भाइयों की कलाइयों में दिखेगी जनजाति संस्कृति की झलक:मंडला में गोंड कलाकृति से राखी तैयार कर रही स्व सहायता समूह की महिलाएं

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मंडला जिले में विगत वर्षों से गोंड पेंटिंग पर उल्लेखनीय काम किया जा रहा है। गोंडी पेंटिंग से जुड़े कलाकारों को आर्थिक लाभ हो इसके लिए प्रशासन स्तर से भी सहयोग मिल रहा है। स्व सहायता समूह के माध्यम से गोंड पेंटिंग को आम जन तक पहुंचाने के लिए रेशम की साड़ियों साथ-साथ विभिन्न छोटे छोटे उत्पाद बनाए जा रहे है। इनका विक्रय ऑनलाइन और प्रदर्शनी के माध्यम से किया जा रहा है। इन उत्पादों में लोगों की बढ़ती रुचि से प्रेरित होकर समूह की महिलाएं आगामी राखी के त्योहार को देखते हुए गोंड कलाकृति से मनमोहन राखी तैयार कर रही हैं। क्या हैं गोंडी चित्रकला मंडला और डिंडौरी जिले में गोंड जनजाति की और से बनाई जाने वाली गोंडी कला सदियों पुरानी चित्रकला है। जो परम्परागत तौर पर दीवारों, फर्श सहित शरीर पर भी गोदना (टैटू) के तौर पर बनाई जाती रही हैं। आमतौर पर आसपास की प्राकृतिक वस्तुओं जैसे रंगीन मिट्टी, कोयला, मिट्टी, पौधों का रस, पत्तियां, फूल और गोबर से बनाए रंगों से बने ये चित्र गोंड जनजाति के प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध के उदाहरण की तरह हैं। ये पेंटिंग देश की प्राचीन और समृद्ध संस्कृति की झलक का अद्भुत नमूना है। नई पीढ़ी के कलाकारों के जुड़ने से बढ़ा काम विगत वर्षों में परंपरागत गोंडी पेंटिंग गांव की दीवारों से निकल कर कैनवास में बनने लगी है। आकर्षक रंगों के इस्तेमाल से बनी इन पेंटिंग्स को देश भर में सराहा जाने लगा। इससे से युवा आकर्षित हुए और नई पीढ़ी के कलाकार इसमें जुड़ते चले गए। नए कलाकरों के जुड़ने से गोंडी पेंटिंग के क्षेत्र में काम बढ़ने तो लगा, लेकिन इन पेंटिंग को बाजार उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती बना रहा। जिला प्रशासन की पहल से गोंडी पेंटिंग मंडला जिले के लिए एक जिला एक उत्पाद में चयनित की गई है। व्यापार की दृष्टि से गोंडी पेंटिंग से छोटे-छोटे सस्ते और आकर्षक आइटम डिजाइन किए गए। रेशम की साड़ियों पर गोंडी पेंटिंग को मिली सफलता गोंडी कला और रेशम को प्रोत्साहित करने की पहल 2020 में तत्कालीन कलेक्टर हर्षिका सिंह ने रेशम की साड़ियों पर पेंटिंग का एक नया प्रयोग किया गया। इन साड़ियों को मंडला से बाहर बाजार में अच्छी प्रतिक्रिया मिली। इससे रेशम बुनकर और गोंडी कलाकारों को आय का एक नया स्त्रोत मिला। लेकिन गोंडी पेंटिग्स युक्त रेशम की साड़ियां एक महंगा उत्पाद है। इसको ध्यान में रखकर गोंडी पेंटिंग से छोटे-छोटे आइटम डिजाइन किए गए, जो सस्ते और आकर्षक हों। इसके बाद पोस्ट कार्ड, रूमाल, लोटा, फ्रिज मैग्नेट, डायरी, बुक मार्क, बैग बनाए गए। इन्हें देश भर में प्रदर्शित किया गया, तो लोगों की सराहना मिली। अब राखी बना रहे समूह गोंडी पेंटिंग्स के छोटे उत्पादों को मिली सफलता से प्रेरित होकर अब इससे जुड़े समूह ने आगामी राखी के त्योहार को देखते हुए अब राखी बनाने का निर्णय लिया है। राखी बनाने का कार्य नैनपुर और मंडला विकासखंड के स्व सहायता समूह की महिलाएं कर रही है। महिलाएं ऊन, मोती, गोटा पट्टी और अन्य सामग्री की सहायता से राखी बना रही है। इन राखियों को आजीविका मिशन के आउट लेट और ऑनलाइन माध्यम से बेचे जाने की योजना है। महिलाएं बना रही राखियां गोंडी पेंटिंग से राखी बना रही ग्राम तिलई निवासी सुमन बंदेवार ने बताया कि हमने 2022 में नाबार्ड के वित्तीय सहयोग से ग्रामीण विकास और महिला उत्थान संस्थान मंडला के माध्यम से गोंडी चित्रकारी का प्रशिक्षण लिया था। वर्तमान में 60 महिलाओं ने चित्रकारी में प्रशिक्षण प्राप्त किया है। जिसमें से लगभग 20 महिलाएं राखी का निर्माण कर रही है। बाकी महिलाएं रूमाल, पोस्ट कार्ड, स्टोन की रिंग, फ्रिज, मैग्नेट आदि में चित्रकारी कर रही है। लोगों को पसंद आ रही राखियां सुमन बंदेवार ने बताया कि राखी निर्माण में 10 से 40 रुपए तक की लागत आ रही है। हमारे पास विक्रय के लिए 25 से 100 रुपए तक की राखी है। हमने पिछले वर्ष भी राखियां बनायीं थी। जिसको लोगों ने पसंद किया। इसलिए इस वर्ष जिले भर की करीब 15 समूह 5 हजार राखियां बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसके अलावा कैनवास, हेंड मेड पेपर, की रिंग, स्टोन, रूमाल, बैग, स्टॉल, डायरी, पोस्ट कार्ड, आदि में चित्रकारी कर रहे हैं। ऑर्डर मिलने पर वाल पेंटिंग भी करते हैं। जबलपुर मिलिट्री केंटीन में की वॉल पेंटिंग ग्रामीण आजीविका परियोजना के डीपीएम बीडी भैसारे ने बताया कि तत्कालीन कलेक्टर हर्षिका सिंह के मार्गदर्शन में 2022-23 से गोंडी आर्ट पर काम शुरू किया गया। सबसे पहले इसके लिए नैनपुर विकासखंड के समूह को ट्रेनिंग दी गई और नाबार्ड की वित्तीय सहायता भी मिली। शुरुआत में छोटी छोटी वस्तुएं बनाई गई। अब काम बढ़ गया है महिलाएं राखी, रुमाल, साड़ियों आदि में भी पेंटिंग कर रही है। अभी हाल ही में जबलपुर मिलिट्री कैंटीन में वॉल पेंटिंग भी की है। आज इसमें करीब 63 महिलाएं काम कर रही हैं।