर थे। छोटा भाई सोमेश और मैं खातेगांव में एक जमीन देखने गए थे। हम वहां होटल बनाना चाहते थे। पटाखे का काम छोड़ना चाहते थे। फैक्ट्री में आग की खबर लगी तो हमें कहा गया कि तुम हरदा मत आना, लोग जान ले लेंगे। हम इंदौर की तरफ भागे। मेरा भाई मुझसे कह रहा था कि हम सरेंडर कर देते हैं। मैंने ही कहा कि लोग गुस्से में हैं, पुलिस वाले भीड़ को कंट्रोल नहीं कर पाएंगे। सवाल: आपको मालूम है, फैक्ट्री में आग लगने से कितने लोगों की मौत हुई? जवाब: हमारी फैक्ट्री में काम करने वाले सिर्फ 6 लोगों की माैत हुई। बाकी 7 लोग तो वो थे, जिनका फैक्ट्री से कोई वास्ता नहीं था। घायल भी दूसरे लोग हुए हैं। किसी व्यक्ति का एक्सीडेंट हुआ तो उसने भी अपना नाम लिखा दिया कि पटाखा फैक्ट्री में काम करते हुए जख्मी हुआ। ऐसे कई लोगों ने खुद को जख्मी बता दिया, जिनके शरीर पर खरोंच तक नहीं थी। हमारी फैक्ट्री के पीछे 14-15 मकान हैं। ये मकान प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने थे। अब वो कह रहे हैं कि मेरा 15 लाख और 20 लाख का मकान था। फिर भी हम मृतकों को मुआवजा देने तैयार हैं। जिनके मकान टूटे, उनके मकान रिपेअर कराने के लिए तैयार हैं। सवाल: फैक्ट्री में आग कैसे लगी? जवाब: मुझे बताया गया कि आग पीछे की तरफ से लगी। हर महीने की 4 तारीख को श्रम विभाग और एसडीओपी को फैक्ट्री की रिपोर्ट जाती थी। 4 फरवरी को रिपोर्ट गई थी, 6 फरवरी को आग लगी। फैक्ट्री में चारों ओर सीसीटीवी कैमरे लगे थे। 50 किलो के 25 और 10 किलो वाले 35 फायर एक्सटिंग्विशर लगे थे। इसके अलावा 3 बोर थे। सभी में वायरिंग थी। 1 हजार लीटर की 20 टंकियों में पानी भरा हुआ था। छत पर 15 हजार लीटर की पानी की टंकी थी। हर महीने श्रम विभाग, थाना, पुलिस के अधिकारी आते थे, जांच करते थे। साल में 4 बार एसडीएम भी आते थे। सवाल: फिर आग क्यों नहीं बुझाई गई? जवाब: बारूद की फैक्ट्री का नियम है, आग लगी तो पहले भागकर जान बचाओ। जान है तो जहान है। मौत सिर्फ उनकी हुई, जो भाग नहीं पाए। जो लोग आग देखने गए, वीडियो बनाने गए…उनकी भी जान गई। सवाल: आपके चेहरे पर तो शिकन तक नहीं है, क्या आपको अफसोस नहीं है? जवाब: अफसोस है, लेकिन सीना चीरकर थोड़े बता सकता हूं। जन्म देने वाले मां-बाप की मौत को भी इंसान 12 घंटे में भुला देता है। खाना-पीना शुरू कर देता है। डंपर से रोजाना 100-50 लोगों की मौत हो जाती है तो सरकार डंपरों को बंद कर देती है क्या? मेरी फैक्ट्री में हादसा हुआ, लेकिन कलेक्टर ने मेरे बड़े और छोटे भाई की फैक्ट्री का भी माल जला दिया। हमीदिया में आग लगने से बच्चे मर गए तो क्या हमीदिया अस्पताल में ताला लगा दिया गया? फिर हमारी फैक्ट्री में क्यों ताला लगा दिया? हमारी तो 30 साल की मेहनत चंद घंटों में खत्म हो गई। ये दुश्मन की साजिश भी हो सकती है। हमने प्रशासन को बताया भी, लेकिन हमारी सुनने वाला कौन है? हमारा तो घर भी सील कर दिया। परिवार के 11 सदस्य हैं, लेकिन वो 4 जगह रह रहे हैं। मेरी मां और छोटी बेटी अलग रह रही है। छोटे भाई की पत्नी अपने मायके में है। मेरी पत्नी अपने मायके में है। सवाल: आपकी किडनी ट्रांसप्लांट होनी थी, क्या हुआ? जवाब: 25 मार्च 2024 की तारीख तय हो गई थी। कोलकाता में ट्रांसप्लांट होना था। मेरी बड़ी बेटी मुझे किडनी डोनेट करने वाली थी, लेकिन क्या से क्या हो गया? मेरी 4 बेटियां हैं, 1 बेटा है। किसी की शादी नहीं हुई है। हम अपना दर्द किसे बताएं? हम दोनों भाई जेल में हैं। दोनों बड़ी बेटियां कोर्ट-कचहरी देख रही हैं। वे ही वकीलों से मिलती हैं। पूरा केस वही देख रही हैं। सवाल: आपके पास 15 किलो विस्फोटक का लाइसेंस था, लेकिन हजारों टन पटाखा बना रहे थे? कौन था आपके पीछे? जवाब: हमारे पास केमिकल रॉ मटेरियल की ट्रेडिंग का भी काम था। हम इंदौर, भोपाल तक माल भेजते थे। जहां तक बारूद की बात है तो इसे बनाना पड़ता है। एल्यूमीनियम पाउडर, बेरियम और दूसरे केमिकल मिलाकर हम बारूद बनाते थे। सब्जी में जैसे तय मात्रा में नमक, हल्दी, मिर्च डालते हैं, वैसे ही बारूद बनाने के लिए तय मात्रा में सारे केमिकल मिलाने पड़ते हैं। फिर वो प्रोसेस होता है। हम 1990 से पटाखे के कारोबार में हैं। हमारे दादा और पिता ने भी पटाखे का काम किया था। 