बच्ची के नाले में डूबने का मामला:पिता बोले दौड़ने की ऐसी आदत थी कि गेट बंद कर रखते थे, भोजन लेने गया, इतने में निकल गई बेटी

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मां बोलकर गई थी ब्यूटीपार्लर से फोन करूंगी तो उसे भेज देना, उसके भी हेयर कट करवाना हैं जिसे एक पल आंखों से ओझल नहीं होने देता था, वह 5 मिनट में छोड़कर चली गई। मेरी लक्षिका हाइपर एक्टिव चाइल्ड थी। वह ठीक से बोल नहीं पाती थी। उसे दौड़ कर खेलने की आदत थी। वह कभी भी दौड़ लगा देती थी। इसलिए हम गेट बंद करके रखते थे। शनिवार को हम गुजरात से शादी में शामिल होने इंदौर आए। दोपहर में मेरी पत्नी ब्यूटीपार्लर जाते वक्त बोलकर गई कि इसे संभालना। जब फोन करूं तो उसे भेज देना, क्योंकि उसके भी हेयर कट करवाना हैं। मैं, लक्षिका और मेरे दो साले (दूर के) घर में थे। मैं भोजन लेने अंदर गया तब साला फोन पर बात करने लगा। बस गेट खुलते ही लक्षिका दौड़ पड़ी। फिर पत्नी ने फोन किया कि बेटी को भेज दो। मैंने साले को कहा। दूसरी बार 1.39 बजे पत्नी ने फोन कर कहा कि वह नहीं आई। तब हमने उसकी खोजबीन की, लेकिन वह नहीं मिली। इतना कहते ही बच्ची के पिता जीवन मीना फफक पड़े। वे बोले- मैंने उसे खोजने के लिए दौड़ लगाई, लेकिन वह कहीं नहीं दिखी। गार्डन के पास पहुंचा, वहां दो आदमी काम कर रहे थे। उनसे पूछा तो वे बोले किसी को नहीं देखा। इसलिए मैं दिशा भटक गया और नाले की तरफ नहीं जा सका। इसके बाद तीन दिन से लगातार उसकी खोजबीन करते रहे, लेकिन आखिर में दुखद सूचना मिली। शिवसागर कॉलोनी के रहवासी बोले हम दो दिन और रातभर पुलिस के साथ उसे खोज रहे थे। निर्माणाधीन मल्टी, मकान, कुएं, हौज, वाहनों तक खोजा, लेकिन वह नहीं मिली। तीन दिन से उसके घर वालों ने कुछ भी नहीं खाया है। उसकी मां और पिता का बुरा हाल हो चुका है। तीसरे दिन जब उसका श‌व मिला तो हर किसी की आंखों में आंसू थे। सभी गुस्से में थे। रहवासी रातभर खोजते रहे, कोई जगह नहीं छोड़ी झूले के पास खतरनाक ढलान, पानी का तेज बहाव, बच्ची फिसली तो संभल नहीं पाई एडिशनल डीसीपी आलोक शर्मा के अनुसार फुटेज में बच्ची की लास्ट लोकेशन गार्डन में दिखी। वहां एक झूला लगा हुआ है। झूले के ही बगल में खतरनाक ढलान है। वहां पानी का बहाव तेज है। इसलिए बच्ची झूले के पास से सीधे नाले में गिरी। नाले में बहाव तेज था। नाले के पास ही डंप है। वह बहती हुई डंप पर पहुंची। उसके ऊपर गंदा पानी और झाग व थर्माकोल आ गए। इससे वह दिख नहीं रही थी। रात को हमारी टीम ने नाले का डेढ़ किमी एरिया सर्च किया था। वहां कोई साक्ष्य नहीं मिला था। सुबह भी एसडीआरएफ को कुछ नहीं मिला तो कचरा हटाने के लिए पोकलेन बुलाई गई ।मैं गार्डन ले जाता था : नाना नाना भ‌वानी शंकर काकस ने बताया कि तीन महीने बाद फिर से बच्ची हमारे घर आई थी। तीन महीने पहले मैं उसे उसी गार्डन में घुमाने ले जाता था। ऐसा लगता है कि वह खेलने के लिए गार्डन गई होगी। बच्ची के पिता गुजरात के सुरेंद्र नगर की एक फार्मा कंपनी में काम करते हैं। लक्षिका माता-पिता के साथ वहीं रहती है। देवास में एक रिश्तेदार की शादी में शामिल होने वे शनिवार को आए थे। लक्षिका का 21 वर्षीय बड़ा भाई उज्बेकिस्तान से डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा है।