मध्य प्रदेश के 6592 वनरक्षकों के वेतन निर्धारण में गलती के लिए वन एवं वित्त विभाग के अधिकारी बराबर के जिम्मेदार हैं। जहां वन विभाग ने वेतन निर्धारण और वित्त विभाग से उसके अनुमोदन में 9 साल लगा दिए, तो वहीं साल 2009 से 2011 तक वनरक्षकों की सेवा पुस्तिकाओं के परीक्षण के दौरान जिला कोषालय अधिकारियों ने इसी वेतन निर्धारण को सही ठहराया है और अब वही गलत हो गया। सबसे पहले मामला तब सामने आया जब वर्ष 2017 में सातवें वेतनमान का निर्धारण हुआ और 2018 में दोबारा सेवा पुस्तिकाएं कोषालय पहुंचीं। तब भोपाल और नर्मदापुरम (होशंगाबाद) के जिला कोषालय अधिकारियों ने इस वेतन निर्धारण पर आपत्ति ली। बता दें कि 6592 वनरक्षकों को जनवरी 2006 से 2014 के बीच 5200 के स्थान पर 5680 वेतन बैंड दिया गया। यानी हर माह 480 रुपए अधिक और अब उनसे 165 करोड़ रुपए की वसूली करने की तैयारी है। प्रदेश में 1 जनवरी 2016 से 6वां वेतनमान लागू हुआ है। जिसमें प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित वनरक्षकों का वेतनमान एक (5200+1800) कर दिया गया। 28 फरवरी 2009 को वित्त विभाग ने सभी विभागों को लिखा कि विभागीय भर्ती नियमों के अनुसार संवर्गवार वेतनमान का निर्धारण कर लें। इस काम में वन विभाग को 5 साल 7 महीने लग गए। विभाग ने 8 सितंबर 2014 को वेतनमान में संशोधन की अधिसूचना प्रकाशित की, पर इसमें भी यह नहीं लिखा कि यह कब से लागू होगा। अब संवर्गवार वेतनमान का अनुमोदन वित्त विभाग से कराना था। तब वन बल प्रमुख कार्यालय सतपुड़ा भवन में संचालित होता था, जिसकी मंत्रालय से 300 मीटर से भी कम दूरी है। इतनी दूरी तय करने में वेतनमान संशोधन की नोटशीट को 4 साल लग गए। वित्त ने वेतनमान का अनुमोदन 14 जुलाई 2018 को किया। तब भी इसे लागू करने की तारीख नहीं लिखी गई। उल्लेखनीय है कि 5वें वेतनमान तक वनरक्षकों को दो वेतनमान दिए जाते थे। अप्रशिक्षित वनरक्षकों को 2750 और प्रशिक्षित को 3050 रुपए। 6वें वेतनमान में दूसरा वेतन बैंड विलोपित कर दिया गया, जबकि कर्मचारी प्रशिक्षित वनरक्षकों के लिए 5680 वेतन बैंड की मांग कर रहे थे। जब उन्हें 1900 ग्रेड-पे दे दिया, तो 5680 वेतन बैंड का निर्धारण कर दिया गया, क्योंकि 1900 ग्रेड-पे इसी वेतन बैंड में दिया जाता है। छत्तीसगढ़ ने सुलझा लिया मामला मध्य प्रदेश से वर्ष 2000 में अलग हुए छत्तीसगढ़ राज्य में भी यही गड़बड़ी वनरक्षकों के वेतनमान में हुई थी। जिसे पिछले साल हल कर लिया गया। 6 जुलाई 2023 की कैबिनेट की बैठक में इस मुद्दे को लाया गया और कैबिनेट ने विभागीय सेटअप स्वीकृति दिनांक 26 मार्च 2003 के बाद से नियुक्त सभी वनरक्षकों का वेतनमान एक समान मान्य कर लिया। जिसके आदेश 20 जुलाई 2023 को जारी कर दिए गए। यह हो सकता है विकल्प मध्य प्रदेश का मामला निपटाने के लिए एक ही विकल्प है। डॉ. मोहन कैबिनेट छत्तीसगढ़ सरकार की तरह निर्णय लेते हुए इस वेतनमान को 1 जनवरी 2006 से लागू कर दे। इससे भोपाल और नर्मदापुरम वनवृत्त में पहले और बाद की भर्ती के बीच वेतन की विसंगति भी दूर होगी। 2014 के बाद भर्ती वनरक्षकों को 5680 और उससे पहले वालों को 5200 वेतन बैंड दिया जा रहा है। यानी बाद में नौकरी में आए वनरक्षक वेतन के मामले में पुराने वनरक्षकों से सीनियर हो गए। कैबिनेट को भेजा प्रस्ताव सीएस से लौटाया मध्य प्रदेश के वनरक्षकों के वेतन बैंड में सुधार का प्रस्ताव 5 अक्टूबर 2023 की कैबिनेट में लाया गया था। जिसमें वनरक्षकों को प्रशिक्षण पूर्ण होने की दिनांक से मूल वेतन स्वीकृत करने की स्वीकृति देने का निर्णय लिया जाना था, पर इस प्रस्ताव को मुख्य सचिव कार्यालय में ही रोक दिया गया और वन अधिकारियों से कहा गया कि इसे वित्त विभाग के ध्यानार्थ ले जाएं।