बाबा महाकाल को लगेगा केसरिया दूध का भोग:16 अक्टूबर को मनेगा शरद उत्सव, महाकाल की आरती के समय में परिवर्तन होगा

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शरद पूर्णिमा का पर्व महाकाल मंदिर में 16 अक्टूबर बुधवार को मनाया जाएगा। बाबा महाकाल को सुबह भस्म आरती व संध्या आरती के दौरान केसरिया दूध का भोग अर्पित किया जाएगा। वहीं 18 अक्टूबर शुक्रवार को कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से भगवान महाकाल की आरती के समय में परिवर्तन होगा। विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में शरद पूर्णिमा पर बाबा महाकाल को सुबह होने वाली भस्म आरती और संध्या आरती के दौरान केसरिया दूध का भोग लगाकर शरद उत्सव मनाया जाएगा। शहर में शरद पूर्णिमा के अवसर पर मंगलनाथ मार्ग स्थित सांदीपनि आश्रम और द्वारिकाधीश गोपाल मंदिर सहित अन्य मंदिरों में भी दूध व खीर का भोग भगवान को अर्पित किया जाएगा। शरद पूर्णिमा के पश्चात कृष्ण प्रतिपदा 18 अक्टूबर दिन शुक्रवार से श्री महाकालेश्वर मंदिर में बाबा महाकाल की तीन आरतियों का समय परिवर्तित हो जाएगा। तीन आरतियों का यह समय रहेगा शुक्रवार को कृष्ण प्रतिपदा से मंदिर में तीन आरतियों के समय में आधे घंटे का परिवर्तन होगा। इसके तहत प्रात: होने वाली द्दयोदक आरती 7:30 से 8:15 तक, भोग आरती प्रात: 10:30 से 11:15 तक व संध्या आरती सायं 6:30 से 7:15 बजे तक होगी। इसके अलावा भस्मार्ती प्रात: 4 से 6 बजे तक और शयन आरती रात्रि 10:30 से 11 बजे तक अपने निर्धारित समय पर ही होगी। द्वारिकाधीश गोपाल मंदिर व सांदीपनि आश्रम में खीर का भोग भगवान श्री कृष्ण की पाठशाला सांदीपनि आश्रम में भी 16 अक्टूबर को शरद उत्सव मनाया जाएगा। मंदिर के मुख्य पुजारी पं. रूपम व्यास ने बताया कि भगवान को श्वेत वस्त्र धारण कराएंगे। वहीं संध्या के समय चंद्रमा की चांदनी में खीर रखी जाएगी। खीर का भोग भगवान लगाने के बाद शयन आरती होगी। सभी भक्तों को खीर का प्रसाद वितरित किया जाएगा। सिंधिया ट्रस्ट के द्वारिकाधीश गोपाल मंदिर के पुजारी मधुर शर्मा ने बताया कि शरद उत्सव पर संध्या के समय भगवान को खीर का भोग अर्पित होगा। मंदिर में आने वाले भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाएगा। रवि योग में शरद पूर्णिमा पं. अमर डब्बावाला के अनुसार इस बार शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा 16 अक्टूबर बुधवार को मध्य रात्रि में रवियोग में आ रही है। मध्य रात्रि में चंद्रमा की कला अपने उच्च अंश पर होती है। इस दिन चंद्रमा की पूर्ण ऊर्जा वनस्पति पर पड़ती है। यह वनस्पति और फसलें अमृत के रूप में हमें प्राप्त होती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि को महारास हुआ था, ऐसा भागवत में उल्लेख आता है। इस महारास में कृष्ण के साथ गोपियों का रास बताया गया है। चंद्रमा का यौवन पूर्णिमा पर प्रबल माना जाता है, इसलिए परंपरा में खीर बनाकर चंद्रमा के सामने रखने और प्रात: उस खीर को सेवन करने का विधान बताया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग मध्य रात्रि तक रखा गया खीर का प्रसाद लेते है, उन्हें अस्थमा आदि बीमारी नही होती। माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति का खास दिन मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा को माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती है और कौन जाग रहा है। कौन उपासना कर रहा है। मां लक्ष्मी कहती है कि जो जागेगा उसे मैं धन प्रदान करूंगी, इसलिए इस रात्रि को भी जागरण की रात्रि मानी जाती है। पं. डिब्बावाला ने बताया कि शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक कृष्ण अमावस्या तक माता महालक्ष्मी की 15 दिन की साधना है, किंतु लोग कार्तिक मास के पांच दिवस की साधना करते है। जिस प्रकार नवरात्रि में 9 दिन नवदुर्गा की साधना है। वैसे ही महालक्ष्मी, मां सरस्वती की साधना शरद पूर्णिमा से कार्तिक कृष्ण अमावस्या तक करना चाहिए।