मध्यप्रदेश के पन्ना में 24 जुलाई को दिलीप कुमार मिस्त्री को 2 साल की कड़ी मेहनत के बाद 16.10 कैरेट का हीरा मिला। कीमत करीब 80 लाख रुपए। दिलीप ने हाथों-हाथ सभी लोगों का मुंह मीठा करवाया। लोगों ने कहा कि दिलीप की किस्मत चमक गई। क्या वाकई में हीरा मिलने के बाद पन्ना के लोगों की किस्मत चमक जाती है, इसी का पता करने दैनिक भास्कर की टीम पन्ना पहुंची। ऐसे 4 लोगों से मिली, जिन्हें पहले हीरा मिल चुका है। उनसे बातचीत कर समझ आया कि हीरा मिलने के बाद उनकी किस्मत चमकी नहीं बल्कि उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। लाखों रु. कीमत का हीरा मिलने के बाद भी कुछ की स्थिति तो वैसी ही है, जैसी हीरा मिलने के पहले थी। हमने उन लोगों से भी बात की, जिन्हें एक नहीं कई बार हीरा मिल चुका है। ये भी समझा कि पन्ना की खदानों में हीरे की खोज कैसे की जाती है? पहले उन 4 लोगों की बात, जिन्हें हीरा मिला मगर किस्मत नहीं चमकी हीरे की रकम मिलने के बाद आवाज चली गई शंकर कुशवाह बताते हैं कि उन्होंने छह पार्टनर्स के साथ हीरे की खदान शुरू की थी। एक पार्टनर थे राधेश्याम सोनी, दूसरे वे खुद और तीसरे विनय द्विवेदी, बाकी तीन और थे। 2018 में उनके एक पार्टनर राधेश्याम सोनी की खदान से 18.13 कैरेट का हीरा निकला था। जिसकी कीमत 72 लाख रुपए थी। जब रकम मिली तो सभी पार्टनर्स ने आपस में बांट ली। एक पार्टनर के हिस्से में 12 लाख रु. आए। हमने शंकर से पूछा कि इस रकम से उनकी जिंदगी में क्या बदलाव आया? उन्होंने जो बताया, वो हैरान करने वाला है। शंकर ने कहा- हीरा मिलने के एक साल बाद ही मेरी अचानक आवाज चली गई। हीरे की जो रकम मिली थी, वो आवाज वापस लाने में खर्च हो गई। अब मैं कुछ नहीं करता, घर पर ही रहता हूं। जो बची हुई रकम थी, उससे दो कमरे का मकान बनवा लिया है। गांव में थोड़ी जमीन है, उसी से घर का खर्च चलता है। इलाज अभी भी चल रहा है, उसमें काफी पैसा खर्च हो जाता है। हीरे का कारोबार छोड़कर बन गए साधु शंकर कुशवाह के दूसरे पार्टनर विनय द्विवेदी से जब भास्कर की मुलाकात हुई तो वे साधु के भेष में थे। विनय ने कहा- मेरा हीरा मिलने और हीरे की खदान के काम का अनुभव ठीक नहीं रहा है। मैंने हीरे की खदान का काम बंद कर दिया है। उनसे पूछा- ऐसा क्या अनुभव रहा तो बोले कि हीरा बेचने के बाद जिस दिन 12 लाख रु. मेरे अकाउंट में आए, उसी दिन मेरी मां का निधन हो गया। उसके बाद भी ऐसे बुरे अनुभव रहे, जिनका जिक्र मैं नहीं कर सकता। विनय ने कहा कि छह साल में वो पैसा तो खत्म भी हो गया है। अब खेती और भजन कर आगे की जिंदगी काट रहा हूं। उनसे पूछा कि फिर ख्याल नहीं आता कि हीरे की खदान लगाई जाए तो बोले- कि हीरे की खदान लगाना लॉटरी जैसा खेल है। किसी को उथली खदान में ही हीरे मिल जाते हैं किसी को गहरी खदान में सालों तक नहीं मिलते। यहां लोग सालों साल हीरे की तलाश करते रहते हैं। कई लोगों की जिंदगी खप गई। हीरा मिलने के बाद भी चलाते हैं पंक्चर की दुकान रामप्यारे विश्वकर्मा के घर का पता पूछते-पूछते भास्कर की टीम जा पहुंची एक पंक्चर की दुकान पर। पता चला कि ये रामप्यारे की ही दुकान है। 