दूध-घी और खाद बेचकर सालाना कमा रहे 50 लाख:खेत में बनी सीएनजी से चला रहे ट्रैक्टर-बाइक; 8वीं पास किसान को मिला राष्ट्रीय पुरस्कार

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शुजालपुर के रहने वाले युवा किसान देवेंद्र परमार को 26 नवंबर को दिल्ली में गोपाल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान बेस्ट डेयरी फार्मर कैटेगरी में देसी पशुओं की नस्ल सुधार के लिए दिया गया। देवेंद्र ने अपने खेत में बायोगैस संयंत्र लगा रखा है, इससे वे सीएनजी (कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस) बनाते हैं। इसी की मदद से अपनी कार, बाइक और ट्रैक्टर चलाते हैं। इससे पेट्रोल, डीजल पर होने वाला खर्च बच जाता है। यही नहीं, वे केंचुआ खाद के साथ बिजली भी पैदा करते हैं। दैनिक भास्कर की स्मार्ट किसान सीरीज में आपको आज पटलावदा के रहने वाले देवेंद्र परमार से मिलवाते हैं। इन्होंने अपनी 2 हेक्टेयर यानी 10 बीघा जमीन पर बीते 6 साल से रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया। वे दूध, घी, केंचुआ खाद बेचकर सालाना 50 लाख रुपए कमाई कर रहे हैं। रोज 100 यूनिट बिजली का उत्पादन
देवेंद्र बताते हैं, ‘मेरा डेयरी का कारोबार है। आसपास के गांव से दूध खरीदकर लोडिंग वाहन, कार और ट्रैक्टर के जरिए लाते थे। रोज करीब तीन हजार रुपए का डीजल और पेट्रोल डलवाना पड़ता था। इस खर्च से परेशान होकर अपने गोबर गैस संयंत्र को बायोगैस प्लांट में तब्दील कराया। बिहार से आए इंजीनियर ने प्लांट लगाने में मदद की। इसमें 25 लाख रुपए की लागत आई। मेरे पास 10 बीघा जमीन भी है। इसमें पिछले 6 साल से रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं किया। 168 दुधारू पशु हैं। रोजाना 40 क्विंटल गोबर जमा होता है। ऑटोमैटिक मशीन से गोबर 600 घन मीटर के बायोगैस संयंत्र में डाला जाता है। इससे रोज 100 यूनिट यानी 12 किलोवाट बिजली पैदा हो रही है। गोबर के वेस्ट से केंचुआ खाद बनती है। 300 किलो जैविक खाद 10 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं। खाद को आसपास के गांवों के किसान ही ले जाते हैं।’ महीनेभर में 4 लाख रुपए का प्रॉफिट
देवेंद्र ने कहा- बायोगैस प्लांट से रोज 200 किलो गैस का उत्पादन हो रहा है। इसे सीएनजी के रूप में वाहनों को चलाने में इस्तेमाल करता हूं। खेत पर बनने वाली बिजली से ब्रांडेड दूध, घी और खाद की पैकिंग मशीन चलती है। रोजाना 500 लीटर दूध-घी से 30 हजार, केंचुआ खाद बेचकर 3 हजार और खुद के मवेशियों का 500 लीटर दूध बेचकर 4 हजार रुपए की कमाई होती है। इसके अलावा 1500 लीटर दूध सांची दुग्ध संघ भोपाल को भी बेचते हैं। बिजली के लिए 5 किलोवाट का सोलर पैनल भी लगा रखा है। 20 कर्मचारियों के खर्च, प्रबंधन, देखरेख और चारे की व्यवस्था को काटकर महीनेभर में 4 लाख रुपए का प्रॉफिट हो जाता है। खाद बनाने का तरीका भी अलग
केंचुआ खाद (वर्मी कम्पोस्ट) के लिए दूसरे किसान निर्धारित साइज में बेड बनाते हैं। देवेंद्र ऐसा नहीं करते हैं। उन्होंने कहा, ‘दस बीघा जमीन पर गोबर फैला है। हर कदम पर केंचुआ खाद है। मशीन से छानकर सूखा खाद और केंचुए अलग किए जाते हैं। सूखी खाद 10 और केंचुआ मिक्स खाद 50 रुपए किलो बिकती है। 50 किलोमीटर दूर तक के किसान इसके लिए एडवांस बुकिंग कराते हैं।’ पूरा काम ऑटोमैटिक मशीनों से
देवेंद्र का कहना है कि पूरा काम ऑटोमैटिक मशीन की मदद से होता है। मवेशियों के लिए व्यवस्थित बनाए गए शेड में इस तरह नालियां और कंप्रेसर फिट किए गए हैं, जिससे गोमूत्र और गोबर ऑटोमैटिक ही प्लांट में मिनटों में चला जाता है। मवेशियों को दिया जाने वाला चारा काटने से लेकर दूध बढ़ाने के लिए दिया जाने वाला दाना बनाने की मशीन भी खेत में लगा रखी है। चारा स्टोर करने भी मशीन लगी है। कर्नाटक, ओडिशा से सीखने आते हैं किसान
कभी देवेंद्र खुद दूसरे प्रदेशों में जाकर कम लागत में पशुपालन के तरीके सीखते थे, आज हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक और ओडिशा जैसे राज्यों के किसान किसानी और पशुपालन की सीख लेने उनके पास आते हैं। देवेंद्र देसी गाय की ब्रीडिंग कर सालाना 20 बछिया बेचते हैं, बाकी अपनी गोशाला में ही रख लेते हैं। उनके पास देसी मालवा नस्ल की 33 गाय हैं। इसी तरह सायवल, गिर, थारपरकर, एच एफ, गिर क्राॅस ब्रीड के 168 पशु हैं, जिनमें 150 वयस्क हैं। दूध प्लांट में भी बायो गैस से सब काम होता है। 3 श्रेणियों में दिया जाता है गोपाल रत्न पुरस्कार
पशुपालन और डेयरी के क्षेत्र में काम करने वाले किसानों, सहकारी समितियों, दूध उत्पादक कंपनियों और संगठनों को प्रोत्साहित करने राष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार तीन श्रेणियों में दिया जाता है। देवेंद्र परमार को सर्वश्रेष्ठ डेयरी किसान, स्वदेशी मवेशी नस्लों का पालन करने, सर्वश्रेष्ठ कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन (एआईटी) श्रेणी में इस पुरस्कार के चुना गया था। 26 नवंबर 2024 को राष्ट्रीय दुग्ध दिवस समारोह के अवसर पर मानेकशॉ सेंटर, नई दिल्ली में उन्हें पुरस्कार से नवाजा गया। MP के स्मार्ट किसान सीरीज की ये खबर भी पढ़ें… मशीन से रोपी धान, ड्रोन से छिंड़कते हैं दवा:बालाघाट के किसान 130 एकड़ में कर रहे टेक्नो फ्रेंडली खेती खेती में टेक्नोलॉजी की मदद से किस तरह लागत कम कर प्रॉफिट बढ़ाया जा सकता है, इसे साबित किया है बालाघाट के विशाल कटरे ने। टेक्नो फ्रेंडली युवा किसान विशाल 130 एकड़ जमीन में धान की खेती कर रहे हैं। जुताई से लेकर कटाई तक मशीनों की मदद से करते हैं। इससे प्रॉफिट 60 फीसदी तक बढ़ गया। उनके खेती के तरीके को देखने के लिए जापान के इंजीनियर भी आ चुके हैं। पढ़ें पूरी खबर…