‘आयुर्वेद को लेकर एक चिंता है कि इसका भी कर्मशलाइजेशन ना हो जाए। जब हम हेल्थ सर्विस को कमर्शियल कर देते हैं या उसके आधार पर धन उगाही करना शुरू कर देते हैं तो हेल्थ केयर पीछे चली जाती है। आयुर्वेद से इलाज पर होने वाला खर्च कम होगा। इसकी दवाईयां बहुत गंभीर बीमारियों में भी कारगर हैं। मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर्स और स्टाफ की कमी है। ये धीरे-धीरे दूर होगी, लेकिन मेडिकल स्टूडेंट मरीज से सीखता है।’ ये बातें भारत सरकार के परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल प्रोफेसर डॉ. अतुल गोयल ने भास्कर को दिए इंटरव्यू में कही। पढ़िए डॉ. गाेयल का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू… सवाल: आयुष्मान योजना के बाद भी कई गंभीर बिमारियों का इलाज बहुत महंगा है, ये गरीब तबके को सुलभ हो इसके लिए क्या कर रहे हैं? जवाब: केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि सभी को सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। आयुष्मान योजना से सामान्य आदमी के लिए इलाज आसान हो गया है। दूसरी तरफ सरकार मेक इन इंडिया पर भी काम कर रही है। इससे भी इलाज का खर्च कम होगा। सवाल: मध्यप्रदेश पहला राज्य था जिसने हिंदी में एमबीबीएस शुरू करने की पहल की थी, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली। इसमें क्या चुनौतियां हैं? इसकी शुरुआत केंद्र सरकार ने नहीं की थी, केंद्र ने सिर्फ मध्यप्रदेश सरकार को सपोर्ट किया था। ये पहल खराब नहीं है, क्योंकि जो बच्चे हिंदी से पढ़कर आएं हैं उनके लिए शायद वह अच्छा हो। हालांकि कुछ टर्म मेडिसिन में ऐसी है जिनको आपको इंग्लिश में ही बोलना पड़ेगा। जैसे ‘डायबिटीज’ आम आदमी समझता है, लेकिन ‘मधुमेह’ आम आदमी नहीं समझ पाएगा। मध्य प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने ऑल इंडिया एग्जाम से चुनकर बच्चे आते हैं। बहुत से बच्चे गैर हिंदी भाषी राज्यों से भी आते हैं, तो उनके लिए हिंदी में पढ़ना थोड़ा कठिन होगा। मुझे लगता है बैलेंस अप्रोच रखना जरूरी है। सवाल: कोविड के बाद बुजुर्ग से लेकर युवाओं और बच्चों तक में हार्ट अटैक आ रहे हैं? इसे रोकने के लिए केंद्र क्या कर रहा है? जवाब: यह कोविड के बाद या कोविड के कारण नहीं हो रहा है। यह हमारी खराब लाइफ स्टाइल की वजह से हो रहा है। इसके कई कारण हैं– एक आदमी जिम में ज्यादा एक्टिविटी करता है जो उसके लिए नॉर्मल नहीं है, उसके बाद वह प्रोटीन पाउडर लेता है, आर्टिफिशियल प्रोसेस्ड फूड खाता है, ऐसा आदमी फिट कैसे हो सकता है। फिटनेस हमेशा जिम से नहीं आती। मुझे नहीं लगता कि हार्ट अटैक का कोविड से या कोविड की वैक्सीन से सीधा संबंध है। हम दांतों को दिखाते ज्यादा हैं और इनको चबाने के काम कम लेते हैं। भोजन को धीरे-धीरे से चबाके खाएंगे तो कम खाएंगे और भोजन का असर भी ज्यादा अच्छा होगा। सवाल: मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य तंत्र की गिनती आज भी पिछड़े राज्यों में होती है, केंद्र इसे कैसे देखता है? जवाब: भोपाल एम्स प्रदेश के हेल्थ केयर को ठीक करने में बहुत हद तक मददगार साबित हो रहा है। केंद्र सरकार ने एक योजना के तहत हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने का निर्णय लिया है। बहुत से जिलों में मेडिकल कॉलेज बन भी गए हैं। प्रदेश के जिला अस्पतालों के हालात पहले की तुलना में सुधरे हैं। मरीजों का बेसिक इलाज वहीं हो जाता है। जिला अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ी हैं। पूरी तरह से चीजें ठीक होने में लंबा समय लगता है। सवाल: मप्र के सरकारी मेडिकल कॉलेज डॉक्टर्स और क्वालिटी एजुकेशन की कमी से जूझ रहे हैं, इमारते तो बन गई हैं लेकिन उनको बनाने का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है? जवाब:किसी भी संस्थान के शुरू होने