2021 में हीरा मिलने से पहले भी वह पंक्चर बनाते थे। यहां उनका बेटा भरत मिला। उससे हीरे के बारे में पूछा तो उसने बताया कि पिताजी को जिस खदान से हीरा मिला था, उसमें 7 पार्टनर थे। जो पैसा मिला, वो सात लोगों में बंट गया। हमारे खाते में 6 लाख रु. आए थे। उससे पूछा कि पैसे का क्या किया तो बोला कि पिताजी ने ढाई लाख रु. का कर्ज लिया था। उस पैसे से कर्ज चुकाया और फिर छोटी बहन की शादी की। बाकी बचा पैसा खर्च हो गया। भरत ने कहा- मेरे पिताजी आज भी पंक्चर की दुकान चलाते हैं। मैं उनका हाथ बंटाता हूं। मोटरसाइकिल रिपेयरिंग का काम करता हूं। हमारी स्थिति आज भी वैसी ही है, जैसी हीरा मिलने के पहले थी। अब पिताजी हीरे की खदान नहीं लगाते। उसके लिए पूंजी कहां से लाएंगे? दिनभर हीरा खदान में काम, शाम को समोसे की दुकान श्याम लाल लुनिया ने कहा- मेरी अकेले की ही खदान थी। साल 2007 में मुझे 15.02 कैरेट का हीरा मिला था, जिसकी कीमत 18 लाख रुपए थी। लुनिया कहते हैं- पहले मैं फर्शी पत्थर का काम करता था, लेकिन डिमांड नहीं थी तो मैंने काम बंद कर दिया। पहली बार जब मुझे हीरा मिला तो मैं उत्साहित था और मैंने अपना सारा वक्त हीरा खोजने में लगाया। अभी भी मेरी एक खदान चल रही है, जिसमें 50 हजार रु. इन्वेस्ट कर चुका हूं। 2007 में जब हीरा मिला, तब से लेकर अब तक तीन गुना पैसा यानी करीब 54 लाख रु. खदानों में लगा चुका हूं। 17 साल हो चुके हैं लेकिन उसके बाद मुझे हीरा नहीं मिला। उनसे पूछा कि फिर घर कैसे चलता है तो कहा- दिनभर खदान में हीरा तलाशने का काम करता हूं, शाम को लौटता हूं तो 2 घंटे के लिए समोसे की दुकान लगाता हूं। उसी से खर्च चलता है। अब उन लोगों की बात, जिन्हें एक से ज्यादा बार हीरा मिला लॉकडाउन में खोली खदान, 5 बार मिला हीरा दिलीप का कहना है कि लॉकडाउन में हम बेरोजगार हो गए थे। मेरे पास जमीन थी, मगर पैसा नहीं था। हीरा खदान को लेकर कोई जानकारी भी नहीं थी। मैंने तीन दोस्तों से बात की। चारों ने पार्टनरशिप में खदान शुरू की। शुरुआत में 10 मजदूर लगाए। साल 2020 ऐसे ही बीत गया, कुछ नहीं मिला। 2021 में 10 कैरेट से कम के दो छोटे हीरे मिले। 2022 फिर खाली गया। 2023 में 10 कैरेट से ज्यादा का एक बड़ा हीरा और दो छोटे हीरे मिले। अब 2024 में फिर हीरा मिल गया है। दिलीप कहते हैं कि बाकी हीरे बिनाई के वक्त मिले थे। अभी वाला हीरा चाल को फैलाते वक्त मिला है। हीरे की रकम से बेटे को बनाया इंजीनियर उनसे पूछा- हीरे मिलने के बाद मिले पैसों का क्या इस्तेमाल किया? उन लोगों के अनुभव बताए, जिन्हें हीरा मिला लेकिन फायदेमंद नहीं रहा। दिलीप ने कहा- हीरा निकालना बड़ा कठिन और संयम का काम है। खुद मौजूद रहना पड़ता है। हर कोई खदान लगाकर हीरा नहीं निकाल सकता। मेरी खदान की लागत 8 लाख रु. है। वे कहते हैं कि अब किसी को 50 हजार इन्वेस्ट करने के बाद ही 5 या 10 लाख का हीरा मिल जाता है, तो वह