स्मार्ट सिटी ने करीब सालभर पहले ऑटोमेटिक फेयर कलेक्शन सिस्टम शुरू करने की बात कही थी। इसके तहत एक यूनिक पास बनाया जाना था, जिससे बीसीएलएल के चारों ऑपरेटरों की लो-फ्लोर बस समेत अन्य स्थानों पर उपयोग किया जाना था। लेकिन, एक साल बाद भी यह व्यवस्था फाइलों से बाहर नहीं आ पाई है। इधर, शहर में लो-फ्लोर बसों का संचालन करने वाले 4 ऑपरेटर की ओर से अलग-अलग पास जारी किए जाते हैं। जो संबंधित ऑपरेटर की बसों में ही मान्य होता है। इसका नुकसान यह है कि जिस रूट पर उक्त ऑपरेटर की बस नहीं चलती तो वहां दूसरे ऑपरेटर की बस में सफर करने पर पास धारक को किराया देना पड़ता है। 35 हजार तक पहुंच गए थे मासिक पास बीसीएलएल की ओर से संचालित लो-फ्लोर बसों में एक समय तक लोग भारी तादाद में मासिक पास का उपयोग करते थे। 2019 तक मासिक पास की संख्या बढ़कर 35 हजार के करीब पहुंच गई थी।नगर निगम इस पर सब्सिडी भी देता था। लेकिन, कोरोना में बसों के पहिए थमे तो पास भी बनना बंद हो गए। 2021 में बसों का संचालन तो फिर से शुरू हुआ, लेकिन पास बनाने वाली कंपनी हरमन इंटरनेशनल का करार खत्म हो गया। बीसीएलएल ने कंपनी को दोबारा हायर नहीं किया और नगर निगम ने भी पास पर दी जाने वाली सब्सिडी देना बंद कर दी। ऐसे में पास बनाने का काम भी बस ऑपरेटरों को सौंप दिया गया। अब करीब 4 हजार ही पास बचे हैं। अभी ऑपरेटरों की टेक्नोलॉजी अलग-अलग हैं, इनको एक ही प्लेट फॉर्म पर लाने के लिए काम चल रहा है। आईटीएमएस के माध्यम से ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि आने वाले दिनों में ऑपरेटर एक ही टेक्नोलॉजी पर काम करेंगे तब एक ही पास सभी बसों में चलेगा। -निधि सिंह, सीईओ, बीसीएलएल