भगवान चेतना के रूप में अनंतकोटि में व्याप्त हैं। चेतना को जाग्रत करना ही अपने अंदर मौजूद परमात्मा को जगाना है। वैसे भगवान क्षणभर भी कभी सोते नहीं हैं। अपनी चेतना जाग्रत करने का पर्व है देव प्रबोधिनी एकादशी। भारतीय शास्त्रों में प्रत्येक विधान व्यक्ति के स्वास्थ्य को देखते हुए बनाए गए हैं। एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने देव प्रबोधिनी एकादशी के अवसर पर अपने नित्य प्रवचन में मंगलवार को यह बात कही। कामकाज संभालना भी एक तरह का जागरण महाराजश्री ने बताया कि एकादशी का मतलब होता है पांच ज्ञानेंद्री, पांच कर्मेंद्री और मन। सांसारिक विषयों में फंसे होने के कारण व्यक्ति कई प्रकार के दुखों को झेलता है। लौकिक विषयों को परमात्मा के समीप रहकर त्याग कर अलौकिक विषयों की ओर परमात्मा को प्राप्त करने का संकल्प ही सच्ची एकादशी है। अब खेती की बोनी शादी-विवाह की तैयारियां और काम काज को देखना ही जागना है। इसलिए अन्नकूट में भी सभी प्रकार के पकवान खाए जाते हैं। कहावतों में भोजन का अनुशासन डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने कहा कि हमारे देश में भोजन को लेकर भी कहावतें हैं, जो हमें बताती हैं कि कब क्या और कैसा खाना चाहिए। कहावत है कि श्रावण व्यारी जप तप कीजे, भादो बाको नाम न लीजे, कार्तक भोर दिवाली, ठेलमठेल बिहारी…। चार महीने में अन्न ठीक से पच नहीं पाता, इस कारण शाम के भोजन को निषिद्ध किया जाता है, परंतु अब लोग मानते नहीं हैं, जिसके कारण चिकित्सकों का भला हो रहा है। योग निद्रा से जागते हैं श्रीहरि महाराजश्री ने कहा कि सर्व विदित है कि कार्तिक शुक्ल पर्यंत ब्रह्मा, इंद्र, अग्नि, वरुण, कुबेर, सूर्य और सोमादि जिनकी वंदना करते हैं, जगत के नाथ योगेश्वर क्षीरसागर में शेष शैया पर चार मास शयन करते हैं। भगवत भक्त उनके शयन परिवर्तन और प्रबोध के लिए एकाग्रचित्त होकर यथासमय धार्मिक कार्य करते रहते हैं। इसके बाद श्रीहरि योग निद्रा से जागते हैं। भगवान क्षणभर भी नहीं सोते डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया कि भगवान क्षणभर भी कभी सोते नहीं हैं, फिर भी यथा देहे तथा देहे… मानने वाले उपासकों को शास्त्रीय विधान अवश्य करना चाहिए। यह कार्य कार्तिक शुक्ल एकादशी को रात्रि के समय किया जाता है। उस समय शयन करते हुए हरि को जगाने के लिए विभिन्न प्रकार के उपचार गीत, संगीत, भजन-पूजन आदि किए जाते हैं। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन से भीष्म पंचक व्रत भी किया जाता है, जो कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। मांगलिक कार्यों का शुभारंभ महाराजश्री ने बताया कि प्राणी मात्र का पालन पोषण और संरक्षण करने वाले परमात्मा इस दिन जागते हैं, कहने का मतलब यह है कि चातुर्मास में मांगलिक कार्य नहीं होते हैं, जो अब प्रारंभ हो जाएंगे। इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है। जो चातुर्मास में कीड़े मकोड़े के भय से खाद्य पदार्थ का सेवन बंद कर दिया जाता है, उसका प्रारंभ भी इस दिन से हो जाता है।फलाहार का मतलब फुलाहार नहींडॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने बताया कि फलाहार का मतलब होता है, फलों का आहार. न कि फुलाहार। लोगों की समझ कम होने के कारण व्रत के नाम पर लोग आम दिनों की अपेक्षा अधिक गरिष्ट खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं, जिसके कारण व्रत का लाभ नहीं मिलता। सात्विकता से किया हुआ व्रत ही आयुर्वेदिक दृष्टि से व्यक्ति को लाभ पहुंचाता है।