प्राकृत भाषा भारत की एक प्राचीन भाषा है, जिससे भारत की अन्य भाषाओं और बोलियों का जन्म हुआ है। इस भाषा में हज़ारों की संख्या में जैन आगम जैन साहित्य लिखे गए जो लगभग 2500 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन हैं। धर्म समाज प्रचारक राजेश जैन दद्दू ने बताया कि प्राकृत भाषा के विद्वानों की पिछले कई दशकों से मांग थी कि इसे शास्त्रीय भाषा का दर्जा सरकार द्वारा दिया जाए ताकि इस भाषा का संरक्षण और संवर्धन किया जा सके। समाज के कई विद्वानों ने सरकार से मांग की थी ,उनकी इस मांग को स्वीकारते हुए भारत सरकार ने 3 अक्टूबर को प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान करने की घोषणा की। इसके साथ साथ उन्होंने पाली,असमिया, मराठी, बंगला भाषा को भी शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया है । प्राकृत भाषा में ही प्रकाशित होने वाली प्रथम पत्रिका ‘पागद – भासा’ के संपादक जैन रत्न प्रो अनेकांत कुमार जैन ने इस हेतु प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस कार्य हेतु उनका आभार ज्ञापित किया है । ज्ञातव्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने आरंभ से ही भारतीय भाषाओं के संरक्षण की मुहिम छेड़ रखी है। नई शिक्षा नीति में भी भारतीय भाषाओं को प्रमुखता प्रदान की गई है। केन्द्रीय सरकार के इस ऐतिहासिक निर्णय का इंदौर दिगम्बर जैन समाज के वरिष्ठ लेखक पत्रकार डॉ. जैनेन्द्र जैन, महावीर ट्रस्ट के अध्यक्ष अमित कासलीवाल, हंसमुख गांधी, टीके वेद, डॉ. अनुपम जैन एवं समग्र जैन समाज ने सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हुए आभार प्रकट किया गया।