तारीख- 30 अक्टूबर 2016। समय- रात 1.30 बजे। ये दिवाली की रात थी। रोशनी की चमक और पटाखों की गूंज धीमी पड़ चुकी थी। शहर नींद के आगोश में समा चुका था। भोपाल शहर से बाहर सेंट्रल जेल में भी कैदी सो चुके थे मगर इसी जेल की अंडा सेल में बंद आठ कैदी पूरी तरह सतर्क थे, उनकी आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। ये सब सिमी के आतंकी थे। वो कुछ बड़ा करने वाले थे। क्या बड़ा… इस सवाल का जवाब करीब आधे घंटे बाद मिल गया। रात दो बजे सिमी के आठों आतंकी जेल प्रहरी की हत्या कर जेल से फरार होने में कामयाब हो गए थे। जेल से बाहर निकले जरूर मगर आठ घंटे बाद पुलिस ने आठों को एनकाउंटर में ढेर कर दिया था। आखिर क्या हुआ था उस रात, कैसे सिमी के आतंकी बेहद सुरक्षित मानी जाने वाली जेल से भागे और कैसे पुलिस ने उन्हें मार गिराया? 8 साल बाद भी उस रात की कहानी एक रहस्य है। पढ़िए, आतंकियों के फरार होने से एनकाउंटर तक की पूरी कहानी…
आतंकी रात 2 बजे फरार हुए ढाई बजे पुलिस को खबर मिली तत्कालीन एसपी नॉर्थ अरविंद सक्सेना स्टाफ और पूरी पुलिस टीम को दीपावली की शुभकामनाएं देकर देर रात में सोने जा चुके थे। रात करीब ढाई बजे लगातार बजती मोबाइल की घंटी से उनकी नींद खुली। दूसरी ओर डीआईजी रमन सिकरवार ने जो कहा, उन शब्दों ने सक्सेना को पूरी तरह चौकन्ना कर दिया, उन्होंने तुरंत अपने सबऑर्डिनेट अफसरों को कॉल किया। सक्सेना ने अफसरों को बताया कि सिमी के आठ खूंखार आतंकी एक जेल प्रहरी की हत्या करके जेल से भाग चुके हैं, पूरे जिले को हाई अलर्ट कर दें और मैदान में उतर जाएं। उन्हें अंधेरा छंटने के पहले ही पकड़ना होगा, इससे ज्यादा देरी हुई तो या तो वे पहुंच से दूर निकल जाएंगे या जनता की भीड़ में घुल-मिलकर चकमा दे देंगे। कुछ ही देर में सायरन बजाते हुई पुलिस की गाड़ियां सड़कों पर दौड़ रही थीं। सभी डायल 100 और गश्त पर मौजूद पुलिस के हर अफसर से लेकर जवान तक को अलर्ट कर दिया गया था। खाकी शहर और आसपास के इलाकों की खाक छानने निकल पड़ी थी। गैलरी में बिखरा खून, जेल रजिस्टर से मिली फोटो
स्पेशल सेल में फर्श पर खून बिखरा हुआ था। जेल प्रहरी प्रधान आरक्षक रमाकांत यादव दम तोड़ चुके थे। बैरक से 200 मीटर की दूरी पर मुख्य दीवार थी, जहां अफसरों ने देखा करीब चार फीट की ऊंचाई पर दीवार में एक गड्ढा सा बना हुआ था। मानो पुरानी दीवार की यह चोट पैर रखकर चढ़ने वालों के लिए निकल आई थी। आतंकी इसी से चादर के सहारे करीब 25 फीट ऊंची दीवार पर चढ़े और दूसरी ओर चादर लटकाकर उतर गए। बैरक के बाहर लगे कैमरे का मुंह भी मुड़ा हुआ था, एक सीसीटीवी में कुछ हलचल रिकॉर्ड हुई थी लेकिन यह भी केवल भागने वालों की संख्या और समय बताने जितने ही काम की थी। कम्प्यूटर युग में भी जेल में कैदियों के फोटो रजिस्टर पर ही चिपके हुए थे। इन्हीं पासपोर्ट तस्वीरों से जैसे-तैसे फोटो खींचकर सभी पेट्रोलिंग और सर्चिंग पार्टियों को सर्कुलेट किए गए। नेटवर्क को एक्टिव किया … शैलेंद्र चौहान ने बताया हमें अंदेशा था कि शातिर आतंकी रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड की ओर नहीं जाएंगे। वे भागने के लिए किसी वाहन चालक को मारकर कब्जा करने जैसा कदम उठाएंगे जिससे तेजी से भाग सकें लेकिन दीवाली की रात थी और संयोग से पिछले घंटों में कोई वाहन यहां से नहीं गुजरा था। ऐसे में संभावना यही थी कि आतंकी सबसे नजदीक के झाड़ जंगलों वाले इलाके अचारपुरा की ओर गए होंगे। हमने