इंदौर के शंकराचार्य मठ में प्रवचन:जगदंबा की आराधना से मिलती है सांसारिक उलझनों को सहन करने की शक्ति- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज

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भारतीय परंपरा के अनुसार जगत जननी जगदंबा की आराधना के माध्यम से जीवन संग्राम से जूझता व्यक्ति अपने जीवन की उलझनों से शांति प्राप्त करता है। इसके साथ ही उसके अंदर सांसारिक उलझनों को सहन करने की शक्ति प्राप्त होती है। वह हर परिस्थिति में अपने आप को संयमित रखने हुए जीवन नैया सहज और सरलता से पार कर जाता है। एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में सोमवार को यह बात कही। धार्मिक मर्यादाओं को दरकिनार कर दिया महाराजश्री ने बताया कि मां भगवती की आराधना मानसिक शांति, अदम्य साहस, मन को केंद्रित करने और अपने आप को संतुलित बनाए रखने की व्यवस्था देती है, लेकिन भौतिक चकाचौंध में अग्रसर आधुनिक दौड़ में लगे हुए मनुष्य इन आध्यात्मिक शक्तियों का मूल्य नहीं जान पाते हैं। इस कारण मनमाने ढंग से नवरात्रि को मनोंरंजन का साधन समझकर अपने-अपने तरीके से धार्मिक मर्यादाओं को दरकिनार रखते हुए महज दिखावे के लिए शक्ति की आराधना के नाम पर अपने आप को तो धोखा दे ही रहे हैं, समाज को भी धोखा दे रहे हैं। इस तरह शास्त्र की मर्यादाओं को दरकिनार रखते हुए दिखावे की आराधना कर रहे हैं। गुजरात से गरबा चला, यह आराधना है, इसलिए इसका नियम है कि गरबा में वे ही कन्याएं भाग लेती हैं, जो रजस्वला नहीं होती। जिनके अंदर न तो दिखावे की और न ही रिझाने की दूषित मानसिकता होती है। केवल भगवती को प्रसन्न करने लिए गरबा किया जाता है। भगवती की पूजा में महिलाएं एक तरफ पुरुष एक तरफ, रहकर आराधना करते हैं। संयम से ब्रह्मचर्य के सात्विक आहार एवं फलाहार से सांसारिक विषयों से दूर रहकर की गई इस आराधना से शक्ति प्राप्त होती है। इसके विपरीत अब तो केवल लोगों को रिझाने और चुनावी माहौल बनाने के लिए भीड़ इकट्‌ठी करके शक्ति प्रदर्शन के लिए इसे माध्यम बना लिया है। इन विकृत परंपरा को ही वे आराधना कहने लगे हैं।