मंडला जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर स्थित सीतारपटन में तीन दिवसीय मड़ई (मेला) का रविवार को आखिरी दिन है। शुक्रवार को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से शुरु हुई यह मड़ई अंजनिया क्षेत्र की सबसे बड़ी मड़ई मानी जाती है। वाल्मीकि आश्रम और लव-कुश जन्मस्थली बंजर नदी की सहायक नदी सुरपन के तट पर बसा सीतारपटन जिले का प्रसिद्ध धार्मिक और पर्यटन स्थल है। स्थानीय मान्यता है कि यहां आदि कवि महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था। उन्होंने यहीं रामायण की रचना की थी। साथ ही लोगों का मानना है कि श्री राम के कहने पर लक्ष्मण ने सीताजी को इसी वाल्मीकि आश्रम में छोड़ा था। लोग लव-कुश जन्मस्थली भी यहीं मानते हैं। सीताजी के रिपटने (पांव फिसलने) से सीतारपटन नाम पड़ा मान्यता है कि सुरपन नदी से पानी लाने के दौरान यहां सीताजी का पांव रपट (फिसल) गया। इसलिए इस जगह को सीतारपटन कहा जाता है। आज भी चट्टान के बीचों-बीच एक प्राकृतिक फिसल पट्टी बनी हुई है। यहां आने वाले लोग इस पट्टी से फिसलते देखे जा सकते है। माना जाता है की लव-कुश के जन्म के समय नगाड़े बजाए गए थे जो अब पत्थर में बदल चुके हैं। पहले दिन प्रारंभ हुई अखंड रामधुन सीतारपटन में वाल्मीकि आश्रम, लव-कुश, सीताजी और महर्षि वाल्मीकि की प्रतिमाएं हैं। यहां प्राचीन वाल्मीकि आश्रम मंदिर में मड़ई के पहले दिन शुक्रवार को अखंड रामधुन का आयोजन हुआ जो 24 घंटे के बाद शनिवार को समापन हुआ। रविवार को मड़ई का अंतिम दिन है जिसकी वजह से यहां बड़ी संख्या में लोगों के पहुंचने की उम्मीद है। पुलिस बल मौके पर तैनात सीता रपटन ग्राम में आयोजित होने वाली मड़ई पूरे क्षेत्र की सबसे बड़ी मड़ई मानी जाती है। जिसके कारण यहां होने वाले मेले के आयोजन में चौकसी रखने के लिए अंजनिया पुलिस बल तैनात रहता है। सुरक्षा की दृष्टि से अंजनिया, हिरदेनगर और बोकर की ओर से आने वाले मार्गों पर अंजनिया पुलिस की नजर रखी जा रही है।