भारतीय संस्कृति को आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में जीवित रखा गया है। अनेक स्थानों पर उनकी प्रथा, रीति रिवाज के अनुसार बनाए रखे हुए हैं( इसकी एक झलक पिछोर तहसील के ढला गांव में देखने को मिली। यहां प्राचीन रीती रिवाज के तहत मौनी बाबाओं ने नृत्य किया। इसे मौनिया या मौनी नृत्य, सेहरा और दीपावली नृत्य भी कहा जाता हैं। यह नृत्य बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाकों में दीपावली के दूसरे दिन मौन परमा को पुरुषों द्वारा किया जाता है। इसे मौनी परमा भी कहा जाता है। यह नृत्य बुंदेलखंड की प्राचीन नृत्य शैली है। दीपावली के दूसरे दिन शुक्रवार को ग्राम ढला में गांव के लोग पारंपरिक वेशभूषा में मौनी बाबाओं ने मौन व्रत रखकर बारह गांव की परिक्रमा शुरू की। इसके बाद मौनी बाबाओं ने 12 गांव की परिक्रमा लगाकर नृत्य किया। यह नृत्य क्षेत्र की शान्ति और सुख सम्रद्धि को लेकर किया गया। इस दौरान प्रत्येक गांव में मौनी बाबाओं को फल आहार भी कराया गया। बाद में मौनी बाबाओं ने 12 गांव की परिक्रमा मौन रहकर नृत्य करते हुए पूरी की, बाद में गांव बापस आकर विधि-विधान से पूजा अर्चना कर अपने मौनी व्रत तोड़ा गया। बता दें कि इस नृत्य को भगवान श्रीकृष्ण के रास नृत्य से भी जोड़ा जाता है। विलुप्त होती संस्कृति विरासत को संजोए रखने का यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है।