विशाल श्रीयंत्र देखकर अमेरिका-रूस हुए चकरघिन्नी:ओरेगॉन में मिला था आधा मील लंबा-चौड़ा श्रीयंत्र, रूस में शोध, इंदौर के श्रीयंत्र साधक ने बताई कई रोचक बातें

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हमारे सनातन धर्म में धन-धान्य देने वाले और महालक्ष्मी का स्वरूप माना जाने वाले श्रीयंत्र की संरचना को लेकर विश्व के कई देश चकरघिन्नी बने हुए हैं। रूस, अमेरिका, चीन और नेपाल सहित कई देशों में इसे लेकर शोध किया जा रहा है। सबसे अहम बात तो यह है कि 1990 में एक विमान के पायलट को उड़ान के दौरान अमेरिका के ओरेगॉन प्रांत की एक सूखी झील की रेत पर श्रीयंत्र की विशाल आकृति दिखाई दी। अमेरिका चुपचाप इस आकृति पर शोध करने लगा। इस बीच, रेडियो वॉयस ऑफ अमेरिका को इसका पता चला और उसने खुलासा कर दिया कि ये सनातन धर्म में पूजा जाने वाला श्रीयंत्र है। भारत और अन्य देशों में रहने वाले समूचे सनातनियों में धनतेरस और दीपावली पर कुबेर और महालक्ष्मी के पूजन के साथ ही श्रीयंत्र का पूजन भी किया जाता है। ऐसे में भास्कर ने इंदौर/बड़वानी के निवासी 80 वर्षीय श्रीयंत्र साधक नारायणराव दासौंधी से चर्चा की। दासौंधी के अनुसार श्रीविद्या तंत्र नामक ग्रंथ में दीपावली पर श्रीयंत्र पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। इस यंत्र को समझना आसान नहीं है। बड़वानी रियासत में एक हजार साल से अभी तक नवरात्रि से दीपावली तक श्रीयंत्र का पूजन-चिंतन किया जाता है। इसे चक्र पूजा के नाम से जाना जाता है। श्रीयंत्र साधक नारायणराव दासौंधी इस चक्र पूजा को विधि-विधान से करवाते हैं। उन्होंने बताया धन तेरस से दीपावली तक श्रीयंत्र ​​​​​​​की प्राण प्रतिष्ठा और पूजन धन-संपदा-समृद्धि के लिहाज से अत्यंत लाभकारी है। सृष्टि के सृजन और संहार का प्रतीक है श्रीयंत्र ​​​​​​​ दासौंधी बताते हैं श्रीयंत्र का शरीर में मौजूद नौ चक्रों से गहरा संबंध है। श्रीयंत्र पूजन से ये चक्र जाग्रत हो जाते हैं। श्रीयंत्र सृष्टि के सृजन और संहार का प्रतीक है। श्रीयंत्र में स्वर-व्यंजन का रहस्य छुपा है। इतना ही नहीं इसमें पूरे ब्रह्मांड का रहस्य है। इनमें तिथियां, त्रिदेव आदि सूत्र हैं। देवी अथर्व शीर्ष के 14वीं श्लोक कामो योनि: कमला: व्रज्रपाणि:… से पंच दशाक्षरी मंत्र ‘क ए ई ल हृीं’ सब मंत्रों का मुकुट मणि है। चारों धाम के शंकराचार्य श्रीयंत्र का पूजन करते हैं। सोवियत संघ में हुआ शोध विश्व के अनेक देशों में श्रीयंत्र पर शोध किया जा रहा है। सोवियत विद्वानों जॉन वुडरफ, निकोलस जे वोल्टन तथा जे मैकिलयाड ने शोध किया है। डॉ. कुलाईशेव ने गहन शोध से कंप्यूटर के प्रयोग से जो निष्कर्ष निकाला है, उससे अनेक देशों के इतिहासकारों, मानव शास्त्रियों को शोध की प्रेरणा मिली है। मॉस्को राज्य विवि में इतिहासकारों और गणितज्ञों की बैठक में जो तथ्य डॉ. कुलाईशेव ने प्रस्तुत किए, वे इसका प्रमाण हैं कि विश्व के गणितज्ञों के सामने यह