शंकराचार्य मठ इंदौर में प्रवचन:कुछ लोग न तो संस्कारों का ध्यान रख पा रहे हैं और न ही खानपान का- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज

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जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन… जैसा पियोगे पानी वैसी बोलोगे वाणी… भौतिक चकाचौंध की लपेट में अपने आप को हाईप्रोफाइल बताने वाले लोग न तो अपने संस्कारों का ध्यान रख पा रहे हैं और न ही ठीक तरह से खानपान का। इसके कारण वे स्वत: की बुद्धि तो खराब कर ही रहे हैं, स्वास्थ्य खराब करने के साथ-साथ अपने बच्चों को भी अंधेरे की ओर धकेल रहे हैं। एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में गुरुवार को यह बात कही। खाने का सीधा असर मन पर महाराजश्री ने बताया कि कारण यह है कि होटलों में खाने की आदत, घर में किसी से भी खाना बनवा लेना, बाहर की कचौरी- समोसे आदि खाने के कारण स्वास्थ्य भी खराब होता है और मन भी। खाने का सीधा असर मन पर पड़ता है। पानी का असर वाणी पर पड़ता है। अन्नपूर्णा का मंदिर होता है रसोई घर डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने कहा- माता कौशल्या के घर हजारों नौकर थे, फिर भी अपने परिवार का भोजन वे स्वयं बनाती थीं। वास्तव में होटल का भोजन तो आपात स्थिति के लिए है। पर वहां भी यह देखा जाता है कि भोजन बनाने वाला कौन है, पात्र है या अपात्र, भोजन शुद्ध है या नहीं, तब किया जाता है। रसोई अन्नपूर्णा का मंदिर होता है। बगैर स्नान किए रसोई में नहीं जाना चाहिए। न ही रात में रसोई गंदी छौड़नी चाहिए। जूठे बर्तन भी रात में नहीं छोड़ने चाहिए, नहीं तो ऐसे परिवारों में दरिद्रता और बीमारियां घर बना लेती हैं, क्योंकि अन्न का असर सीधे मन पर पड़ता है। इसीलिए कहा जाता है कि जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन… स्नान ध्यान करके भगवान के लिए भोग बनाना चाहिए। भगवान को भोग लगाने के बाद वह भोजन प्रसाद रूप में पूरा परिवार करता है तो बुद्धि सुधरती है। पूजा करने वाला जो ब्राह्मण लहसुन प्याज, बाजार का आलूबड़ा-समोसा आदि खाना खाता है, उसकी पूजन नहीं लगती। ऐसे ब्राह्मणों से पूजा नहीं करानी चाहिए। उन्हें तो दक्षिणा मिल जाती है, पर पूजा कराने वाले को कोई फल नहीं मिलता। …जब ऋषि की बुद्धि हुई खराब महाराजश्री ने एक दृष्टांत सुनाया- एक बार एक ऋषि एक राजा के यहां गए। उनके यहां भोजन किया। उनकी बुद्धि खराब हो गई। वे राजा का हार चुराकर ले आए। राजा ने सोचा इतने बड़े महात्मा मेरा हार चोरी करके ले गए, यदि बोलते तो हार तो क्या मैं पूरा राज दे देता। तीन दिन बाद महात्मा वापस आए राजा का हार वापस किया। बोले कि मुझे यह बताओ कि उस दिन मेरा भोजन किसने बनाया था। और वह अनाज कहां से लाया गया था। पता करने पर पता चला कि भोजन बनाने वाला चोर था और वह चोरी का अनाज लाया था। जिसका असर महात्मा के मन पर पड़ गया। बच्चों और साधुओं की बुद्धि बहुल कोमल होती है, जिसके कारण भोजन का असर उनकी बुद्धि पर जल्दी पड़ता है। पवित्र भोजन, पवित्र जल, पवित्र आचरण से तन, मन पवित्र होता है। और व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है। पवित्रता से रहने वाला व्यक्ति भले ही धनहीन हो पर दु:खी नहीं होता।