मन चंगा तो कठौती में गंगा। शुचिता सिर्फ तन की ही नहीं, मनोविचारों की भी जरूरी है। स्वच्छता एक शैली नहीं, वरन् एक संस्कार है जो हमारे जीवन को और अधिक आलोकित करता है। कुछ ऐसी ही सोच और सेवा भाव से श् – 21/11/2024
मन चंगा तो कठौती में गंगा। शुचिता सिर्फ तन की ही नहीं, मनोविचारों की भी जरूरी है। स्वच्छता एक शैली नहीं, वरन् एक संस्कार है जो हमारे जीवन को और अधिक आलोकित करता है। कुछ ऐसी ही सोच और सेवा भाव से श् – 21/11/2024