सवाल है कि भारत में श्रीयंत्र जैसी रेखाकृति का उद्भव कैसे संभव हो सका। वे किस प्रकार जान सके कि नौ त्रिकोणों को एक ऐसे व्यवस्थित ढंग से रखा जा सकता है कि वे एक-दूसरे को काट सकें और उनके तिर्यक बिंदु एक रूप से दृष्टिगत हों। डॉ. कुलाईशेव का कहना है कि श्रीयंत्र का निर्माण परंपरागत विधियों से नहीं किया जा सकता। आधुनिक उच्चतर बीज गणित, आंकिकी विश्लेषण और ज्यामिति के साथ ही वर्तमान गणितीय विधियों जैसे सटीक विज्ञान के सर्वांगीण ज्ञान से ही ऐसी आकृति सुनिश्चित हो सकती है। डॉ. कुलाईशेव ने सिद्ध किया है श्रीयंत्र का प्रचार ईसा के एक हजार वर्ष पहले तक भी भारत में था। उनके कथनानुसार श्रीयंत्र आधुनिक प्राकृतिक विज्ञान के तथ्यों की रहस्यमय समरूपता उजागर करता है। ब्रह्मांड के सार्वभौमिक सिद्धांत (जिसे सामान्यत: ब्रह्मांड के विकास का सिद्धांत कहा जाता है) अर्थात ब्रह्मांड के अतीत में तत्व का अत्यधिक घनत्व एवं ताप और विकिरण के साथ भी श्रीयंत्र की घनिष्ठता है। अमेरिका में मिली विशाल श्रीयंत्र की आकृति कुछ दशक पहले अमेरिका में एक विचित्र घटना घटी। ईडाहो नेशनल गार्ड का पायलट बिल मिलर 10 अगस्त 1990 को अपनी नियमित उड़ान पर था। अचानक उसने ओरेगान प्रांत की एक सूखी झील की रेत पर विचित्र आकृति देखी। लगभग आधा मील लंबी-चौड़ी और सतह में लगभग तीन इंच धंसी थी। मिलर चौंक गया, क्योंकि 30 मिनट पहले ही उसने इस मार्ग से उड़ान भरी थी, तब उसे ऐसी कोई आकृति नहीं दिखाई दी थी। उसके अलावा अन्य पायलट भी इसी मार्ग से उड़ान भरते थे, उन्होंने भी कभी इस विशाल आकृति अथवा उसे बनाने वालों को कभी नहीं देखा था। आकृति का आकार इतना बड़ा था कि पायलटों की निगाह से चूक ही नहीं सकती थी। यह आकृति अपने आकार और बनावट से किसी मशीन द्वारा बनाई गई आकृति प्रतीत हो रही थी। इस खबर को लगभग एक महीने तक छुपाकर रखा गया। 12 सितंबर 1990 को मीडिया को इसका पता चल ही गया। सबसे पहले रेडियो वॉयस ऑफ अमेरिका ​​​​​​​ने इसकी ब्रेकिंग न्यूज दी। अमेरिका को बाद में पता चला यह आकृति हिंदू धर्म (सनातन धर्म) का पवित्र चिह्न श्रीयंत्र है, परंतु किसी के पास इस प्रश्न का जवाब नहीं था कि हिंदू आध्यात्मिक यंत्र की विशाल आकृति ओरेगॉन के इस वीरान स्थल पर कैसे बनी? 14 सितंबर को अमेरिका एसोसिएटेड प्रेस तथा ओरेगॉन की बैंड बुलेटिन ने प्रमुखता से दिखाया और इस पर चर्चा होने लगी। अनुमान लगाया गया कि इतनी बड़ी आकृति बनाने का सिर्फ सर्वे भर किया जाए तो उस समय एक लाख डॉलर खर्च आता। श्रीयंत्र की बेहद जटिल संरचना को देखते हुए जब इसे सादे कागज पर बनाना मुश्किल होता है तो सूखी झील में आधे मील की लंबाई-चौड़ाई में किसने बनाया। जितनी विशाल यह आकृति थी, उसे जमीन से देखना असंभव था। इसे सैकड़ों फीट ऊंचाई से देखा जा सकता था। उल्लेखनीय बात यह भी है कि वहां किसी विशाल ट्रक के टायरों या मशीन के निशान नहीं दिखे, जिनका उपयोग इसके निर्माण में हो सकता था।