मध्यप्रदेश में मानसून आधा सफर तय कर चुका है। दो महीने के अंदर प्रदेश में 75% यानी, एवरेज 28.3 इंच बारिश हुई है। मंडला में सबसे ज्यादा 41 इंच पानी गिरा। 3 जिले श्योपुर, सिवनी और निवाड़ी ऐसे हैं, जहां सामान्य से ज्यादा पानी गिर चुका है। श्योपुर में तो 135% बारिश हो गई है। भोपाल भी बेहतर स्थिति में है। हालांकि, इंदौर-उज्जैन बारिश में पीछे है। सिर्फ 5 इंच पानी गिरते ही सामान्य बारिश का आंकड़ा पूरा हो जाएगा। दूसरी ओर, इंदौर, उज्जैन, रीवा संभाग में आधी बारिश ही हुई है। ऐसे में यहां हाल बुरे नजर आ रहे हैं। सबसे पहले पढ़िए कब एंटर हुआ मानसून… प्रदेश में मानसून अपने तय समय से 6 दिन बाद यानी, 21 जून को एंटर हुआ। दक्षिण-पश्चिम मानसून ने पांढुर्णा, सिवनी, बालाघाट, मंडला, डिंडौरी और अनूपपुर से आमद दी। अगले 2 दिन में भोपाल तक मानसून पहुंच गया। सबसे आखिरी में ग्वालियर-चंबल में 27 जून तक पहुंचा। इसके बाद से ही लगातार बारिश का दौर चला। 3 महीने- ऐसे चला बारिश का दौर… जून में कम हुई बारिश
जून महीने में 5 इंच बारिश होती है, जबकि इस बार साढ़े चार इंच बारिश हुई। यानी प्रदेश में 10% कम बारिश हुई। इसकी वजह मानसून का देरी से पहुंचना था। फिर जुलाई में जमकर बरसा पानी जून में कम बारिश होने के बाद उम्मीद थी कि जुलाई में अच्छा पानी बरसेगा। हुआ भी वैसा ही। जुलाई के 31 दिन में प्रदेश में औसत 14.27 इंच बारिश हो गई, जो जुलाई के कोटे से 1.78 इंच ज्यादा रही। 7 साल में ऐसा दूसरी बार हुआ, जब जुलाई में इतना पानी गिरा। भोपाल और जबलपुर में सामान्य से 5 इंच ज्यादा बारिश हुई। पिछले साल के मुकाबले 33 जिलों में ज्यादा पानी गिरा है। हालांकि, इंदौर और उज्जैन जैसे कई बड़े शहर पिछड़े भी। बारिश ने खोल दिए डैम के गेट जुलाई में एक के बाद एक साइक्लोनिक सर्कुलेशन, मानसून ट्रफ, लो प्रेशर एरिया और वेस्टर्न डिस्टरबेंस एक्टिव रहे। इस कारण 31 दिन तक प्रदेश में कहीं न कहीं बारिश हुई। सबसे ज्यादा जबलपुर, भोपाल और नर्मदापुरम संभाग में मानसून मेहरबान रहा। रीवा सबसे पिछड़ गया। तेज बारिश की वजह से 30 जुलाई को ही जबलपुर के बरगी डैम के 21 में से 7 गेट खोलकर पानी छोड़ा गया। अगस्त की शुरुआत तेज बारिश से अगस्त की शुरुआत में ही साइक्लोनिक सर्कुलेशन और मानसून ट्रफ लाइन की एक्टिविटी स्ट्रॉन्ग रही। इस वजह से पहले हफ्ते में तेज बारिश का दौर जारी रहा। हालांकि, फिर धीमी बारिश शुरू हो गई, जो अब तक जारी है। एक बार फिर सिस्टम की स्ट्रॉन्ग एक्टिविटी होगी मौसम विभाग की सीनियर वैज्ञानिक डॉ. दिव्या ई. सुरेंद्रन ने बताया कि अगले कुछ दिन में प्रदेश में एक बार फिर सिस्टम की स्ट्रॉन्ग एक्टिविटी होगी। इससे बारिश का दौर चलेगा और पूरा प्रदेश भीग जाएगा। तेज बारिश के दो महीने अहम आईएमडी भोपाल के वैज्ञानिकों के मुताबिक जिस तरह गर्मी के अप्रैल-मई, ठंड के दिसंबर-जनवरी महीने अहम रहते हैं। उसी तरह मानसून के जुलाई और अगस्त खास हैं। इन्हीं दो महीने में 70% तक बारिश हो जाती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। जुलाई और अगस्त में कोटे से ज्यादा पानी गिर चुका है। इस साल 4 से 6% बारिश ज्यादा होने का अनुमान भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने जून से सितंबर यानी चार महीने तक प्रदेश में सामान्य से 4 से 6 फीसदी ज्यादा बारिश होने का अनुमान जताया है। 