अपना ध्यान इसी ओर लगाने पर फोकस किया। गुनगा थाना प्रभारी चैन सिंह रघुवंशी, संबंधित थाना प्रभारी वीरेंद्र सिंह को एरिया में अपने नेटवर्क को एक्टिव करने को कहा। इलाके पटवारियों , ग्राम सरपंचों और सचिवों को जगाना शुरू करके हर गांव के ग्रुप पर आतंकियों के फोटो वायरल करने को कहा। ढलती रात के साथ धुंधलाती उम्मीदें एक ओर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी सड़क पर उतरकर एक-एक टीम की मॉनिटरिंग कर रहे थे वहीं समय बीतने के साथ घेराबंदी का दायरा बड़ा किया जा रहा था। सुबह के पांच बज गए थे। आतंकियों को जेल से निकले हुए करीब तीन घंटे का समय बीत चुका था। ऐसे में अनुमान था कि पैदल चलने पर भी वे 10 से 15 किलोमीटर दूर निकल गए होंगे। अब घना अंधेरा कुछ कुहासे में बदलने लगा था। जैसे-जैसे पौ फट रही थी अफसरों की उम्मीदें धुंधलाती जा रही थी। चौहान बताते हैं कि सर्चिंग पर लगे 500 से अधिक जवानों, नाकेबंदी कर रहे स्टाफ को उत्साहित रखना ज़रुरी थी। चौहान कहते हैं कि हम वायरलेस पर लगातार उन्हें मोटिवेट और अलग-अलग इलाकों की ओर भेजने के निर्देश दे रहे थे, लेकिन अंदर ही अंदर सभी को लगने लगा था, दिन चढ़ने को है अब शायद खंडवा वाली कहानी दोहराई जा रही है, ये हमारी नाकेबंदी की सीमा से बाहर निकल गए हैं जिन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल होने वाला है। तत्कालीन एसपी नॉर्थ अरविंद सक्सेना बताते हैं, इलाके के भूगोल को देखते हुए हमारा अनुमान था कि आतंकी जंगल के रास्ते भाग सकते हैं। जेल से निकलकर उनके आसपास के ग्रामीण इलाकों को पार करने की संभावना सबसे ज्यादा थी। गुनगा थाना प्रभारी सहित डीएसपी ध्यान सिंह और इलाके की बीना सिंह को नाकेबंदी संभालने के साथ अपने नेटवर्क से जानकारियां निकालने का टास्क दिया। इस बीच शाहजहांनाबाद थाना प्रभारी वीरेंद्र सिंह जो पहले इस इलाके में रह चुके थे को फील्ड पर भेज दिया। एक कॉल और बदल गई दिशा… तब गुनगा थाना प्रभारी रहे चैन सिंह रघुवंशी बताते हैं, मुझे इस क्षेत्र का भूगोल पता था तो ग्रामीण इलाकों में संपर्क भी थे, ऐसे में अधिकारियों ने मुझे ईंटखेड़ी चौकी पर नाकेबंदी करने के साथ अंदरुनी गांवों में नेटवर्क को एक्टिव करने की जिम्मेदारी दी। ट्यूबवेल से पिया पानी, नाले की ओर गए… सेंट्रल जेल से करीब 14 किलोमीटर दूर खेजड़ादेव गांव में वह एक आम सुबह ही थी। इस बीच आठ लोग टहलते हुए खेतों के बीच से गुजरे। एक खेत में चल रहे ट्यूबवेल से पानी पिया और खेतों से गुजरने वाले नाले की ओर उतर गए। इस बीच खेत में पानी दे रहे किसानों की नजर उन पर पड़ चुकी थी। ग्रामीण परिवेश के रहवासी अपने गांव में रहने वालों से लेकर गुजरने वालों के चेहरे ही नहीं मिजाज तक को पहचानते थे। उनकी नजरें ताड़ चुकी थीं खतरे का आना। इसी बीच जेल से आतंकियों के भागने की खबर भी गांव पहुंच चुकी थी। ग्रामीणों की सूचना पर सरपंच मोहन मीणा ने थाना प्रभारी को जानकारी दी और खुद उन संदिग्धों का मूवमेंट देखने खेतों की ओर निकल पड़े। युवक नाले से निकल ही रहे थे, ग्रामीणों ने आवाज दी तो उन्होंने धमकाना शुरू कर दिया, अब तय हो चुका था कि ये वही आतंकी हैं जो जेल से भागे हैं। पठार पर अलग-अलग चट्टानों पर आतंकियों की लाशें पड़ी हुई थीं। रात दो बजे से शुरू हुई कहानी सुबह करीब 10 बजे खत्म हो चुकी थी, लेकिन इन आठ घंटों में जो बीता वह इस पूरी घटना में शामिल अफसरों और पुलिसकर्मियों के लिए कई दिन बीत