पांढुर्णा जिले की जाम नदी के दोनों तटों पर सैकड़ों लोग जमा हैं। नदी के दोनों किनारों पर पत्थर बरसा रहे हैं। इस पत्थरबाजी में कुल 600 लोग घायल हो चुके हैं, 8 गंभीर घायल हैं। किसी की पसली टूटी है तो किसी की आंख फूट गई। कोई और जगह होती तो पुलिस खुलेआम ऐसे हमला करने वालों पर पथराव, बलवा, उपद्रव, शांति भंग करने और जानलेवा हमले के प्रयास की धाराओं में केस दर्ज कर लेती। लेकिन, यहां ये खूनी परंपरा ठीक से निभ जाए इस इंतजाम में 358 पुलिसकर्मी तैनात किए गए। इलाज में 27 डॉक्टर्स लगाए गए। 3 सितंबर को हुए इस खूनी खेल का नाम है ‘गोटमार ‘। यानी, पत्थर मारने की परंपरा। प्रशासन इस खूनी परंपरा के सामने क्यों नतमस्तक, पढ़िए पूरी रिपोर्ट… नदी के बीचों बीच पलाश के पेड़ को काटकर लगाया गया। इस पेड़ पर झंडे लगाए गए। फिर शुरू हुआ, ये खूनी खेल। इन झंडों को निकालने के लिए, पांढुर्णा के लोग नदी में उतरे। नदी के दूसरे छोर से सावरगांव के रहने वालों ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। ताकि झंडा न निकल सके। सावरगांव के उन पत्थर बरसाने वालों को रोकने के लिए नदी किनारे खड़े पांढुर्णा के लोग भी पत्थर बरसाने लगे। पहले एक के सिर पर पत्थर लगा और लहूलुहान होकर भागा। फिर दूसरे की आंख के पास पत्थर लगा। खून बह निकला। फिर क्या था, देखते-देखते पत्थरों की बारिश और घायल होकर भागने वालों की संख्या बढ़ गई। आलम ये है कि इस आयोजन को हुए तीन दिन हो चुके हैं, इसके बाद भी ये पता नहीं चल सका है, कि इसमें वास्तव में कुल कितने लोग घायल हुए हैं। रोकने में सुस्त लेकिन इलाज में चुस्त रहा प्रशासन परंपरा के नाम पर किए जा रहे इस आयोजन को रोकने में प्रशासन भले ही सुस्त रहा हो, लेकिन उसने घायलों के इलाज के लिए मुस्तैदी से काम किया। कलेक्टर अजय देव शर्मा के आदेश पर नदी के किनारे ही एंबुलेंस खड़ी कराई गईं। 27 डॉक्टर्स की टीम इलाज के लिए तैनात रही। किसी की पसली टूटी तो किसी की नाक BMO डॉक्टर दीपेंद्र सलामे ने बताया कि गोटमार मेले के पथराव में 600 लोग घायल हुए। इनमें से 52 लोगों का एक्स-रे निकाला गया था। जिनमें से 29 घायलों के हाथ-पैर, नाक, पसली और सिर की हड्डी टूटी मिली थी। शुभम सेंबेकर के सिर में गंभीर चोट है। श्रावण निकानू की एक आंख फूट गई है। जगदीश डाबरे की पसली टूटी है। शुभम शिंदे, विक्की बालपांडे, कैलाश घोड़े का पैर टूटा है। ज्यादातर को सिर और नाक पर चोट है। 8 लोगों को काफी खून बह जाने के कारण गंभीर हालत में नागपुर रेफर किया गया है। अब अफसरों के जवाब पढ़ लिजिए… सीएमओ नितिन बिजवे बताते हैं कि इस पत्थरबाजी को कवर करने के लिए नगर पालिका प्रशासन ने 3 ड्रोन कैमरे और 16 CCTV कैमरे लगाए थे। ताकि, हम इसे ठीक से कवर कर सकें और पब्लिक तक अच्छे से पहुंचा सकें। काफी लोगों ने इसे देखा और सराहा है। सीएमओ की दो बातों पर आपका खास ध्यान गया होगा। ‘पब्लिक तक अच्छे से’ और ‘काफी सराहा’। यानी प्रशासन का ध्यान इस आयोजन को अच्छे से पब्लिक तक पहुंचाने और अपनी पीठ थपथपाने तक ही सीमित रहा। टीआई अजय मरकाम का कहना है कि अब तक पुलिस के पास कोई शिकायत आई ही नहीं है। ऐसे में भला कार्रवाई किस पर करेंगे। हालांकि, वो ये भी कहते हैं कि पुलिस ड्रोन कैमरे की मदद से ये देख रही है कि किसी ने गोफन (पत्थर से हमले का देसी जुगाड़) से तो हमला नहीं किया। गोटमार मेले के पीछे पिंडारियों की कहानी पहली कहानी पिंडारी (आदिवासी) समाज से जुड़ी है। मान्यता के अनुसार हजारों साल पहले जाम नदी के किनारे पिंडारी समाज का प्राचीन किला था। यहां समाज और उनकी शक्तिशाली सेना रहती थी। सेनापति का नाम दलपत शाह था, लेकिन महाराष्ट्र के भोसले राजा की सेना ने पिंडारी समाज के किले पर हमला बोल दिया। अस्त्र-शस्त्र कम होने से पिंडारी समाज की सेना ने पत्थरों से हमला किया। भोसले राजा परास्त हाे गया। तब से यहां पत्थर मारने की परंपरा चली आ रही है। कहा जाता है कि युद्ध के बाद जनता ने सेनापति दलपत शाह का नाम बदलकर राजा जाटबा नरेश कर दिया था। आज भी जाटबा राजा की समाधि यहां मौजूद है। जहां समाधि है, वह इलाका पांढुर्णा नगर पालिका में जाटबा वार्ड के नाम से है। इस वार्ड में 600 लोगों की आबादी रहती है। एक कहानी प्रेम प्रसंग से भी जुड़ी बुजुर्गों के मुताबिक सावरगांव की युवती और पांढुर्णा का एक युवक एक-दूसरे से प्रेम करते थे। दोनों शादी करना चाहते थे। लेकिन दोनों के गांव के लोग इस प्रेम कहानी से आक्रोशित थे। पोला त्योहार के दूसरे दिन भद्र पक्ष अमावस्या की अलसुबह युवक-युवती भाग गए। लेकिन जाम नदी की बाढ़ में फंस गए। दोनों नदी पार करने की कोशिश करते रहे। यहां पांढुर्णा और सावरगांव के लोग जमा हो गए और प्रेमी जोड़े पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया, जिससे दोनों की मौत हो गई। तभी से प्रेमी युगल की याद में गोटमार का खेल खेला जाता है। सांबारे परिवार के तीन लोगों की जा चुकी है जान गोटमार मेले में सांबारे परिवार अपने 3 सदस्यों को खो चुका है। 22 अगस्त 1955 को सबसे पहले महादेव सांबारे की मौत हुई थी। 24 अगस्त 1987 को कोठिराम सांबारे और 4 सितंबर 2005 को जनार्दन सांबारे की मौत हुई थी। अब तक 13 लोगों ने गंवाई अपनी जान दैनिक भास्कर की टीम ने गोटमार मेले में मरने वालों संख्या की जानकारी हासिल की तो चौंकाने वाली बात सामने आई। इस मेले में पत्थरों की बौछार से साल 1995 से 2023 तक 13 लोगों अपनी जान गंवा चुके हैं। जिसका रिकॉर्ड आज भी मौजूद है। 1978 और 1987 में चलीं गोलियां, दो की मौत इस खूनी खेल को बंद कराने के लिए प्रशासन सख्त कदम भी उठा चुका है। एक बार तो पुलिस ने गोलियां भी बरसाई थीं। यह गोलीकांड 1978 और 1987 में हुआ था, जिसमें 3 सितंबर 1978 को ब्रह्माणी वार्ड के देवराव सकरडे और 1987 में जाटबा वार्ड के कोठीराम सांबारे की गोली लगने से मौत हुई थी। इस दौरान पांढुर्णा में कर्फ्यू जैसे हालात थे। पुलिस ने लाठीचार्ज भी किया था। प्लास्टिक की गेंद का इस्तेमाल पसंद नहीं आया छिंदवाड़ा प्रशासन ने मेले का स्वरूप बदलने के लिए साल 2001 में पत्थरों की जगह प्लास्टिक बॉल जाम नदी पर बिछाई थी। ताकि पत्थर मारने की प्रथा बंद हो सके। लेकिन गोटमार खिलाड़ियों ने प्लास्टिक और रबर की बॉल को नदी में फेंककर पत्थर मारना शुरू कर दिया। तब से इसके स्वरूप में बदलाव की कोशिश भी प्रशासन ने नहीं की है। प्रशासन के हर अफसर का यही कहना है कि परंपरा को नहीं रोक सकते और कोई शिकायत करने वाला भी ताे कोई नहीं है।