उसे अनाप-शनाप तरीके से खर्च करता है। कुछ लोग बुरी आदतों में उड़ा देते हैं। उनसे पूछा-आपने क्या किया तो बताया कि मैंने एक मकान बनवा लिया है। जमीन खरीद ली। बच्चों को पढ़ाया। मेरा एक बेटा तो हैदराबाद में इंजीनियर है। मैं अनाप-शनाप खर्च नहीं करता। ईंट भट्टा लगाया, साल में 10-12 लाख की कमाई दिलीप के पार्टनर प्रकाश मजूमदार कहते हैं कि यहां उथली खदान का पट्टा मिलता है। नियम के मुताबिक, हम 20 से 30 फीट तक ही खुदाई कर सकते हैं। खदान को ज्यादा गहरा करना हो, तो लागत और खर्च बढ़ता जाता है। उन्होंने कहा- मैं एक गांव का सरपंच भी हूं। सरपंची के अलावा हीरा खदान चलाता हूं। खेती भी करता हूं। अभी जो हीरे बिक चुके हैं, उनसे मिले पैसे से मैंने ईंट भट्टा लगाने का काम शुरू किया है। साल भर में 10-12 लाख कमा लेता हूं। अब सिलसिलेवार जानिए,क्या है खदान से हीरा निकालने की प्रोसेस सबसे पहले लेना होता है पट्टा…इसके तीन तरीके हैं 1.निजी जमीन पर खदान लगाने की परमिशन: जो आवेदक होता है, उसकी निजी जमीन का निरीक्षण हीरा कार्यालय करता है। फिर 200 रु. का चालान कटवाकर आवेदक 25 स्क्वायर फीट जमीन पर खदान लगा सकता है। 2. सरकारी जमीन पर खदान की परमिशन: ये हीरा कार्यालय ही तय करता है कि खदान के लिए जमीन कहां दी जाएगी, इसमें भी 200 रु. का चालान कटवाना पड़ता है। 3. किसी और की जमीन पर खदान की परमिशन: इसमें जमीन मालिक की सहमति जरूरी होती है। ये काम ज्यादातर पार्टनरशिप के रूप में होता है। बाकी प्रोसेस वैसी ही रहती है। अब तीन महीने में होती है हीरों की नीलामी माइनिंग विभाग के डिप्टी डायरेक्टर रवि पटेल ने कहा- पहले नीलामी सालभर में होती थी। हीरे के मालिक को पैसा मिलने में एक साल का वक्त लग जाता था। अब विभाग हर तीन महीने में नीलामी करता है। नीलामी में ज्यादा से ज्यादा व्यापारी हिस्सा लें, इसके लिए बाकायदा प्रचार-प्रसार किया जाता है। वे कहते हैं- हीरे का असली रेट नीलामी के दौरान ही तय होता है। मान लीजिए कि 10 कैरेट का हीरा नीलामी में 40 लाख रु. में बिकता है, तो हीरा विभाग 11.5 प्रतिशत टैक्स और रॉयल्टी के तौर पर काट लेता है। यानी 40 लाख रु. में से 4 लाख 60 हजार रुपए काट कर 35 लाख 40 हजार रुपए हीरा मालिक को मिलते हैं। अब तक 78 लोगों को मिला 10 कैरेट से ज्यादा का हीरा पन्ना में जुलाई महीने तक 240 खदानों को पट्टा दिया जा चुका है। ये पट्टा एक साल के लिए होता है। हीरा कार्यालय 1961 से संचालित है। इसी साल पन्ना के रसूल मोहम्मद को 44.55 कैरेट का हीरा मिला था। इससे बड़ा हीरा आज तक किसी निजी खदान संचालक को नहीं मिला। एनएमडीसी खदान सालभर में निकाल लेती है एक लाख कैरेट हीरे खनिज अधिकारी रवि पटेल ने बताया कि पन्ना में हीरा निकालने के लिए एनएमडीसी यानी राष्ट्रीय विकास निगम की एक खदान भी संचालित है। साल 2021 से खदान बंद थी, लेकिन अब फिर काम शुरू हुआ है। ये खदान 1 साल में औसतन एक लाख कैरेट हीरे निकाल लेती है। हीरे की रॉयल्टी काट कर उन्हें नीलाम कर दिया जाता है।