‘उसने
अपनी जिंदगी में कभी ऐसे दिन भी
देखे, जब उसके उदर में अन्न का
दाना तक न था, सर छुपाने को कोई
ठिकाना न था, उदासी थी, मायूसी थी
और बस न-उम्मीदों का एक डरावना
सा ताना-बाना था। पर दिन सबके
बद – 15/12/2024
‘उसने
अपनी जिंदगी में कभी ऐसे दिन भी
देखे, जब उसके उदर में अन्न का
दाना तक न था, सर छुपाने को कोई
ठिकाना न था, उदासी थी, मायूसी थी
और बस न-उम्मीदों का एक डरावना
सा ताना-बाना था। पर दिन सबके
बद – 15/12/2024