पिता की मौत हुई, राम का किरदार निभाता रहा कलाकार:भिंड की 400 साल पुरानी ऐतिहासिक रामलीला के किस्से; मंचन के दौरान डकैती-अपहरण भी हुआ

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‘बात 1994 की है। शाम के समय रामलीला का मंचन हो रहा था। मैं लक्ष्मण और यूपी में जालौन के रहने वाले विकल तिवारी राम का अभिनय कर रहे थे। मंचन में राम जी को वनवास हुआ, पुत्र वियोग में दशरथ जी प्राण त्यागने वाले थे। इसी दौरान विकल जी के घर से फोन आया, कहा गया कि आपके पिताजी का निधन हो गया है। आप तत्काल घर आ जाओ। यह सुनकर न केवल विकल विचलित हुए बल्कि सभी कलाकारों की मंडली में भी शोक व्याप्त हो गया। लेकिन विकल ने राम लीला की गरिमा का ध्यान रख पूरा मंचन किया और अगले दिन सुबह जाकर पिता के अंतिम संस्कार में शामिल हुए।’ यह बताते हुए भिंड के लहार में रहने वाले आनंद महते भावुक हो गए। दैनिक भास्कर के साथ भिंड जिले के लहार कस्बे में होने वाली 4 सौ साल पुरानी रामलीला का इतिहास साझा करते हुए आनंद कहते हैं कि यहां करीब चार सौ साल से एक जैसी रामलीला हो रही है, जो 17 दिन चलती है। मंडली में शामिल कुछ सदस्य ऐसे परिवार से हैं, जिनकी दो-तीन पीढ़ियों ने अभिनय किया है। उन्होंने बताया कि लहार की रामलीला को क्षेत्र के एक प्रसिद्ध संत मोनी महाराज ने शुरू कराया था। आज हम आपको चंबल के लहार की प्रसिद्ध रामलीला से जुड़ी कुछ रोचक घटनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अब किस्से बन गए हैं। देखिए रामलीला की कुछ पुरानी तस्वीरें… रामलीला के दौरान डकैती भी हुई
आनंद महते बताते हैं कि ​​​​​​रामलीला मंचन के दौरान साल 1985 में एक बड़ी घटना हुई, जो लोगों के जहन में आज भी जस की तस है। रामलीला का मंचन चल रहा था। सभी कलाकार अपना-अपना किरदार निभाने के लिए तैयार थे। लक्ष्मण शक्ति की लीला में मैं तब भी लक्ष्मण की भूमिका में था। वहीं, मेघनाद का अभिनय क्षेत्र के चर्चित कलाकार राम लखन मढ़या कर रहे थे। दोनों में संवाद चल रहा था। हर बार की तरह आतिशबाजी भी हो रही थी। तभी रात करीब 12 बजे डकैतों ने कस्बे के सराफा व्यापारी बद्री प्रसाद सोनी के घर धावा बोल दिया। उन्होंने गोलियां भी चलाईं। व्यापारी के बेटे जुगल किशोर के पैर में गोली भी लगी। दूसरे बेटे रमेश को डकैत बंधक बनाकर ले गए। उस दिन तो राम लीला को रोकना पड़ा। लेकिन फिर कभी विराम नहीं लगा। हर साल रामलीला का मंचन पारंपरिक तरीके से होता है। जब कोरोना काल के दौरान देश भर में सार्वजनिक कार्यक्रमों पर रोक लगा दी गई थी। तब भी रामलीला समिति ने भिंड कलेक्टर को आवेदन दिया और जिला प्रशासन की अनुमति मिलने के बाद रामलीला का आयोजन किया। हनुमान जी को प्रणाम किए बिना मंचन सफल नहीं होता
रौन कस्बे के पढ़ौरा गांव के विजयराम भारद्वाज से जब रामलीला को लेकर बातचीत की तो वे यादों में खो गए। विजयराम भी 30 सालों तक भगवान श्रीराम का अभिनय कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि 1985 में मैं पहली बार लहार की रामलीला मंच पर अपना अभिनय करने आया था, तब मेरी उम्र 20-22 साल रही होगी। इसी साल डकैतों ने बद्री प्रसाद सोनी के घर डकैती डाली थी। किरदार निभाने वालों को लोग श्रद्धा भाव से देखते हैं
