इंदौर के शंकराचार्य मठ में नित्य प्रवचन:भगवान से उत्पन्न होने वाला संसार भी भगवत रूप- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज

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श्रीमद् भगवद् गीता में लिखा है- यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन। न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्।।… भगवान कहते हैं अर्जुन समस्त प्राणियों का जो बीज है, वह मैं ही हूं। मेरे बिना कोई भी चराचर प्राणी नहीं है अर्थात चराचर सब कुछ मैं ही हूं। जिस तरह बीज से खेती होती है, ठीक इसी तरह भगवान से यह सारा संसार होता है। जैसे गेहूं से गेहूं पैदा होता है, पशु से पशु, मनुष्य से मनुष्य ठीक इसी तरह भगवान से भगवान ही होते हैं। एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में शुक्रवार को यह बात कही। भगवान हैं अनादि बीज महाराजश्री ने कहा कि सोने से बने गहने सोना ही होते हैं। लोहे से बने औजार लोहा ही होते हैं। मिट्‌टी से बने बर्तन मिट्‌टी ही होते हैं। इसी तरह भगवान से होने वाला संसार भी भगवत रूप ही है। पहले बीज होता है। अंत में भी बीज होता है। मध्य में खेती होती है। गेहूं की मूल खेती में एक दाना भी गेहूं का नहीं होता है, पर गाय उसे खा जाए तो हम कहते हैं कि तुम्हारी गाय गेहूं खा गई। कारण यह है कि जैसा बीज होता है, वैसी ही खेती होती है। लौकिक बीज तो खेती से पैदा होने वाला होता है, पर भगवान रूपी बीज पैदा होने वाला नहीं होता। भगवान ने अपने आपको अनादि बीज बताया है। ‘बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्’… लौकिक बीज तो अंकुर पैदा करते नष्ट हो जाता है, पर भगवान रूपी बीज अनंत सृष्टियां पैदा करके भी ज्यों का त्यों रहता है। अत: भगवान ने अपने को अव्यय बीज बताया है। ‘प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्…. सांसारिक बीज से तो एक ही प्रकार की खेती पैदा होती है, जैसे चने से चना पैदा होता है, ऐसा नहीं होता कि चने से गेहूं पैदा होता हो या बाजरी, मक्की, मूंग, धान आदि हो जाए। सबके बीज अलग-अलग होते हैं, पर भगवान रूपी इतना विलक्षण बीज है कि उस एक बीज से ही अनेक प्रकार की सृष्टियां उत्पन्न हो जाती हैं।