के वक्त ये प्रॉब्लम होती हैं। स्टाफ की कमी रहेगी। एक दम से आप पूरा स्टाफ नहीं दे सकते। धीरे-धीरे जब स्टूडेंट आएंगे तो स्टाफ बढ़ेगा। यह एक धीमी प्रक्रिया है। दिल्ली एम्स को ‘दिल्ली एम्स’ बनने में 70 साल लगे हैं। किसी भी इंस्टीट्यूशन को इंस्टीट्यूशन बनने में समय लगता है। सवाल: डॉक्टर्स, टीचर्स की कमी के बीच जो बच्चे पास आउट हो रहे हैं, डॉक्टर बन रहे हैं, उनकी जिम्मेदारी किसकी है? जवाब: मैं मानता हूं कि टीचर्स और क्वालिटी एजुकेशन की कमी बच्चों को हर्ट कर सकती है, लेकिन बहुत हद तक मेडिकल स्टूडेंट जो सीखता है वह रोगियों से ही सीखता है। अगर स्टूडेंट अपना पूरा ध्यान लगाकर रोगियों को देखेंगे तो बहुत कुछ सीख जाएंगे। सवाल: अगले 5 साल में हेल्थ सर्विस मजबूत करने के लिए फोकस कहां होगा? अगले 5 साल हमारा फोकस प्राइमरी हेल्थ केयर को सुधारने पर होगा। हमें बीमारियों के इलाज के साथ उनसे कैसे बचा जा सकता है, इस पर बात करनी होगी। हमारा सबसे ज्यादा फोकस रोगियों की संख्या कम करने पर होगा। अभी हम बड़े-बड़े हॉस्पिटल खोल रहे हैं, लेकिन प्राइमरी हेल्थ केयर से स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और रोकथाम का संदेश जाएगा। इससे रोगियों की संख्या कम होगी। सरकार इसमें पहले से काम कर रही है। आयुष्मान आरोग्य मंदिर इसी दिशा में काम कर रहे हैं। सवाल: हमारा देश अपनी जीडीपी का कुछ 2–3 प्रतिशत ही स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए खर्च करता है? क्या हमें बजट बढ़ाना चाहिए? जवाब: इतने कम बजट के बावजूद भारत ने जिस तरीके से कोविड को संभालने का काम किया, शायद बड़े-बड़े देश नहीं कर पाए जो जीडीपी का 15–16% खर्च करते हैं। मुझे लगता है उन्हें अपना जीडीपी का खर्चा कम करना चाहिए ना कि भारत को खर्चा बढ़ाने की बात कहनी चाहिए। भारत उतना ही खर्च बढ़ाएगा जितनी आवश्यकता है। उनके जितना खर्च कभी नहीं बढ़ाएगा। सवाल: भारत में मानसिक तनाव और डिप्रेशन की चपेट में बच्चे– युवा आ रहे हैं, यह स्वास्थ्य विभाग के लिए कितनी बड़ी चुनौती है? जवाब: मानसिक रोग क्यों बढ़ रहे हैं, इसकी वास्तविक स्थिति का जायजा लेने की कोशिश कभी नहीं हुई है। इसका सबसे बड़ा कारण है परिवारों का अलग होना, छोटा होना या टूटना। ऐसे बच्चों की मानसिक स्थिति क्या होगी। ना उसको शेयरिंग आती है, ना उसका कोई भाई– बहन है। जीवन का मतलब पैसा, मटेरियल बेनिफिट ही रह जाएंगे तो डिप्रेशन दूर कैसे होगा। केंद्र ने ऐसे मामलों में सहायता के लिए टेली मानस शुरू किया है। यह हेल्पलाइन नंबर सबके लिए उपलब्ध है। सवाल: एआई मेडिकल सांइस को कैसे प्रभावित करेगी? जवाब: हमें एआई के रोल को लिमिट करना पड़ेगा। यह मेडिकल साइंस को कंट्रोल करने के लिए नहीं बनी है। यह हेल्प करने के लिए बनी है। सवाल: हमारा देश मेडिकल रिसर्च के लिहाज से आज भी पिछड़ा क्यों है? जवाब: भारत आंकड़ों के लिहाज से बहुत जगह आगे है। रिसर्च में भी। हमारे यहां होने वाली रिसर्च की संख्या तो बहुत है, लेकिन रिसर्च की क्वालिटी बड़ी चुनौती है। प्रधानमंत्रीजी के नेतृत्व में पहली बार रिसर्च के लिए थोड़ा बजट दिया गया है। जब उन सब्जेक्ट पर रिसर्च होगी जिनकी देश को जरूरत है तो अपने आप क्वालिटी रिसर्च होगी और वह आम आदमी को फायदा पहुंचाएगी। जो रिसर्च देश के नागरिकों के काम आए वही रिसर्च अच्छी है। सवाल: आयुर्वेद पर सरकार का कितना फोकस है? जवाब: आयुर्वेद का बहुत सुनहरा भविष्य है। इसे लेकर एक ही चिंता है कि इसका भी व्यवसायीकरण ना हो जाए। आयुर्वेद की दवाएं बहुत बीमारियों में कारगर हैं। अगर सारे मेडिसिन के सारे सिस्टम एक दूसरे के खिलाफ ना काम कर इकट्ठा काम करें तो आयुर्वेद का बहुत बड़ा रोल देश के स्वास्थ्य खर्चे को कम करने में होगा। यह केवल देश के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए बड़ी राहत बन सकता है।