16 अगस्त तक की स्थिति में 14% बारिश ज्यादा हो चुकी है। अब तक 24.8 इंच पानी गिरना चाहिए था, जबकि 28.3 इंच बारिश हो चुकी है। प्रदेश की औसत बारिश 37.3 इंच है। साल 2023 में 100% बारिश हुई थी। इंदौर, उज्जैन समेत आधे एमपी में सामान्य से ज्यादा पानी गिरा था। इस बार अब तक भोपाल में सीजन की 90% तक बारिश हो चुकी है। इन जिलों में इतनी बारिश का अनुमान आईएमडी की रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी मध्यप्रदेश के 4 संभाग- सागर, रीवा, जबलपुर और शहडोल में सामान्य से कम 98 से 99% बारिश होने का अनुमान है। वहीं, पश्चिमी मध्यप्रदेश के 6 संभाग- भोपाल, नर्मदापुरम, इंदौर, उज्जैन, ग्वालियर और चंबल में 101 से 102% या इससे ज्यादा बारिश होने का पूर्वानुमान है। इसलिए अच्छी संकेत मौसम विभाग के अनुसार, मानसून ट्रफ, वेस्टर्न डिस्टरबेंस (पश्चिमी विक्षोभ), साइक्लोनिक सर्कुलेशन (चक्रवात) की वजह से स्ट्रॉन्ग सिस्टम लगातार बने हैं। इसलिए लगातार बारिश का दौर जारी रहा। हालांकि, अगस्त के दूसरे सप्ताह में पश्चिमी हिस्से में कम पानी गिरा है। …तो लगातार छठे साल सामान्य से ज्यादा बारिश इस बार भी प्रदेश में मानसून अनुमान के मुताबिक रहा, तो लगातार 6वां साल ऐसा होगा, जब सामान्य या इससे ज्यादा बारिश होगी। 10 साल के आंकड़ों पर नजर डालें, तो 2019 में सबसे ज्यादा 53 इंच बारिश हुई थी। इसके बाद से ही प्रदेश में सामान्य या इससे ज्यादा बारिश हो रही है। प्रदेश में 37.3 इंच एवरेज बारिश मध्यप्रदेश की सामान्य बारिश 949 मिमी यानी, 37.3 इंच है। मानसूनी सीजन के दौरान (जून से सितंबर के बीच) इतनी बारिश होती है। पिछले साल की बात करें, तो एवरेज 37.22 इंच बारिश हुई थी, जो सामान्य के बराबर ही थी। पिछले साल यहां हुई थी ज्यादा बारिश इंदौर, झाबुआ, खंडवा, खरगोन, उज्जैन, अलीराजपुर, बड़वानी, बैतूल, भिंड, बुरहानपुर, देवास, धार, हरदा, अनूपपुर, छिंदवाड़ा, डिंडोरी, कटनी, नरसिंहपुर, निवाड़ी, सिवनी और टीकमगढ़। इन जिलों में कम बारिश
पिछले साल भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, बालाघाट, छतरपुर, दमोह, मंडला, पन्ना, रीवा, सागर, सतना, शहडोल, सीधी, सिंगरौली, उमरिया, आगर मालवा, अशोकनगर, दतिया, गुना, मंदसौर, मुरैना, नर्मदापुरम, नीमच, राजगढ़, सीहोर, शाजापुर, शिवपुरी में कम बारिश हुई थी। क्या होता है मानसून? मानसून दक्षिण-पश्चिमी हवाओं को कहा जाता है, जो भारत सहित बांग्लादेश और पाकिस्तान में बारिश कराती हैं। हिंद महासागर और अरब सागर से यह हवाएं उठती हैं। यह हवाएं जून से सितंबर महीने तक सक्रिय रहती हैं और दक्षिण-पश्चिम से चलकर भारत और अन्य देशों में बारिश लाती हैं। मानसून शब्द का पहली बार प्रयोग ब्रिटिश काल में हुआ था। हाइड्रोलॉजी में मानसून को उन हवाओं के रूप में जाना जाता है, जो किसी क्षेत्र में एक विशेष मौसम में खूब बारिश कराती हैं।