जाने जैसा एहसास था। वर्दी का अनुशासन आज भी इनकी जुबान पर कई शब्द आने से रोकता है, लेकिन पूरे ऑपरेशन में शामिल एसटीएफ, एटीएस, बटालियन और पुलिस के अधिकारियों और जवानों को सरकार के उस इनाम के वादे के पूरे होने का इंतजार है जो आतंकियों को ढ़ेर करते समय किए गए थे…। एक रात नहीं तीन साल का था प्लान… 31 अक्टूबर 2016 की सुबह भोपाल से लेकर पूरे प्रदेश और देश तक में सनसनी फैला देने वाले जेल ब्रेक कांड की शुरुआत चंद घंटों या कुछ दिनों पहले से नहीं हुई बल्कि इसकी कहानी तीन साल पहले एक अक्टूबर 2013 से लिखी जा चुकी थी, जब सिमी के सात आतंकी खंडवा जेल से भाग निकले थे। तीन साल बाद भी आतंकियों ने वारदात को अंजाम देने के लिए वही अक्टूबर का महीना चुना तो रात के तीसरे पहर का वही समय, लेकिन अब कुछ नए तरीकों से साथ पुराने अनुभव से मिली सीख भी शामिल थी। पिछली बार आतंकियों ने जहां गश्त कर रहे पुलिस पार्टी के जवानों को बंधक बनाकर जिंदा छोड़ दिया था वहीं इस बार वे किसी पर रहम करने वाले नहीं थे, इसकी कीमत सिक्योरिटी सेल के बाहर गश्त कर रहे प्रहरी रमाशंकर यादव को चुकानी पड़ी। रात करीब दो बजे शातिर आतंकियों ने उन्हें बात करने के बहाने पास बुलाया और धारदार हथियार से गला रेतकर जान से मार दिया। इसके बाद सेल का ताला खोलकर बाहर आ गए। अब आतंकियों और उनकी आजादी के बीच बस जेल की एक मुख्य दीवार थी, जिसको पार करने की तैयारी भी उनके पास थी। लेकिन आतंकियों के पास हथियार आया कैसे और ताला कैसे खुला? टूथपेस्ट की चाबी, थाली का चाकू खंडवा जेल ब्रेक के छह महीने बाद सेंधवा से गिरफ्तार हुए आतंकियों को इस बार सतर्कता बरतते हुए प्रदेश की सबसे सुरक्षित जेलों में से एक सेंट्रल जेल भोपाल की स्पेशल सेल में रखा गया था, लेकिन स्पेशल सेल में भी इन्होंने हंगामा मचाना नहीं छोड़ा। ये जेल प्रहरियों को धमकाते, गालियां देते और हर तरीके से मानसिक दबाव बनाकर हावी होने की कोशिश करते। कुछ ही दिनों में सेल पर इनका कब्जा सा हो गया था। आतंकी मुलाकातियों से बार-बार टूथपेस्ट की मांग कर रहे थे। इनके टूथपेस्ट तेजी से खत्म हो रहे थे, जिस ओर जेल प्रबंधन का ध्यान नहीं गया। दरअसल हर मुलाकात के साथ जेल के अंदर विशेष टूथपेस्ट आ रहे थे, जिनके पाउच का मटेरियल बेहद मोटा था। आतंकी इसे काटकर जेल के पुराने ताले में डालकर जांचते रहे कि चाबी का आकार क्या होगा। कुछ ही दिनों में टूथपेस्ट के कवर की कई परतें जोड़कर उन्होंने ताले की चाबी तैयार कर ली। अब चाबी जेब में थी बस जेल प्रहरियों से निपटने के लिए हथियार की तलाश थी। खंडवा जेल ब्रेक की तरह की शातिर आतंकियों ने बर्तनों का उपयोग किया। थाली को पटककर कई बार मोड़ते हुए तोड़ा तो दो नुकीली सतह हाथ में आ गईं इन दो टुकड़ों को मोड़कर घिसते हुए चाकू तैयार कर लिए। अब ऊंची हो चुकी हैं दीवारें वर्तमान जेल अधीक्षक राकेश भांगरे बताते हैं, इस समय सेंट्रल जेल में सिमी के 23 आतंकी बंद हैं। इन्हें विशेष सिक्योरिटी सेल में रखा गया है। ये अब भी अकसर हंगामा करते रहते हैं। उनकी मांग है कि उन्हें अलग-अलग सेल के बजाय एक साथ रखा जाए। आतंकियों में कमरुद्दीन, अबू फैजल, शिवली, कामरान भूख हड़ताल कर रहे हैं। बाकी भी उनके समर्थन में अकसर भूख हड़ताल शुरू कर देते हैं। भागने के खतरे की बात है तो जेल की दीवारें अब बहुत ऊंची हो चुकी हैं। उस घटना से सबक लेकर कई कदम उठाए गए हैं और हम हर समय सतर्क रहते हैं कि ऐसा कुछ नहीं हो सके।