जिले के नईआबादी स्थित आराधना भवन मंदिर हॉल में गुरुवार को धर्मसभा का आयोजन किया गया। जिसमें जैन संत योगरूचिविजयजी ने कहा कि प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वह मृत्यु के बाद अपने भव को सुधारने का प्रयास करें। मृत्यु के पूर्व मानव को ऐसा कर्म करना चाहिए कि उसका पूरा ध्यान धर्म आराधना में लगा रहे। मृत्यु के पूर्व नवकार के जाप गिने, अपने को सांसारिक मोह से विरक्त कर ले। यथासंभव ऐसा कोई कर्म नहीं करे जिससे पापकर्म का बंध होता हो। उन्होंने आगे कहा कि जब भी आपको लगे की मृत्यु निकट है तो जिस भगवान या ईष्ट देव को आप मानते हो उसका फोटो अपने कक्ष में लगा दो और उसका ध्यान करो। आपने कहा कि मृत्यु के बाद किसी के नाम पर कोई दान पुण्य करने से उस आत्मा को कोई लाभ नहीं है। मृत्यु के पूर्व यदि व्यक्ति को अपनी गति सुधारनी है तो अपने हाथों से दान पुण्य करें। इसी से उसकी गति सुधरेगी। मनुष्य को यदि स्वामी वात्सल्य या सामूहिक भोज देना है तो जीवित रहते ही करा दे। आजकल जीवित महोत्सव की परम्परा भी शुरू हो गई है। हमें ऐसा करने का अवसर मिले तो जरूर करना ही चाहिए। प्रतिदिन हो रही लोगस्य साधना नईआबादी शास्त्री कॉलोनी स्थित जैन दिवाकर स्वाध्याय भवन में प्रतिदिन सुबह 9 से 10 बजे तक लोगस्य की धर्मसाधना का आयोजन किया जा रहा है। 25 सितंबर से 6 अक्टूबर तक लोगस्य की धर्म साधना का आयोजन ग्यारह दिवस तक किया जा रहा है। साध्वी रमणीककुंवरजी और साध्वी चंदनाश्रीजी की पावन प्रेरणा और निश्रा में हो रही इस धर्म साधना में प्रतिदिन 200 श्रावक श्राविकाये लोगस्य की धर्म साधना में शामिल हो रहे है। साध्वी ने लोगस्य की महत्ता बताते हुए कहा कि लोगस्य की धर्म साधना करने से शारीरिक मानसिक व्याधिया समाप्त होती है। यह धर्म आराधना मानसिक शारीरिक बीमारियों में लाभदायक मानी गई है। लोगस्य की इस साधना में जो धर्मालुजन शामिल हो रहे है वे 108 बार लोगस्य गिन रहे है।