15 किलो का लाइसेंस ऐसा था कि रोज बनाकर स्टॉक रखते थे। रोज तो पटाखा बिकता नहीं। दिवाली और शादी-ब्याह में पटाखे बिकते हैं। एक रस्सी बम बनाने में 14 दिन लगते हैं। दिवाली का बिजनेस 4 से 6 दिन का रहता है। हमें पहले से स्टॉक बनाकर रखना पड़ता था। सवाल: आपकी फैक्ट्री में पहले भी हादसे हुए। आपने पैसे बांटकर सबका मुंह बंद करा दिया? जवाब: हमारी जमीन पर कभी हादसे नहीं हुए। हां, ये सही है कि मैंने दो लोगों को मुंह बंद करने के लिए 5-5 लाख रुपए दिए थे। ऐसा इसलिए, ताकि कोर्ट-कचहरी के चक्कर न काटना पड़ें। सवाल: हरदा के तत्कालीन कलेक्टर ऋषि गर्ग ने आपका लाइसेंस सस्पेंड किया तो आप कमिश्नर से कैसे स्टे ले आए? जवाब: ये तो होता ही है, नीचे से कोई एक्शन हुआ तो ऊपर से ही रिलीफ मिलता है। कलेक्टर ने किया तो कमिश्नर से मिले। कमिश्नर ओके नहीं करते तो हाईकोर्ट जाते। कहीं न कहीं तो रिलीफ मिलता। सवाल: क्या आप कलेक्टर से भी नहीं डरते थे? आपने हरदा कलेक्टर गर्ग के खिलाफ हाईकोर्ट में व्यक्तिगत शिकायत की थी? जवाब: उन्होंने मेरा धंधा बंद करवा दिया था। ऐन दिवाली से पहले लाइसेंस सस्पेंड कर दिया। कलेक्टर गर्ग ने हमें परेशान कर दिया था। मैंने तो रेड क्रॉस में 2.50 लाख रुपए चंदा भी दिया था, लेकिन फिर भी वो हम पर रहम नहीं कर रहे थे। किसी और अफसर ने कभी इतना परेशान नहीं किया। सवाल: आपका मकान सीज है, परिवार के लोग कहां रहते हैं? जवाब: हमारा घर हादसे वाले दिन से सीज है। ऐसा कौन सा कानून है, जिसमें किसी को बेघर कर दिया जाए। जो 13 लोग मरे हैं, उनका हमें अफसोस है, लेकिन जो जीते-जी 11 लोग मर रहे हैं, उनकी कौन सुनेगा? हमारी चारों फैक्ट्रियों को सीज कर दिया, सारी फैक्ट्रियों का माल नष्ट कर दिया। हमने भी तो कहीं से पैसा लिया होगा। हमारी एक फैक्ट्री में हादसा हुआ, उसे बंद करते। हमारे भाई की फैक्ट्री क्यों बंद कर दी? उसमें जो बने हुए पटाखे रखे थे, उन्हें भी नष्ट करवा दिया। यदि लाइसेंस से ज्यादा मात्रा में था तो कानून में उसके लिए प्रावधान है। जुर्माना करते। सवाल: आपकी फैक्ट्री में पहले भी हादसे हुए, लेकिन आपने सबक क्यों नहीं लिया? जवाब: अवैध पटाखा बनाने वालों के यहां आग लगी थी। प्रशासन ही उन्हें ये कहता था कि तुम राजेश अग्रवाल की फैक्ट्री का नाम ले लो। प्रशासन अवैध पटाखा बनाने वालों से हर महीने बंधी (रिश्वत की रकम) लेता था तो उन्हें रोकता नहीं था। मेरी फैक्ट्री में जहां आग लगी, वहां पहले कभी आग नहीं लगी थी। सवाल: आपकी फैक्ट्री में आग नहीं लगी तो आपने पहले लोगों को मुआवजा क्यों दिया? जवाब: देखिए, वो तो ऐसा है कि हम कोर्ट-कचहरी के पचड़े में नहीं पड़ना चाहते थे, इसलिए श्रम विभाग के मार्फत हमने 5-5 लाख रुपए मुआवजा दिया था। क्योंकि श्रम विभाग तो श्रमिक की ही सुनता है, व्यापारी की सुनता नहीं। सवाल: यदि जेल से छूटे, तो क्या फिर पटाखे का काम करेंगे? जवाब: बिल्कुल नहीं… मेरी उम्र 55 साल हो गई है। अब दूसरे धंधे के बारे में सोच रहे हैं। ये खबर भी पढ़ें… हरदा ब्लास्ट में मुआवजे के लिए लेबर कोर्ट पहुंची सरकार: 200 लोगों का मुकदमा लगाया; कांग्रेस का सवाल-आंकड़ा कहां से आया हरदा पटाखा फैक्ट्री ब्लास्ट मामले में श्रम विभाग ने लेबर कोर्ट में मुआवजे के लिए मुकदमा दायर किया है। श्रम मंत्री प्रहलाद पटेल ने बताया कि हरदा ब्लास्ट मामले की रिपोर्ट का आंकड़ा आ गया है। बैठक में 136-142 के आसपास प्रभावित लोगों का आंकड़ा सामने आया है। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें