श्री 1008 भगवान महावीर दिगंबर जैन मंदिर साकेत नगर भोपाल में पर्युषण पर्व के अवसर पर होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में नाटक “महासती मनोवती” का मंचन मंगलवार को किया गया। यह नाटक न केवल सती मनोवती के जीवन और दर्शन से प्रेरणा देने वाला था बल्कि धर्म और कर्तव्य की गहराइयों में ले जाने वाला भी था। हेमलता जैन रचना ने बताया कि “महासती मनोवती” के जीवन पर आधारित नाटक की भव्य और भावपूर्ण प्रस्तुति आस्था महिला परिषद की महिलाओं द्वारा दी गयी। डॉ. पंकज जैन शास्त्री ने अपने प्रवचन में कहा कि आत्मा की शुद्धि तो लोभ कषाय का त्याग करने से ही होती है। दशलक्षण पर्व के उत्तम शौच धर्म के अवसर पर डॉ. पंकज जैन शास्त्री ने उत्तम शौच धर्म का अर्थ बतलाते हुए कहा कि- शौच धर्म का अर्थ है शुचिता या पवित्रता को प्राप्त करना। आत्मा को सबसे अधिक अपवित्र लोभ, कषाय करती है। इसलिये हमें लोभ, लालच छोड़कर संतोष वृत्ति के साथ जीवन जीना चाहिए। लोभ के कारण ही मनुष्य हिंसा, झूठ, चोरी आदि महा पाप करता है। सभी पापों का मूल लोभ ही है। शरीर की शुद्धि तो जल से स्नान करने से हो जाती है, परन्तु आत्मा की नहीं होती। सौम्या जैन ने अपनी स्क्रिप्ट राइटिंग और एडिटिंग से लेकर अंत तक हर भाग को मैनेज किया। नाटक में कुमारी सौम्या जैन ने मुख्य पात्र सती मनोवती का, सुनीता जैन मनोवति की मां, सीमा जैन मनोवति के पिता, कल्पना जैन बुद्ध सेन, आराधना पंचोलिया बुद्ध सेन की मां, शालिनी तारण बुद्धसेन के पिताजी, अंजु नायक पुरोहित बुद्धसेन के भाई, योगिता भागवतकर मनोवती के भाई, वैशाली भागवतकर माताजी, रुचि जैन चंदा, पूनम जैन छोटी रानी, प्रतिभा जैन टोंग्या देवी, देव के रूप में रितु जैन ने अपनी प्रस्तुती दी। वहीं संगीत डॉ. महेंद्र जैन ने दिया। नाटक की सूत्रधार ललित जैन मन्या ने अपनी अद्वितीय शैली से इस नाटक को जोश और भावनाओं से भर दिया। मंच व्यवस्था दिशा जैन, सपना जैन, स्वाति जैन, भारती जैन का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ। मंदिर अध्यक्ष नरेंद्र टोंग्या तथा मंदिर समिति ने शानदार प्रस्तुति हेतु नाटक को पुरस्कृत किया। साथ ही विगत दिनों आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कार वितरित किये गए।