इंदौर में धर्मांतरण के दस साल पुराने मामले में सजा:आरोपी कहते रामायण-महाभारत सब काल्पनिक, ईसाई बनो फायदा होगा, फ्री पढ़ाई-इलाज का देते थे लालच

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इंदौर में धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने वाले दो आरोपियों को कोर्ट ने 7 दिसंबर को एक-एक साल की सजा सुनाई है। आरोपी रामायण, महाभारत सहित हिंदुओं के सभी ग्रंथों को काल्पनिक बताते थे। बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने, बेहतर और फ्री इलाज कराने, बिना ब्याज के लोन दिलवाने का लालच देकर धर्म परिवर्तन के लिए उकसाते थे। दोनों पक्षों के तर्क, गवाहों के बयान, जब्त सामग्री के आधार पर जिला कोर्ट ने आरोपी रोशन पिता ऑगस्टिन (47) निवासी पुष्प नगर और एल्विन पिता सुसाई पाल (29) निवासी स्कीम 78 को मप्र धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 1968 की धारा 3 और 4 का दोषी पाया। दोनों को एक साल के कारावास और 5-5 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माना अदा नहीं करने पर 3-3 माह का कारावास भुगतना होगा। कोर्ट ने माना कि आरोपियों द्वारा किया गया अपराध भारतीय संविधान के अधीन प्रदत्त मौलिक अधिकार का उल्लंघन होने के साथ देश की एकता और अखंडता को प्रभावित करने वाला अपराध है। अगर तुम ईसाई बनोगे तो पैसा, लोन, बच्चों को फ्री शिक्षा मिलेगी। ईसा मसीह बहुत अच्छे हैं, दयालु हैं, हिन्दू धर्म में कोई दम वाली बात नहीं है।हिन्दू धर्म में कोई वास्तविकता नहीं है। तुम्हारी रामायण, महाभारत झूठ का पुलिंदा है। यदि बाइबिल पढ़ोगे तो तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। तुम्हारे भगवान जो भी हैं वह काल्पनिक और नकली हैं। यह कहते हुए दोनों आरोपी धर्मांतरण का दबाव बना रहे थे। मामला 17 अगस्त 2014 का है। हीरा नगर में रहने वाले लोडिंग ऑटो चालक पृथ्वीराज सांलुके ने पुलिस से शिकायत की थी। इसके अनुसार रोशन और एल्विन उन्हें क्रिश्चियन धर्म अपनाने पर अच्छी सुविधाओं का लालच दे रहे हैं। दोनों के साथ अन्य लोग भी हैं। ये लोग उनके रहवासी क्षेत्र में अलग-अलग प्रकार के साहित्य, सीडी लेकर घूम रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर तुम ईसाई धर्म स्वीकार कर लोगे तो अच्छी नौकरी लगवा देंगे। फरियादी ने विरोध किया तो दोनों ने उसे गालियां दी और हाथापाई की। इस दौरान पृथ्वीराज के परिचित लोग वहां एकत्र हो गए तो इनमें से तीन लोग भाग निकले। जबकि लोगों ने रोशन और एल्विन को पकड़ लिया। पुलिस ने पृथ्वीराज की शिकायत पर रोशन और एल्विन के खिलाफ धारा 3 और 4 मप्र धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 1968 की धारा के तहत केस दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया। फिर 26 दिसम्बर 2014 को कोर्ट में चालान पेश किया था। धर्म परिवर्तन का दबाव अंत:करण की स्वतंत्रता पर सीधा आघात
अंतिम दौर में बचाव पक्ष ने न्याय दृष्टांत (Citation) केरल का मामला पेश किया कि संपूर्ण भारत में प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म को अपना कर उसका पालन किए जाने की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है। इस पर एडीपीओ ज्योति तोमर ने भी न्याय दृष्टांत सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 25 (ए) का हवाला दिया कि-
संविधान प्रत्येक नागरिक को अन्त-करण की स्वतंत्रता की गारंटी प्रदान करता है। वह केवल अपने विशेष धर्म के अनुसरण करने का अधिकार प्रदान करता है। इस अधिकार में दूसरे व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तन कराने का मूल अधिकार शामिल नहीं है। इस न्याय दृष्टांत में यह भी प्रतिपादित किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने धार्मिक विचारों को दूसरे तक संप्रेषित करने के बजाय उसे धर्म परिवर्तन के लिए विवश करता है तो यह कृत्य अन्त:करण की स्वतंत्रता पर सीधा आघात करता है। यह संविधान द्वारा वर्जित है। इस प्रकार आरोपियों द्वारा फरियादी को धर्म परिवर्तन के लिए लालच दिया गया है। यह मप्र धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 1968 के तहत दण्डनीय बनाया गया है। ऐसे में बचाव पक्ष के न्याय दृष्टांत का लाभ आरोपियों को नहीं दिया जाना चाहिए।