किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की सुख-दु:ख की स्थिति उसके कर्मों के अनुसार प्राप्त होती है। ‘कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहि सो तस फल चाखा….’ बड़े-बड़े संत महात्मा अपने जीवन में आने वाली अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियां आने पर किसी को दोष नहीं देते। वे जानते हैं कि सुख और दु:ख कर्मों के फल हैं। एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने रविवार को सावन के प्रवचन में यह बात कही। कर्मों के कारण राम को वन जाना पड़ा महाराजश्री ने बताया कि भगवान राम को जब वनवास हुआ और वे कौशल्या माता के पास आज्ञा लेने पहुंचे, पर माता को तो राजतिलक की जानकारी थी। वे देखते ही बहुत प्रसन्न हो गईं। कहने लगीं- बेटा मैंने तेरे लिए पकवान बनाकर रखे हैं। तू जीम ले। क्योंकि राजतिलक की शोभायात्रा निकलेगी, तो तुझे भोजन करने का समय ही नहीं मिल पाएगा। तब रामजी ने कहा मां मुझे पिताजी ने वन जाने की आज्ञा दी है। यह सुनते ही वे दु:खी हो गईं और कारण जाना। कैकेई के लिए बोलीं कि इसकी मति को क्या हो गया। वह तो भरत से ज्यादा तुझे प्रेम करती है। परमात्मा राम बोले- माता इसमें कैकेई मां का कोई दोष नहीं है। यह तो कर्मों का दोष है, क्योंकि परशुराम अवतार में मैंने अपने पिता जमदग्नि के कहने पर माता रेणुका का वध कर दिया था। उसी का परिणाम यह है कि माता के कारण मुझे वन जाना पड़ रहा है। यह बात वन गमन के समय निषादराज के कैकेई पर दोष लगाने पर लक्ष्मणजी ने उन्हें बताई। वैसे तो परमात्मा राम परब्रह्म हैं, उन्हें सुख और दुख कुछ भी नहीं होता है। बहुत लोग यह भी कहते हैं कि रामजी ने छुपकर बाली को मारा था, इसलिए कृष्ण अवतार में उसी बाली ने बहेलिया बनकर कृष्ण के पैर में बाण मारा। भगवान राम ने संसार को दिया संदेश डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया कि वास्तव में जगत को बताने के लिए उन्होंने यह कर्म फल की लीला की। इस तरह भगवान राम ने संदेश दिया कि परमात्मा होकर भी मैं संसार के नियमों का पालन करता हूं, जबकि ये मेरे ही बनाए हुए हैं। इसी कारण मैं भी कर्मों का फल भोगने के लिए तैयार रहता हूं।