सालों से चल रहे मंदिर जमीन विवाद में शासन को कोर्ट में बड़ी जीत मिली है। कोर्ट ने माना कि खेड़ापति हनुमान मंदिर देपालपुर की 15 हेक्टेयर जमीन शासन की ही है। कोर्ट ने इस जमीन के रिकार्ड पर प्रबंधक के रूप में दर्ज कलेक्टर का नाम हटाने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने मामले में मंदिर के पुजारी की ओर से प्रस्तुत वाद निरस्त कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालय से इस मामले को गुण-दोष के आधार पर फैसला सुनाने के लिए कहा था। पुजारी ने यह दावा किया था कि जमीन उन्हें होलकर राज्य से इनाम में मिली थी, इसलिए उनका नाम भूमि-स्वामी के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए लेकिन वे कोर्ट ने इससे इंकार कर दिया। जमीन की अनुमानित कीमत 80 करोड़ है। ऐसे समझिए पूरा मामला – मामला करीब 21 वर्ष पुराना है। मंदिर के पुजारी गोवर्धनदास बैरागी और अन्य ने देपालपुर कोर्ट में वाद प्रस्तुत किया था। इसमें दावा किया था कि खेड़ापति हनुमान मंदिर से लगी कृषि भूमि जिसका सर्वे क्रमांक 190, 1065, 1066 और कुल क्षेत्रफल 14.815 हेक्टर है उन्हें होलकर शासन ने इनाम में दी थी इसलिए राजस्व रिकार्ड खसरा में भूमि स्वामी की हैसियत में प्रबंधक के रूप में कलेक्टर का नाम हटाकर उनका नाम भू-स्वामी के रूप में दर्ज किया जाए। – देपालपुर न्यायालय ने वर्ष 2003 में इस मामले में शासन के विरुद्ध निर्णय सुनाया था। इस पर शासन ने इस मामले में अपर जिला न्यायाधीश के समक्ष अपील प्रस्तुत की। इसमें शासन के पक्ष में निर्णय हुआ। पुजारी परिवार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की। एक बार फिर शासन मामले में हार गया। – शासन ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दायर की। इस याचिका का निराकरण करते हुए कोर्ट ने प्रकरण को एक बार फिर देपालपुर न्यायालय को भेजते हुए कहा कि वह गुणदोष पर प्रकरण का निराकरण करे। – देपालपुर कोर्ट में शासन की ओर से पैरवी करने वाले एडवोकेट नीलेश व्यास ने बताया कि कोर्ट ने अतिरिक्त वाद प्रश्न बनाकर प्रकरण का गुणदोष के आधार पर निराकरण किया। कोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद निर्णय दिया कि खेड़ापति हनुमान मंदिर देपालपुर और इससे जुड़ी हुई कृषि भूमि शासकीय ही है। कोर्ट ने जमीन से प्रबंधक के रूप में कलेक्टर का नाम हटाने से इंकार कर दिया। – कोर्ट में पुजारी मंदिर निर्माण से संबंधित कोई डॉक्यूमेंट्स पेश नहीं कर सके।