सत्यनारायण रावत जब 18 साल के थे, तब से रामलीला में हनुमान जी का किरदार निभाने लगे। उनके पिता रामदास रावत भी हनुमान जी का किरदार निभाने वाले प्रसिद्ध कलाकार के रूप में जाने जाते। रावत ने बताया कि मैं पिताजी के साथ रामलीला देखने जाता था, तभी मैंने उनसे उनके अभिनय को बारीकी से सीख लिया। एक बार पिताजी की आंखों में अचानक तेज दर्द होने लगा। लगा कि वे मंचन नहीं कर पाएंगे, तब उन्हीं के आदेश पर मैं पहली बार हनुमान जी का स्वरूप धारण कर मंच पर आया। लोगों ने मुझे पसंद भी किया। उसके बाद लगातार करीब 35 साल मैंने अलग-अलग मंचों पर हनुमान जी का अभिनय किया। पिता और मेरे इस काम के कारण हमारे परिवार को लोग बहुत श्रद्धा भाव से देखते हैं, जब हम बाजार में निकलते हैं तो बहुत आदर मिलता है। कंधे पर बैठाया तो फूल जैसे हल्के लगने लगे राम-लक्ष्मण
सत्यनारायण रावत आगे बताते हैं कि 35 सालों तक ऐसा हुआ, जब मैं हनुमान जी का किरदार निभाता तो उस दिन उपवास रखता। उम्र संबंधी समस्याओं के कारण पिछले साल से ही मैंने भिनय करना बंद कर दिया है। उन्होंने बताया कि एक बार राम विकल बने और लक्ष्मण अटल बने थे। दोनों कलाकारों का वजन बहुत था। मंचन के दौरान जब राम और हनुमान जी का जब मिलन हुआ तब किष्किंधा पर्वत पर ले जाने के लिए दोनों को कंधे पर बैठाना था। वजन ज्यादा होने के कारण ऐसा कर पाना बहुत मुश्किल लग रहा था। मैंने दोनों को कंधे पर बैठाना चाहा तो दोनों पात्रों ने मना कर दिया। कहा कि हम दोनों का वजन ज्यादा है, गिर जाएंगे। लेकिन जैसे ही मैंने हनुमान जी का स्मरण किया और जय श्रीराम का उद्घोष कर राम-लक्ष्मण को कंधे पर बैठाया, वैसे ही दोनों फूल की तरह हल्के लगे। मैंने दोनों को कंधे पर बैठाकर मंच पर चक्कर लगाए। यह घटना इसलिए हैरान करने वाली है क्योंकि इसके बाद जब-जब मैंने बिना मंचन के दोनों को बैठाना चाहा तो नहीं बैठा पाया। लेकिन हनुमान जी बनने के बाद हमेशा दोनों को उठा लेता था। रामलीला मंच का चबूतरा डेढ़ सौ साल से संरक्षित
स्थानीय लोगों का कहना है कि करीब डेढ़ सौ साल पहले रामलीला के मंचन को लेकर स्थान संरक्षित किए गया था। बताया जाता है कि लहार कस्बे के रस विहार श्रीवास्तव ने रामलीला मंचन का स्थान संरक्षित करते हुए लिखा था कि मेरा यह चबूतरा हर साल रामलीला आयोजन कमेटी के लिए सुरक्षित रहेगा। इस चबूतरे पर कोई निर्माण कार्य नहीं कराया जाएगा। इस कारण उनके वंशजों ने आज भी यह चबूतरा रामलीला मंचन के लिए संरक्षित रखा है। हालांकि ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है। इस रामलीला की एक खास बात यह भी है कि कमेटी हनुमान रामलीला समिति के नाम से है। इस रामलीला कमेटी के अध्यक्ष पद पर हमेशा हनुमान जी ही रहे हैं। कोई व्यक्ति आज तक इस पद पर नहीं रहा। उपाध्यक्ष सहित लोग पदाधिकारी और कार्यकर्ता की भूमिका में अपना दायित्व निभाते रहे हैं।